scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमदेशसस्ता रूम खोजना मुश्किल है? कोई बात नहीं, मेक माई ट्रिप, OYO के खिलाफ CCI के आदेश से बदल जाएंगे हालात

सस्ता रूम खोजना मुश्किल है? कोई बात नहीं, मेक माई ट्रिप, OYO के खिलाफ CCI के आदेश से बदल जाएंगे हालात

प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने मेकमाईट्रिप-गोइबिबो और ओयो पर 392 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है, और उन्हें ऐसी गतिविधियां रोकने का निर्देश दिया है जो गैर-प्रतिस्पर्धी हों. माना जा रहा है कि इसका सीधा फायदा उपभोक्ताओं को होगा और उन्हें बेहतर बुकिंग एक्सीपीरियंस मिलेगा.

Text Size:

नई दिल्ली: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की तरफ से बुधवार को मेकमाईट्रिप-गोइबिबो और ओयो पर लगाया गया जुर्माना भले ही बहुत ज्यादा सख्त कदम न हो लेकिन यह उपभोक्ताओं के लिए होटल बुकिंग को एक सस्ता और बेहतर अनुभव साबित करने वाला हो सकता है.

फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएचआरएआई) और कासा2 स्टेज प्राइवेट लिमिटेड ने 2019 में विलय करने वाली इकाई मेकमाईट्रिप-गोइबिबो (एमएमटी-गो) और ओरावेल स्टेज प्राइवेट लिमिटेड (ओयोग) के खिलाफ अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए समझौतों का उल्लंघन कर प्रतिस्पर्धा को क्षति पहुंचाने का आरोप लगाया था. इन आरोपों के आधार पर सीसीआई ने अपने महानिदेशक (डीजी) को मामले की जांच का निर्देश दिया. और बुधवार को प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने डीजी के जांच नतीजों के आधार पर अपना फैसला सुनाया.

कुल मिलाकर, डीजी ने पाया कि एमएमटी-गो वास्तव में भारत में होटल बुकिंग संबंधी ऑनलाइन मध्यस्थता सेवाओं के बाजार में प्रमुख खिलाड़ी है और अपनी मजबूत स्थिति की बदौलत होटलों से अपनी शर्तों पर सेवाएं ले रहा है. इसके अलावा, डीजी ने पाया कि एमएमटी-गो और ओयो के बीच एक गोपनीय सौदा भी है जिसका मकसद अन्य खिलाड़ियों को बाजार से बाहर रखा है. इसकी वजह से उपभोक्ताओं के पास सीमित विकल्प ही बचे.

सीसीआई ने अपने आदेश में एमएमटी-गो और ओयो पर उनके वार्षिक कारोबार का पांच प्रतिशत यानी क्रमशः 223.48 करोड़ रुपये और 168.88 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया. लेकिन घरेलू पर्यटन तेजी से बढ़ने और अगले कुछ महीनों में इसमें और भी अधिक तेजी की संभावनाओं के बीच इस जुर्माने को बेहद मामूली माना जा रहा है.

हालांकि, आदेश से जुड़े गैर-मौद्रिक पहलू जरूर उपभोक्ताओं के बुकिंग अनुभव को बेहतर बनाने के लिए काफी अहम माने जा रहे हैं क्योंकि इससे उन्हें न केवल अधिक होटलों तक पहुंच मिलेगी, बल्कि कम कीमतों पर रूम बुक करना भी संभव हो पाएगा.


यह भी पढ़ें-दिवाली तो उजाले बांटने से ही शुभ होगी, उन्हें अपनी-अपनी मुट्ठियों में कैद करते रहने से नहीं


कृत्रिम बाधाओं से प्रभावित होती एंट्री

एमएमटी-गो के खिलाफ मुख्य आरोप यही था कि उसने पार्टनर होटलों के साथ अपने समझौतों में एक प्रमुख शर्त ये लगा रखी थी कि वे किसी अन्य ऑनलाइन ट्रैवल एग्रीगेटर (ओटीए) या फिर खुद अपनी वेबसाइट के जरिये उससे कम कीमत पर कमरे उपलब्ध नहीं करा सकते हैं जिसकी पेशकश मेकमाईट्रिप की साइट पर की जा रही है. हालांकि, एमएमटी-गो अपने प्लेटफॉर्म पर होटल के कमरों की कीमतों में ‘अपने मनमुताबिक’ बदलाव कर सकता है.

आदेश में कहा गया है, ‘इसके अलावा, पार्टनर होटलों के लिए कमरे उपलब्ध कराने में मूल्य समानता का पालन अनिवार्य था, और वे किसी भी स्थिति में एमएमटी-गो प्लेटफॉर्म पर कमरे उपलब्ध कराने से इनकार नहीं कर सकते, अगर कमरे किसी अन्य ओटीए पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं.’ इसमें कहा गया कि इस तरह की बाध्यताएं न केवल बाजार में एंट्री में कृत्रिम बाधा पैदा कर रही थीं बल्कि मौजूदा प्रतिस्पर्धियों को भी बाहर कर रही थी.

आदेश में कहा गया है, ‘ओटीए के बीच प्रतिस्पर्धा से होटलों के लिए कमीशन दर घटेगी. आगे, डीजी ने यह भी पाया कि एक तरफ तो एमएमटी-गो मूल्यों में समानता पर जोर दे रही थी और दूसरी तरफ, खुद कम कीमतों पर कमरे देकर होटल के मूल ग्राहकों के बीच लोकप्रियता हासिल कर रही थी. लंबे समय में, इस तरह की प्रवृत्ति से होटलों के ग्राहक आधार सिमट सकता है. रेट में समानता ग्राहकों के लिए उपलब्ध विकल्पों को सीमित करने वाली भी पाई गई.’

इस संबंध में, डीजी ने अपने निष्कर्ष में पाया कि 2017 की शुरुआत में मेकमाईट्रिप और गोइबिबो के विलय के बाद इस नई इकाई के वर्चस्व के आगे किसी भी नए खिलाड़ी के लिए बाजार में आना आसान नहीं रहा.

आदेश के मुताबिक, ‘इसके अलावा, एमएमटी-गो की रेट समानता और जबर्दस्त छूट देने जैसी गतिविधियों ने एक्सपेडिया और बुकिंग डॉट कॉम जैसे वैश्विक खिलाड़ियों को भी बाजार में टिकने नहीं दिया, जैसा उनके गिरते मार्केट शेयरों से साफ है. यही नहीं, ऐसी गतिविधियों से माल के उत्पादन या वितरण या सेवाओं संबंधी प्रावधान में कोई सुधार होते नहीं पाया गया…इस सब बातों को ध्यान में रखते हुए डीजी ने पाया कि रेट पैरिटी और रूम पैरिटी अधिनियम की धारा धारा 4(1) के साथ धारा 4(2)(ए)(आई) का उल्लंघन है.’

प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 4, कंपनियों के प्रभुत्व के दुरुपयोग से संबंधित है.

गौरतलब है कि प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने एमएमटी-गो को होटलों के साथ अपने करार में आवश्यक सुधार का आदेश दिया है जिसका मतलब है कि उसे अपनी तरफ से थोपी गई तमाम शर्ते हटानी होंगी. इससे उपभोक्ताओं को अब किसी अन्य प्लेटफॉर्म के माध्यम से बुकिंग कराने पर उन्हीं होटलों में सस्ते कमरे उपलब्ध हो सकेंगे.

एमएमटी-गो और ओयो समझौता प्रतिस्पर्धा विरोधी

यह आरोप भी लगा कि एमएमटी-गो और ओयो के बीच एक गोपनीय समझौता है जिसके तहत ओयो के प्रतिस्पर्धियों को एमएमटी-गो प्लेटफॉर्म से हटाया जा रहा था. हालांकि, इस करार का ब्योरा सीसीआई के आदेश से हटा दिया गया है लेकिन आदेश से स्पष्ट है कि ‘डीजी के समक्ष ऐसे किसी कामर्शियल करार से न तो एमएमटी-गो ने इनकार किया और और न ही ओयो ने.’

डीजी ने पाया कि इस समझौते के बाद ओयो के प्रतिस्पर्धियों फैबहोटल्स और ट्रीबो को एमएमटी-गो प्लेटफॉर्म से हटा दिया गया. इसका नतीजा यह हुआ कि उपभोक्ताओं को एक बड़े प्लेटफॉर्म पर उनकी सेवाएं नजर आनी बंद हो गईं और अब वे ओयो के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते थे. डीजी ने माना कि एमएमटी-गो प्लेटफॉर्म से बाहर होने के कारण फैबहोटल और ट्रीबो दोनों के लिए बजट श्रेणी के होटल फ्रैंचाइजी व्यवसाय में बने रहना मुश्किल हो गया.

सीसीआई का आदेश कहता है, ‘इस प्रकार, एमएमटी-गो और ओयो के बीच कॉमर्शियल व्यवस्था/समझौते ने एमएमटी-गो पोर्टल तक पहुंच सीमित कर दी, जिससे ओयो के प्रतिस्पर्धी फैबहोटल और ट्रीबो को ओयो के साथ प्रभावी प्रतिस्पर्धा से रोका जा सके. इस तरह उक्त करार प्रतिस्पर्द्धा को बाधित कर बाजार में प्रवेश को रोकने वाला बन गया.’

सीसीआई ने पाया कि ओयो और एमएमटी-गो के बीच यह समझौता सीधे तौर पर उपभोक्ताओं को भी प्रभावित करता है क्योंकि यह सस्ते होटल रूम की उनकी खोज को केवल ओयो की पेशकश तक ही सीमित करता है. अगर ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ होता, तो फैबहोटल और ट्रीबो भी अपनी सेवाओं को एमएमटी-गो पर लिस्ट कराने में सक्षम होते और उपभोक्ताओं के पास भी पर्याप्त विकल्प उपलब्ध होते.

आदेश ने कहा, ‘बाजार के अन्य खिलाड़ियों के एमएमटी-गो के साथ जुड़ने पर ओयो के साथ प्रतिस्पर्धा के समान अवसर मिलने से उनकी क्षमता में सुधार होगा और उपभोक्ताओं के समक्ष भी बाजार में इन खिलाड़ियों के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण कम मूल्यों पर गुणवत्तापूर्ण सेवाओं वाले बेहतर विकल्प उपलब्ध होंगे.’

दूसरे शब्दों में कहें तो एमएमटी-गो और ओयो के बीच करार के कारण उपभोक्ताओं के पास न केवल कमरों के विकल्प सीमित थे, बल्कि उन्हें सस्ते में मिलने की गुंजाइश भी कम थी.

सीसीआई ने एमएमटी-गो को लिस्टिंग संबंधी नियमों और शर्तों को उद्देश्यपरक ढंग से संशोधित करके अपने प्लेटफॉर्म पर सभी खिलाड़ियों को ‘निष्पक्ष, पारदर्शी और गैर-भेदभावपूर्ण आधार पर’ पहुंच उपलब्ध कराने का निर्देश दिया, जिसका सीधा मतलब है कि एमएमटी-गो को ओयो के फैबहोटल्स और ट्रीबो जैसे प्रतिस्पर्द्धियों को समान रूप से मौका देना होगा.

इससे भी उपभोक्ताओं को भी फायदा होगा क्योंकि उनके पास अब सस्ते होटलों और कमरों के लिए बेहतर विकल्प उपलब्ध होंगे.

प्लेटफॉर्म पर दी जा रही थी गलत जानकारी

एमएमटी-गो के खिलाफ एक और आरोप यह था कि उसका प्लेटफॉर्म कुछ होटलों और संपत्तियों को ‘सोल्ड आउट’ दिखाता था, जबकि इन्हें सिर्फ एमएमटी से हटा दिया गया होता था और अन्य प्लेटफार्म पर इनमें कमरे उपलब्ध होते थे.

आदेश के मुताबिक, ‘आयोग ने पाया कि चूंकि इस बाजार में एमएमटी-गो एक प्रमुख खिलाड़ी है इसलिए उपभोक्ता इसकी वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं. ऐसे में एमएमटी-गो के प्लेटफॉर्म पर कोई गलत जानकारी उपभोक्ताओं के नजरिये को प्रभावित कर सकती है और उपभोक्ता को उसी होटल के लिए वैकल्पिक चैनल खोजने से रोक सकती है, यह सोचकर कि ये होटल पूरी तरह फुल हो चुका है.’

सीसीआई ने कहा, इसका नतीजा यह हो सकता है कि होटलों में कम कमरे बुक हों और विभिन्न ओटीए पर पंजीकृत बजट होटल प्रतिस्पर्धा में भी पीछे रह जाएं. यही नहीं इस तरह की गलत जानकारी देना ऐसे होटलों के साथ अन्याय भी है.

इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए ही सीसीआई ने आदेश दिया है कि एमएमटी-गो अपने प्लेटफॉर्म पर पारदर्शी ढंग से जानकारी मुहैया कराए, मसलन किसी होटल या होटल चेन के बारे में जानकारी उसके साथ कांट्रैक्ट खत्म होने के कारण उपलब्ध नहीं है या फिर वहां पर एमएमटी-गो के लिए निर्धारित कोटा पूरा हो गया है.

इसका मतलब है कि एमएमटी-गो को अब अपने प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध न होने वाले कमरों के बारे में पहले से बताना होगा, ताकि उपभोक्ताओं को अन्य प्लेटफार्मों पर उन्हीं कमरों को खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.

एमएमटी-गो और ओयो को सीसीआई का आदेश मिलने के 60 दिनों के भीतर जुर्माना राशि जमा करनी होगी, और एमएमटी को उसी अवधि के भीतर सीसीआई को अनुपालन रिपोर्ट भी भेजनी होगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: नए साइबर सुरक्षा नियम जरूरी पर बोझ भी, MSMEs ने कहा- समय सीमा बढ़ाने पर विचार कर रही सरकार


share & View comments