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Thursday, 25 April, 2024
होमदेशसमिति ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था—किसानों का ‘मौन बहुमत’ कृषि कानूनों का समर्थक, इन्हें निरस्त करना ‘अनुचित’ होगा

समिति ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था—किसानों का ‘मौन बहुमत’ कृषि कानूनों का समर्थक, इन्हें निरस्त करना ‘अनुचित’ होगा

समिति के सदस्यों में से एक अनिल घनवट ने सोमवार को यह रिपोर्ट सार्वजनिक की. उन्होंने कहा कि समिति के सामने अपना पक्ष रखने वाले 73 कृषि निकायों में से 61 ने कृषि कानूनों का समर्थन किया था.

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नई दिल्ली: कृषि कानून मामले में समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त समिति ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश के अधिकांश किसान तीन कृषि कानूनों के समर्थन में हैं और इन कानूनों को ‘निरस्त’ किया जाना या इनका ‘दीर्घकालिक निलंबन’ इस ‘मौन साधे बहुमत’ के लिए अनुचित होगा.

कानून निरस्त होने से आठ महीने पहले कोर्ट में पेश की गई यह रिपोर्ट समिति के सदस्यों में से एक अनिल घनवट ने सोमवार को सार्वजनिक की.

मोदी सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार के उद्देश्य से नवंबर 2020 में तीन कानून बनाए थे—आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020, किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020, और मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता अधिनियम, 2020.

हालांकि, इन कानूनों को लागू किए जाने का किसानों की तरफ से, खासकर उत्तर भारत में भारी विरोध हुआ था. एक साल से अधिक समय तक किसान आंदोलन जारी रहा, जिसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार को नवंबर 2021 में अंततः कानूनों को निरस्त करने पर मजबूर होना पड़ा.

जनवरी 2021 में गठित इस समिति ने 19 मार्च 2021 को अपनी रिपोर्ट शीर्ष कोर्ट को सौंपी. लेकिन इसे पहले सार्वजनिक नहीं किया गया था.

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घनवट ने सोमवार को राष्ट्रीय राजधानी में सोमवार को मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि उन्होंने देश के चीफ जस्टिस (सीजेआई) एन.वी. रमना को पत्र लिखकर उन्हें यह रिपोर्ट सार्वजनिक करने के अपने फैसले के बारे में बता दिया है.

घनवट ने इससे पहले भी समिति के दो अन्य सदस्यों—कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और प्रमोद कुमार जोशी—के साथ मिलकर सीजेआई को दो बार पत्र लिखा था और रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का अनुरोध किया था.

समिति का गठन तत्कालीन सीजेआई एस.ए. बोबडे के नेतृत्व वाली पीठ के निर्देश पर किया गया था, जिसे सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श के बाद विवादास्पद कानूनों पर अपनी सिफारिशें देने को कहा गया था.

घनवट ने प्रेस से बातचीत में कहा, ‘यह (रिपोर्ट) किसानों को कृषि कानूनों के लाभ समझा सकती थी और संभावित तौर पर इन्हें निरस्त किए जाने से भी रोक सकती थी.’

घनवट ने कहा, समिति के समक्ष अपना पक्ष रखने वाले 73 किसान संगठनों में से 61 संगठनों—जो करीब 3.3 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं—ने कृषि कानूनों का पूरी तरह समर्थन किया.

घनवट ने कहा, ‘ज्यादातर आंदोलनकारी किसान पंजाब और उत्तर भारत के थे जहां एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की एक अहम भूमिका निभाता है. इन किसानों को गुमराह करके यह मानने पर बाध्य कर दिया गया कि एमएसपी खतरे में है. जबकि कानून एमएसपी के बारे में कुछ नहीं कहता है.’

घनवट, जो महाराष्ट्र के फार्म यूनियन शेतकारी संगठन के एक वरिष्ठ नेता भी हैं, ने इसे ‘राजनीतिक आंदोलन’ करार देते हुए कहा कि स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव जैसे लोग अपने राजनीतिक हित के लिए किसान आंदोलन में शामिल हुए.


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सुप्रीम कोर्ट की समिति ने क्या की थी सिफारिश

आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1995 को पूरी तरह खत्म करना या फिर इसके प्रावधानों को काफी हद तक लचीला बनाने का कदम उठाना, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्ति समिति की मुख्य सिफारिशों में शामिल था.

सिफारिशों में यह भी कहा गया था कि अबी आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 के तहत प्राइस ट्रिगर खराब होने वाले खाद्य उत्पादों के लिए 100 प्रतिशत और खराब न होने वालों के लिए 50 प्रतिशत हैं, जिसकी समीक्षा की जा सकती है और इसे क्रमशः 200 प्रतिशत और 75 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है.

प्रमुख मंडियों में व्यापार की मात्रा को ध्यान में रखते हुए स्टॉक सीमा की मात्रा यथासंभव पर्याप्त होनी चाहिए. समिति ने सिफारिश की थी, ‘यदि भंडारण सीमा तय की जाती है तो हर पखवाड़े इसकी समीक्षा की जानी चाहिए.’

इसने एमएसपी और खरीद समर्थन नीति पर फिर से विचार की भी सिफारिश की थी, क्योंकि इसे हरित क्रांति के दौरान अनाज के हिसाब से तय किया गया था. समिति ने गेहूं और चावल की खरीद की एक सीमा तय करने का आह्वान भी किया, जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली की जरूरतों के अनुरूप हो.

इसके अलावा, समिति ने यह भी कहा कि एक निर्धारित एमएसपी पर फसलों की खरीद राज्यों की विशेष कृषि नीति संबंधी प्राथमिकताओं के मुताबिक उनका विशेषाधिकार हो सकती है.

इसने मूल्य सूचना और बाजार खुफिया प्रणाली के विकास में तेजी लाने की भी सिफारिश की, जैसा अब निरस्त किए जा चुके किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 की धारा 7 के तहत अनिवार्य बनाया गया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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