नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देते हुए एक ऐतिहासिक घोषणा में कहा है कि जलवायु परिवर्तन ‘‘अस्तित्व के लिए खतरा’’ है।
आईसीजे ने कहा कि जलवायु संबंधी कदम उठाना राष्ट्रों का दायित्व है तथा ऐसा करने के लिए वे कानूनी रूप से बाध्य हैं।
जलवायु परिवर्तन पर आईसीजे के पहले परामर्श विचार को सभी 15 न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया, जो अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत राष्ट्रों की जिम्मेदारियों पर अभूतपूर्व स्पष्टता प्रदान करता है और दुनिया भर में जलवायु संबंधी वाद दायर करने का मार्ग प्रशस्त करता है।
आईसीजे ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रों को ‘ग्रीनहाउस गैस‘ के उत्सर्जन को कम करने, जीवाश्म ईंधन के विस्तार को रोकने और जलवायु संबंधी नुकसान झेल रहे कम विकसित देशों को मुआवजा देने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
आईसीजे ने पाया कि जीवाश्म ईंधन उत्पादन, सब्सिडी और लाइसेंस सहित उत्सर्जन पर कार्रवाई करने में विफलता ‘‘अंतरराष्ट्रीय रूप से गलत कृत्य’’ हो सकता है, जिसके लिए राष्ट्र जिम्मेदार होंगे।
न्यायाधीश इवासावा युजी ने अपनी राय देते हुए जलवायु परिवर्तन को ‘‘ग्रह के स्तर पर एक चिंता का विषय बताया जो सभी प्रकार के जीवन को खतरे में डालती है’’।
उन्होंने कहा कि आईसीजे को उम्मीद है कि ‘‘इसके निष्कर्ष मौजूदा जलवायु संकट को हल करने के उद्देश्य से सामाजिक और राजनीतिक कार्रवाई को सूचित और निर्देशित करने में कानून को सक्षम बनाएंगे’’।
इस साल की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की सुनवाई के दौरान भारत ने दलील दी थी कि विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन की प्राथमिक जिम्मेदारी उठानी चाहिए, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से वैश्विक उत्सर्जन में उनका सबसे ज्यादा योगदान रहा है।
भारत की ओर से दलील देते हुए विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव लूथर एम. रंगरेजी ने कहा था, ‘‘अगर उज्सर्जन में योगदान असमान है, तो जिम्मेदारी वहन करने में भी असमानता होनी चाहिए।’’
भारत ने अदालत से मौजूदा अंतरराष्ट्रीय जलवायु व्यवस्था से परे नए दायित्व बनाने से बचने का आग्रह किया था।
भाषा
सुरभि वैभव
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