नई दिल्ली: ट्रेजेडी किंग, शानदार अभिनेता, भारतीय सिनेमा में मैथड एक्टिंग लाने वाले, हरफनमौला व्यक्तित्व, सिनेमाई लीजेंड- ठीक कुछ इस तरह ही दिलीप कुमार उर्फ यूसुफ खान को याद किया जा सकता है. दिलीप साहब ने जीते जी ही ऐसी विराटता हासिल की जिसे पाना हर किसी के बस में नहीं. ये सब सिर्फ उनके अभिनय के सहारे नहीं था बल्कि उससे इतर जो उन्होंने दुनिया बनाई और उसमें खुद को जाहिर किया, उन चीज़ों ने उन्हें करोड़ों सिनेमा प्रेमी और उनके चाहनेवालों के बीच जगह दी.
98 साल की लंबी उम्र जीने के बाद जब वो हमारे बीच से बुधवार को रुखसत हुए तो न जाने कितनी ही आंखे गमजदा हुईं होंगी. कितनों को ही वो दृश्य और संवाद याद आए होंगे जो उन्होंने पर्दे पर दिलीप कुमार की उपस्थिति के तौर पर दर्ज किए थे. लेकिन उनके जाने के बाद अब एक लंबा सिलसिला खत्म हो गया, एक ऐतिहासिक और सर्व-समावेशी परंपरा आकर थम गई, बहुआयामी व्यक्तित्व वाली शख्सियत की खूबियां हमारे सामने से गुजरने लगी और न जाने कितनी ही दिल और दिमाग में बिखरी यादों ने सिमटकर एक मूर्त रूप ले लिया- दिलीप कुमार साहब का.
बुधवार की मनहूस सुबह दिलीप कुमार की जिंदगी की आखिरी सुब्ह थी. जिन आंखों ने सिनेमाई पर्दे पर चरित्रों को उसकी अपनी नज़र से देखा और उतारा, वो हमारे बीच से चला गया. उनकी मृत्यु की खबर सुनते ही प्रतिक्रियाओं की बाढ़ सी आने लगी. सबने उनसे जुड़ी अपनी-अपनी यादें बांटनी शुरू कर दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांस्कृतिक जगत के लिए बड़ा नुकसान बताया और उन्हें सिनेमाई लीजेंड कहा.
लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन, पीएम नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, फिल्मी और राजनीतिक जगत की तमाम हस्तियों ने उनकी मृत्यु को एक युग का अंत बताया.
सुर कोकिला लता मंगेशकर ने कहा, ‘यूसुफ़ भाई पिछले कई सालों से बीमार थे, किसी को पहचान नहीं पाते थे, ऐसे वक़्त में सायरा भाभी ने सब छोड़कर उनकी दिन रात सेवा की है उनके लिए दूसरा कुछ जीवन नहीं था. ऐसी औरत को मैं प्रणाम करती हूं और यूसुफ़ भाई की आत्मा को शांति मिले ये दुआ करती हूं.’
‘यूसुफ़ भाई आज अपनी छोटीसी बहन को छोड़के चले गए.. यूसुफ़ भाई क्या गए, एक युग का अंत हो गया. मुझे कुछ सूझ नहीं रहा. मैं बहुत दुखी हूं, नि:शब्द हूं. कई बातें कई यादें हमें देके चले गए.’
यूसुफ़ भाई पिछले कई सालों से बिमार थे, किसीको पहचान नहीं पाते थे ऐसे वक़्त सायरा भाभीने सब छोड़कर उनकी दिन रात सेवा की है उनके लिए दूसरा कुछ जीवन नहीं था. ऐसी औरत को मैं प्रणाम करती हूँ और यूसुफ़ भाई कीं आत्मा को शान्ति मिले ये दुआ करती हूँ.
— Lata Mangeshkar (@mangeshkarlata) July 7, 2021
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दिलीप कुमार और उनकी बेमिसाल फिल्में
दिलीप साहब ने अपने सिनेमाई सफर में 60 के करीब ही फिल्में की लेकिन उनमें से लगभग सभी लोगों के जहन में उतरीं और अपनी जगह बनाई. उन्हीं में से कुछ फिल्में अक्सर याद आ जाती हैं. जैसे अमर, यहूदी, मुगल-ए-आज़म, नया दौर, मधुमती, लीडर, सगीना, संगदिल, गोपी, राम और श्याम, आन, पैगाम, तराना, क्रांति समेत और भी कईं.
1951 में आई उनकी फिल्म तराना को कम ही याद किया जाता है लेकिन उस दौर में जितनी बखूबी के साथ लव स्टोरी को रोमांचक ढंग से पर्दे पर उतारा गया और दिलीप साहब ने जो अदाकारी निभाई वो सिनेमा प्रेमियों को जरूर याद आती होंगी. एक अमीर घर का लड़का हवाई जहाज से सफर करता है और अचानक उसका प्लेन क्रैश हो जाता है और वो किसी दूर के गांव में जाकर गिरता है, जहां उसकी मुलाकात एक ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी लड़की से होती है और उन दोनों में प्यार हो जाता है. वर्ग संघर्ष और अमीरी-गरीबी की क्रूर खाई और असमानता के बावजूद इस फिल्म के जरिए समाज में पैठ बना चुकी रूढ़िवादी सोच पर चोट की गई थी, जो उस दौर में क्रांतिकारी कदम जरूर रही होगी.
इसी तरह 1954 में महबूब खान के निर्देशन में बनी फिल्म अमर ने भी बलात्कार (रेप) जैसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दे को गंभीरता से उठाया और सामाजिक ताने-बाने में उसकी प्रतिक्रिया दर्ज की. तराना की ही तरह इस फिल्म में भी दिलीप कुमार के साथ मधुबाला ने मुख्य भूमिका निभाई थी. उनके साथ अभिनेत्री निम्मी भी इस फिल्म में थीं.
1957 में आई फिल्म नया दौर ने एक बहस छेड़ दी थी जो विकास बनाम उसके परिणामों को लेकर थी. दिलीप कुमार ने इस फिल्म में एक गंवई लड़के का किरदार निभाया है जो तांगा चलाकर अपनी जिंदगी बसर करता है. लेकिन तभी उसके गांव में मोटर का प्रवेश होता है जो कई लोगों की आजीविका के लिए खतरे का सबब बनने लगती है. तभी मोटर बनाम तांगा की जंग होती है और उसके लिए लोगों के सामूहिक संघर्ष की कहानी जिस संवेदनशीलता और लगन के साथ चलती है, उसे दिलीप साहब जैसी शख्सियत ही निभा सकते थे.
1952 में आई फिल्म आन में दिलीप कुमार के साथ निम्मी और नादिरा ने भूमिका निभाई है. एक मगरूर लड़की के घमंड को जिस सादगी से दिलीप साहब ने तोड़ा है और असमानता की खाई को दिखाया है, वो इसे क्लासिक फिल्मों की श्रेणी में बदल देता है. इस फिल्म का संगीत नौशाद साहब ने दिया था और इसका गीत ‘दिल में छुपाकर प्यार का तूफान ले चले ‘ आज भी लोगों की पसंद है.
भारतीय सिनेमा की ऑल टाइम बेस्ट सिनेमा की श्रेणी में मुगल-ए-आज़म फिल्म को शामिल किया जाता है. इस फिल्म के संवाद और दिलीप साहब की अदाकारी ने उन्हें लोगों के दिलों में बिठा दिया.
एक बुलंद आवाज़ के साथ फिल्म ये कहते हुए शुरू होती है-
मैं हिंदुस्तान हूं….हिमालया मेरी सरहदों का निगेहबान है…गंगा मेरी पवित्रता की सौगंध, तारीख की फिदा से मैं अंधेरों और उजालों का साथी हूं, और मेरी खाक पर संगेमरमर की चादरों में लिपटी हुई ये इमारतें दुनिया से कह रही हैं कि जालिमों ने मुझे लूटा और मेहरबानों ने मुझे संवारा, नादानों ने मुझे जंजीरें पहना दीं और मेरे चाहने वालों ने उन्हें काट फेंका…मेरे इन चाहने वालों में एक इंसान का नाम जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर था..!!
दिलचस्प बात ये है कि जिस वक्त मुगल-ए-आजम की शूटिंग चल रही थी तब दिलीप कुमार और मधुबाला एक दूसरे से बात नहीं करते थे. लेकिन फिल्म देखते हुए कहीं भी आपको महसूस नहीं होगा कि दोनों में ऐसा कुछ चल रहा था. गौरतलब है कि दिलीप कुमार और मधुबाला असल जिंदगी में एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे.
सिनेमाई पर्दे पर जिस कौंधती आवाज़, लीडर जैसी फिल्म में उठाए गए सामाजिक मुद्दों, बदलते हाव-भाव, गंवई ठेठपन को हम उनके जिंदा रहते हुए महसूस करते आए थे, अब वो शख्सियत हमसे दूर चला गया है. दिलीप साहब भारतीय सिनेमा के इतने बड़े किरदार हैं कि अमिताभ बच्चन ने उन्हें आखिरी बार याद करते हुए कहा, ‘जब भी भारतीय सिनेमा का इतिहास लिखा जाएगा, तो उसे हमेशा दिलीप कुमार से पहले और दिलीप कुमार के बाद के तौर पर याद रखा जाएगा.’
निशान-ए-इम्तियाज
पेशावर में जन्मे दिलीप कुमार को पाकिस्तान की सरकार ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए- इम्तियाज़ से नवाजा था. उनके निधन पर पाकिस्तान में भी शोक की लहर है.
दिलीप कुमार के निधन पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्वीट किया, ‘दिलीप साहब के निधन की खबर सुनकर दुख हुआ. ‘
उन्होंने आगे लिखा, ‘जब मैं जब SKMTH परियोजना शुरू कर रहा था तो इसके लिए धन जुटाने में उन्होंने जो उदारता दिखाई थी उसे कभी नहीं भूल सकता हूं.’
इमरान खान आगे लिखते हैं, ‘यह सबसे कठिन समय है- पहले 10% धन जुटाने के लिए पाकिस्तान और लंदन में उनकी उपस्थिति ने बड़ी रकम जुटाने में मदद की थी. इसके अलावा मेरी पीढ़ी के लिए दिलीप कुमार सबसे महान और सबसे बहुमुखी अभिनेता थे.’
Saddened to learn of Dilip Kumar's passing. I can never forget his generosity in giving his time to help raise funds for SKMTH when project launched. This is the most difficult time – to raise first 10% of the funds & his appearance in Pak & London helped raise huge amounts.
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) July 7, 2021
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