नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के बिदिशा जिले के 18 साल के सुरजीत लोधी अपने गांव के 120 बच्चों को कठिन परिस्थितियों से निकालते हुए शिक्षा दिलवाने में मदद कर रहे हैं. वह बच्चों को शिक्षा हासिल करने के लिए जागरूक भी कर रहे हैं.
वहीं, 25 साल के अमर लाल सामाजिक कार्यकर्ता और बाल अधिकार वकील के रूप में काम कर रहे हैं. अमर लाल परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए सात साल की उम्र में अपने पिता के साथ पत्थर की खदान में काम करने को मजबूर थे. साल 2001 में उन्हें कैलाश सत्यार्थी द्वारा रेस्क्यू किया गया था.
दूसरी ओर राजस्थान के अलवर जिले के निमड़ी गांव की तारा बंजारा अपनी स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं और उनका सपना है कि वह पुलिस फोर्स में जाएं. 17 साल की तारा का बचपन सड़क निर्माण की साइट पर मजदूरी करते हुए बीता था.
17 साल की ललिता धूरिया राजस्थान की जयपुर के डेरा गांव की हैं. ललिता लड़कियों की शिक्षित बनाने के लिए जागरूकता अभियान चलाती रहती हैं. साथ ही वह स्कूल ड्रॉपआउट बच्चों को फिर से स्कूल ले जाने के लिए भी प्रेरित करती हैं. वह मीलों पैदल चलती है ताकि कोई बच्चा अशिक्षित न रहे. ललिता का यह भी कहना है कि बच्चों के साथ किसी तरह का भेदभाव न किया जाए.
झारखंड के गिरिडीह जिले के दुरियाकरम गांव के नीरज मात्र 10 साल की उम्र में नीरज मायका माइन (अभ्रक खदान) में काम करने को मजबूर थे. साल 2011 में बीबीए कार्यकर्ताओं ने उनका रेस्क्यू किया था. इसके बाद से बालश्रम की रोकथाम के लिए नीरज काम कर रहे हैं.
देश में बाल मजदूरी के दलदल से निकलकर सामाजिक बदलाव के जरिए अपनी अलग पहचान बनाने वाले और आज देश-दुनिया में यूथ लीडर की भूमिका निभा रहे युवाओं को पिछले दिनों सम्मानित किया गया. अब ये बच्चे यूथ लीडर बनकर बाल मजदूर का विरोध कर रहे है.
परिचर्चा का आयोजन नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फांउडेशन (केएससीएफ) की ओर से किया गया था.
परिचर्चा का विषय था कि ‘क्या साल 2025 तक भारत बालश्रम को पूरी तरह से खत्म कर पाएगा.’ इस मौके पर समाज में बदलाव लाने वाले नौ यूथ लीडर्स को रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (आरपीएफ़) के डायरेक्टर जनरल संजय चंदर ने सम्मानित भी किया.
संसद से चंद कदमों की दूरी पर हुई इस परिचर्चा में बच्चों ने अपनी मांगें भी रखीं. इनमें सबसे अहम थी कि बाल मजदूरी में लगे बच्चों के लिए रेस्क्यू एवं पुनर्वास नीति लाई जाए. रेजीडेंशियल स्कूल व रेस्क्यू किए गए बच्चों के लिए बजट में वृद्धि भी हो. इस नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए देश के सभी 749 जिलों को राष्ट्रीय बालश्रम योजना (एनसीएलपी) के अंतर्गत घोषित किया जाए और तकनीक पर आधारित निगरानी प्रणाली सुनिश्चित की जाए.
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18 साल के सुरजीत दूसरे बच्चों के लिए बने प्रेरणा
18 साल के सुरजीत लोधी अपने गांव के 120 बच्चों को कठिन परिस्थितियों से निकालते हुए शिक्षा दिलवा रहे हैं. साथ ही उन्होंने शराब के खिलाफ भी मुहिम चलाए हुए हैं, सुरजीत अब तक अपने गांव व आसपास शराब की पांच दुकानों को बंद भी करवा चुके हैं. साल 2021 में सुरजीत को प्रतिष्ठित डायना अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. सुरजीत आज दूसरे बच्चों के लिए एक प्रेरणा बन चुके हैं.
सुरजीत कहते हैं कि बालश्रम के खिलाफ मौजूदा कानून को और अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है. सुरजीत ने कहा, ‘हम सरकार से आग्रह करते हैं कि वह जल्द से जल्द संसद में एंटी ट्रैफिकिंग बिल को पास करवाए क्योंकि बालश्रम के जाल में फंसने वाले बच्चे सबसे ज्यादा ट्रैफिकिंग के जरिए ही लाए जाते हैं.’ सुरजीत यह भी चाहते हैं कि शराबबंदी को हर तरह से प्रतिबंधित किया जाए.
सम्मानित होने वाले यूथ लीडर्स में से तीन राजस्थान के हैं. इनमें तारा बंजारा, अमर लाल और राजेश जाटव हाल ही में दक्षिण अफ्रीका की राजधानी डरबन में हुए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के पांचवें अधिवेशन में भारत की युवा आवाज बने थे.
भरतपुर जिले के अकबरपुर गांव से आने वाले 21 साल के राजेश जाटव आठ साल की उम्र में एक ईंट भट्ठे पर मजदूरी करते थे. उस समय रेस्क्यू के बाद राजेश को बाल आश्रम में पुनर्वास के लिए लाया गया था और फिर विराट नगर स्थित बीबीए के ट्रेनिंग सेंटर में भेजा गया. आज राजेश दिल्ली में फाइनेंस में एमबीए की पढ़ाई कर रहे हैं.
17 साल की ललिता मीलों पैदल चलती है
17 साल की ललिता धूरिया और 19 साल की पायल जांगिड़ भी राजस्थान से ही आती हैं. ये दोनों ही सामाजिक बदलाव के लिए काम कर रही हैं. ये दोनों लड़कियां रीबॉक फिट टू फाइट अवॉर्ड से सम्मानित की जा चुकी हैं. ललिता जयपुर के डेरा गांव से आती हैं और बाल मित्र ग्राम की सक्रिय कार्यकर्ता हैं. बाल मित्र ग्राम केएससीएफ का एक अभिनव प्रयोग है जो यह सुनिश्चित करता है कि हर बच्चा सुरक्षित, स्वतंत्र और सुशिक्षित हो सके. अशोका यंग चेंजमेकर अवॉर्ड से सम्मानित हो चुकीं ललिता लड़कियों को शिक्षित बनाने के लिए जागरूकता अभियान चलाती रहती हैं. साथ ही वह स्कूल ड्रॉपआउट बच्चों को फिर से स्कूल ले जाने के लिए भी प्रेरित करती हैं. ललिता कहती हैं, ‘मैं मीलों चलती हूं, अपने गांव में हर घर का दरवाजा खटखटाती हूं और पता करती हूं कि किसी घर में कोई बच्चा ऐसा तो नहीं है जो स्कूल न जा रहा हो. अगर ऐसा कोई बच्चा मिलता है तो उनके परिवारों को समझाती हूं कि वह बच्चे को स्कूल जरूर भेजें.’ ललिता का यह भी कहना है कि बच्चों के साथ किसी तरह का भेदभाव न किया जाए.
अलवर जिले के ही गांव हिंसला से आने वाली पायल जिंगड़ा भी बाल मित्र ग्राम का हिस्सा हैं. पायल की लड़ाई ने केवल बालश्रम के खिलाफ ही नहीं, बल्कि घूंघट पर्दा के खिलाफ भी है. साल 2013 में जब स्वीडिश काउंसिल के सदस्य पायल के कामकाज की समीक्षा करने आए थे तो उसके काम से इतना प्रभावित हुए कि पायल का चयन वर्ल्ड चिल्ड्रेन्स प्राइज चुनने वाली जूरी के सदस्य के रूप में कर लिया. पायल कहती हैं, ‘मैं अपने गांव के बच्चों को एकजुट रखने का प्रयास करती हूं, अगर वो एक साथ आएंगे तो किसी भी तरह के अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकेंगे. खुद के सशक्तीकरण के लिए शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है.’ पायल चाहती हैं कि महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा मिले और हर क्षेत्र में उन्हें काम करने का अवसर मिले.
नीरज बालश्रम की रोकथाम के लिए काम कर रहे हैं
सम्मानित होने वाले तीन यूथ लीडर्स झारखंड राज्य से आते हैं. इनमें 22 साल के नीरज मुर्मु, 16 साल की चंपा कुमारी और 17 साल की राधा कुमारी हैं. यह तीनों ही अपने राज्य में सामाजिक बदलाव की पहचान बन चुके हैं.
नीरज गिरिडीह जिले के दुरियाकरम गांव से आते हैं. मात्र 10 साल की उम्र में नीरज मायका माइन (अभ्रक खदान) में काम करने को मजबूर थे. साल 2011 में बीबीए कार्यकर्ताओं ने उनको रेस्क्यू किया था. इसके बाद से बालश्रम की रोकथाम के लिए नीरज काम कर रहे हैं. वह अब तक मायका माइन के दलदल से 20 बच्चों को निकाल चुके हैं और बच्चों को शिक्षित बनाने के लिए जागरूकता अभियान चलाते हैं. एक यूथ लीडर के रूप में वह अनेक परिवारों को सरकार द्वारा संचालित स्कीमों से जोड़ चुके हैं. नीरज भी साल 2020 में डायना अवॉर्ड से सम्मानित हो चुके हैं.
नीरज कहते हैं, ‘बच्चों को शिक्षित बनाकर ही बालश्रम की बुराई से लड़ा जा सकता है. गांव के बच्चों को ट्रैफिकर्स के जाल से बचाने के लिए जरूरी है कि स्थानीय लोग और सरकारी अधिकारी एकजुट होकर काम करें.’ नीरज ने रेस्क्यू किए जाने वाले बच्चों के लिए उचित पुनर्वास नीति और कड़े कानून की वकालत भी की. साथ ही नीरज ने कहा कि बालश्रम को रोकने व रेस्क्यू किए गए बच्चों के पुनर्वास नीति का क्रियान्वयन और भी बेहतर किया जाए.
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डायना अवॉर्ड से ही सम्मानित होने वाली राज्य की चंपा कुमारी भी हैं. 12 साल की उम्र में चंपा मायका माइन में काम करती थीं और उन्हें भी बीबीए कार्यकर्ताओं ने रेस्क्यू किया था. चंपा ने बाल विवाह के खिलाफ भी लंबी लड़ाई लड़ी है. चंपा अपने जिले को बालश्रम से मुक्त करवाने के लिए दिन-रात काम करती हैं. बाल शोषण के किसी भी रूप को हर तरह से खत्म करने का चंपा का संकल्प, उन्हें कई अवॉर्ड दिलवा चुका है. चंपा कहती हैं, ‘मैं बाल विवाह और बालश्रम जैसी बुराइयों के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखूंगी.’
बालश्रम, बाल विवाह और ट्रैफिकिंग के खिलाफ लड़ने वाली एक और यूथ लीडर हैं राधा कुमारी, जो कि कोडरमा जिले की मधुबन पंचायत से आती हैं. बाल विवाह की रोकथाम के उनके प्रयासों व लड़कियों के सशक्तीकरण के लिए उनके प्रयासों को राज्य सरकार ने भी पहचाना है. यह कारण है कि उन्हें जिले में बाल विवाह के खिलाफ मुहिम का ब्रांड एम्बेस्डर बनाया गया है. राधा कहती हैं, ‘बाल विवाह पर पूरी तरह से लगाम लगाने के लिए जरूरी है कि समाज की सोच में बदलाव लाया जाए, खासकर लड़कियों के प्रति नजरिए में. राधा का यह भी मानना है कि लड़कियों की शिक्षा पूरी तरह से फ्री किया जाए. क्योंकि गरीबी के चलते बहुत से मां-बाप बेटियों को पढ़ाने का बोझ नहीं उठा सकते. ऐसे में वे उनका कम उम्र में ही विवाह कर देते हैं.
आरपीएफ डायरेक्ट ने की सराहना
इन यूथ लीडर्स के प्रयासों की सराहना करते हुए आरपीएफ के डायरेक्टर जनरल (डीजी) संजय चंदर ने कहा, ‘इन बच्चों व युवाओं में समाज को बदलने की ताकत है और यही लोग समाज की कुरीतियों का अंत कर सकेंगे.’ डीजी ने कहा, इन बच्चों को सम्मानित करके मुझे बहुत खुशी महसूस हो रही है.’
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