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Friday, 22 November, 2024
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छत्तीसगढ़ के CM बघेल ने शांति वार्ता की नक्सलियों की शर्त नकारी, कहा- आप ‘कंडीशन’ नहीं थोप सकते

बघेल ने कहा कि नक्सलियों को पहले हथियार छोड़कर भारत के संविधान में आस्था जतानी पड़ेगी, तभी शांतिवार्ता हो सकेगी. नक्सलियों की शर्त पर किसी प्रकार की बातचीत संभव नहीं है.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में नक्सली शांति वार्ता के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्होंने राज्य और केंद्र सरकार द्वारा उनके खिलाफ की जा रही लगातार कार्रवाई को पहले रोकने की शर्त रखी है जिसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सिरे से खारिज कर दिया है.

बघेल ने दिप्रिंट से कहा है कि ‘नक्सली शर्त नहीं थोप सकते हैं, उन्हें पहले हिंसा और हथियार का रास्ता छोड़ना पड़ेगा तभी उनसे बात संभव है.’

दिप्रिंट से बात करते हुए सीएम बघेल ने साफ कहा कि ‘नक्सलियों के साथ शांतिवार्ता उनकी शर्तों पर नहीं बल्कि सरकार की नीति के अनुसार होगी.’

बघेल ने दिप्रिंट से विशेष बातचीत में यह भी कहा, ‘नक्सलियों के साथ बातचीत करने में राज्य सरकार को परहेज नहीं है लेकिन बात हमारी सरकार की नीति और देश के संविधान के दायरे में ही होगी.’

‘उन्हें पहले हथियार छोड़कर भारत के संविधान प्रति आस्था जतानी पड़ेगी, तभी बातचीत हो सकेगी. नक्सलियों की शर्त पर किसी प्रकार की बातचीत नही हो सकती.’

असम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कमान संभाल रहे बघेल ने कहा, ‘बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों की बढ़ती तैनाती और लगातार हो रही कार्रवाई से नक्सली दबाव में आ रहे हैं.’

वह आगे कहते हैं, ‘राज्य पुलिस और केंद्रीय सुरक्षाबलों की कार्रवाई से एक ओर जहां कई माओवादी लगातार सरेंडर कर रहें हैं वहीं दूसरी ओर गांवों के युवाओं में उनके प्रति लोकप्रियता घट रही है जिससे नक्सली परेशान हैं.’

बता दें कि पिछले दिनों नक्सलियों ने 12 मार्च को एक पर्चा जारी किया है जिसमें सरकार से शांतिवार्ता को लेकर कुछ शर्तें रखीं हैं.

मुख्यमंत्री का जवाब नक्सलियों द्वारा शांतिवार्ता के लिए रखी गई शर्तों के खिलाफ ऐसे वक्त पर आया है जब दो दिन पहले 17 मार्च को राज्य के गृहमंत्री और मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र ताम्रध्वज साहू ने स्वयं मीडिया से कहा था, ‘सरकार को पत्र मिलने पर नक्सलियों के साथ बिना किसी शर्त के शांतिवार्ता पर विचार किया जा सकता है. सरकार की मंशा शांति स्थापित करने की है. इस संबंध में मुख्यमंत्री से बात की जाएगी.’


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क्या हैं शर्तें

बस्तर स्थित सीपीआई (माओवादी) की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (डीकेएसजेडसी) के प्रवक्ता विकल्प द्वारा जारी इस पर्चे में कहा गया है कि वे शांति वार्ता ले लिए तैयार हैं बशर्ते छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों से पुलिस और सुरक्षाबलों के कैम्प हटाये, उनकी पार्टी पर लगे बैन हटाए और जेल में बंद उनके नेताओं को रिहा करे.

डीकेएसजेडसी के प्रवक्ता ने अपने पर्चे में यह भी लिखा है कि, ‘हमारी पार्टी विगत कई सालों से यह घोषणा करती आ रही है कि पीड़ित वर्गों व तबकों की जनता के हित ही हमारे लिए सर्वोपरि हैं. इसलिए जनता के फायदे के लिए हम हमेशा शांति वार्ता के लिए तैयार हैं.’

बयान में आगे यह भी कहा गया है कि ‘सबसे पहले सरकार वार्ता के लिए अनुकूल माहौल बनाने संघर्ष इलाकों से सरकारी सशस्त्र बलों के कैंपों को हटाएं व उन्हें उनके मूल बैरकों में लौटाएं, हमारी पार्टी पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाएं और जेलों में बंद पार्टी नेताओं को निशर्त रिहा करें.’

नक्सलियों का यह बयान सालों से शांतिवार्ता के लिए संघर्षरत एक्टिविस्ट और पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी और राज्य के जनजातीय नेताओं की एक सिविल सोसाइटी द्वारा धुर नक्सली क्षेत्र अबूझमाड़ से रायपुर के लिए 12 मार्च को निकाली गई शांति यात्रा के बाद दिया आया है.

शांति यात्रा का समापन 6 अप्रैल को राजधानी रायपुर में होगा. हालांकि, नक्सलियों ने चौधरी को ‘कॉर्पोरेट लूट’ और ‘सरकारी दमन का मुखौटा’ और उनके शांति यात्रा को एक धोखा बताया है. लेकिन सिविल सोसायटी के नेताओं से अपील भी की है कि बस्तर में सुरक्षाबलों द्वारा उनके खिलाफ चलाए जा रहे सशस्त्र अभियान सामधाम को रोकने के लिए राज्य सरकार पर दबाव बनाएं.

नक्सली प्रवक्ता ने अपने बयान में पहले विफल हुई शांतिवार्ता का हवाला देते हुए सिविल सोसायटी को इसके प्रति सतर्क रहने को भी कहा है.

नक्सली प्रवक्ता ने सिविल सोसाइटी को आगाह करते हुए साफ कहा है कि, ‘हमारी पार्टी और सरकार के बीच वार्ता के विगत के अनुभवों से सिविल सोसायटी को सबक लेना चाहिए क्योंकि आंध्र प्रदेश में पिछले दिनों बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ‘सिटिजंस कमेटी’ के ईमानदार प्रयासों से 2004 में आंध्र प्रदेश सरकार के साथ हमारी जो वार्ता शुरू हुई थी उसे दो बार की बातचीत के बाद सरकार ने एकतरफा बंद किया था और भीषण दमन का प्रयोग किया था. उसके बाद 2010 में वार्ता के लिए स्वामी अग्निवेश ने जो पहल शुरू की थी, उन्हें धोखा देते हुए उसे न सिर्फ बंद किया गया बल्कि हमारी केंद्रीय कमेटी के पोलित ब्यूरो सदस्य व प्रवक्ता कॉमरेड् आजाद की झूठी मुठभेड़ में पाशविक तरीके से हत्या की गयी.’

विश्वसनीयता और ठोस मध्यस्थता

शांति यात्रा में शामिल हुए सिविल सोसायटी के सदस्यों का कहना है कि माओवादियों का शांतिवार्ता के लिए वक्तव्य एक प्रकार से स्थानीय लोगों की मांग पर मुहर लगाना है.

हालांकि, अब गेंद सरकार के पाले में है. सोसायटी के वरिष्ठ सदस्य और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने दिप्रिंट से कहा , ‘नक्सलवाद की समस्या बहुत पेंचीदा हो गई है. लगता नहीं कि शांतिवार्ता की प्रक्रिया आसानी से शुरू हो पाएगी क्योंकि शर्तें दोनों तरफ (माओवादियों और सरकार) से आएंगी. ऐसे में सिविल सोसायटी के अलावा देश के ऐसे लोगों को आगे आना पड़ेगा जो सरकार और माओवादियों के बीच विश्वसनीय और ठोस मध्यस्थता कर सके.’

वहीं सोसायटी के गठन की पहल करने वाले शुभ्रांशु चौधरी ने दिप्रिंट को बताया,’मुझे खुशी है कि माओवादियों ने जनता की मांग को देखते हुए यह कदम उठाया है. हालांकि, उनकी शर्तें काफी कठिन हैं लेकिन गेंद सरकार के पाले में है. यह सरकार को समझना है वह इसे किस रूप में लेती है.’

चौधरी ने बताया, ‘माओवादियों के आफर पर विचार तो किया सकता है और दोनों तरफ की शर्तों के बीच कोई रास्ता निकाला जाना चाहिए. इसे जितना जल्दी कर लिया जाए उतना अच्छा रहेगा क्योंकि आनेवाला समय और भयावह हो सकता है.’

राज्य के जनजातीय नेताओं की 20 से भी ज्यादा सदस्यों वाली इस सिविल सोसायटी का गठन शांति यात्रा के लिए 3 मार्च को किया गया था.

बता दें कि जनवरी 2018 और दिसंबर 2020 के बीच सुराक्षबलों ने सुकमा जिले में अधिकतम 82 और राज्य में कुल 216 नक्सलियों को मार गिराया था. इसके अलावा 966 माओवादियों ने इस दौरान आत्मसमर्पण किया. यह जानकारी राज्य के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने पिछले साल 23 दिसंबर को विधानसभा में दी थी. इस साल मारे गए नक्सलियों के आंकड़े अभी जारी नहीं किए गए हैं, लेकिन दंतेवाड़ा पुलिस ने 20 मार्च को हुए हालिया मुठभेड़ में दो इनामी माओवादीओं को मार गिराया. मुठभेड़ उस वक्त हुई जब माओवादियों ने एक पुलिस पेट्रोलिंग पार्टी पर घात लगाकर हमला करने का प्रयास किया.


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