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Saturday, 20 April, 2024
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चंद्रयान-2 का श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण, प्रधानमंत्री ने मिशन मून की वैज्ञानिकों को दी बधाई

चंद्रयान-2 छह या सात सितंबर को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव के पास लैंड करेगा. ऐसा होते ही भारत चांद की सतह पर लैंड करने वाला चौथा देश बन जाएगा.

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चेन्नई: चंद्रयान-2 अपने लक्ष्य की ओर श्रीहरिकोटा से उड़ान भर चुका है. हजारों लोगों ने इस ऐतिहासिक पल को नंगी आंखों से देखा. 15 जुलाई को आखिरी मिनट में चंद्रयान-2 में तकनीकी खराबी आने के बाद लांचिंग रोके के जाने के बाद इसरो के वैज्ञानिक इसबार कोई गलती नहीं करना चाहते थे. रॉकेट सोमवार को दोपहर 2.43 बजे प्रक्षेपित किया गया. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने यह जानकारी दी. चंद्रयान-2 परियोजना 978 करोड़ रुपये की है.

इसरो प्रमुख के सिवन ने चंद्रयान2 की सफलता पर कहा कि मैं जीएसएलवीएमके तृतीय की सफलता पर काफी खुश हूं. यह ऐतिहासिक यात्रा की शुरुआत मात्र है जब भारत चंद्रमा की ओर उड़ान भरी है और वह दक्षिणी पोल पर वैज्ञानिकों की सफलता की कहानी कहेगा. इसरो चीफ ने कहा कि पिछली बार हमें आखिरी समय में गड़बड़ी का पता चला था, हमने उसे फिक्स किया और अब एकबार फिर इसरो ने छलांग मारी है. जिस समय श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-2 उड़ान भर रहा था उस समय भारत की 130 करोड़ आंखों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने ऑफिस में देश को इतिहास लिखता हुआ देख रहे थे.

भारत के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण है. चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण से आज पूरा देश गौरवान्वित है. मैंने थोड़ी देर पहले ही इसके लॉन्च में निरंतर तन-मन से जुटे रहे वैज्ञानिकों से बात की और उन्हें पूरे देश की ओर से बधाई दी.

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इसरो के अनुसार, दूसरे चरण/इंजन में अनसिमिट्रिकल डाइमिथाइलहाइड्राजाइन (यूडीएमएच) और नाइट्रोजन टेट्रोक्साइड (एन2ओ4) के साथ ईंधन भरने की प्रक्रिया हो चुकी है. फिलहाल इसमें तरल हाइड्रोजन क्रायोजेनिक स्टेज (सी25) GSLVMkIII-M1 भरे जाने की मिनट-मिनट की जानकारी से दुनिया को अवगत कराया.

चंद्रयान-2 के साथ जीएसएलवी-एमके तृतीय को पहले 15 जुलाई को तड़के 2.51 बजे प्रक्षेपित किया जाना था. हालांकि प्रक्षेपण से एक घंटा पहले एक तकनीकी खामी के पाए जाने के बाद प्रक्षेपक्ष स्थगित कर दिया गया था. इसरो ने बाद में 44 मीटर लंबे और लगभग 640 टन वजनी जियोसिंक्रोनाइज सैटेलाइट लांच व्हीकल – मार्क तृतीय (जीएसएलवी – एमके तृतीय) की खामी को दूर कर दिया. जीएसएलवी – मार्क तृतीय का उपनाम बाहुबली फिल्म के इसी नाम के सुपर हीरो के नाम पर बाहुबली रखा गया है.

फिल्म में जैसे नायक विशाल और भारी शिवलिंग को उठाता है, उसी तरह रॉकेट भी 3.8 टन वजनी चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान को उठाकर अंतरिक्ष में ले जाएगा.

छह या सात सितंबर को चंद्रमा पर करेगा लैंड

उड़ान के लगभग 16वें मिनट में 375 करोड़ रुपये का जीएसएलवी-मार्क तृतीय रॉकेट 603 करोड़ रुपये के चंद्रयान-2 विमान को अपनी 170 गुणा 39, 120 किलोमीटर लंबी कक्षा में उतार देगा. चंद्रयान-2 छह या सात सितंबर को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव के पास लैंड करेगा. ऐसा होते ही भारत चांद की सतह पर लैंड करने वाला चौथा देश बन जाएगा.

इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन अपने यानों को चांद पर भेज चुका है. लेकिन यहां यह जानना जरूरी है कि कई वर्ष पहले चांद की सतह पर पहुंच चुके ये देश भी अबतक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास अपना यान नहीं उतार पाए हैं.

इसरो अब तक तीन जीएसएलवी-एमके तृतीय भेज चुका है.

चांद पर ले जाने में अहल भूमिका महिलाओं की

इसरो के चंद्रयान-2 में सबसे खास बात यह है कि इस यान की पूरी जिम्मेदारी दो महिला वैज्ञानिकों के हाथों में है. चंद्रयान -2 की दो मिशन डायरेक्टर महिला हैं. जबकि यान की देखरेख में विशेष रोवर ‘प्रज्ञान’ की कई तकनीक आईआईटी कानपुर में तैयार की गई हैं.

मोशन प्लानिंग यानी चांद की सतह पर रोवर कैसे, कब और कहां उतरेगा और किस तरह से यह जांच करेगा इसका पूरा खाका आईआईटी कानपुर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग और मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग ने तैयार किया है. इसमें अहम भूमिका निभाई है सीनियर प्रोफेसर केए वेंकटेश और मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के सीनियर प्रोफेसर आशीष दत्ता ने.

क्या खोज करेगा यान

अगर चंद्रयान-2 दुनिया में पहली बार दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा. अभी तक दुनिया का कोई भी यान यहां नहीं उतारा गया है. अगर यान चांद पर बर्फ की खोजने में सफल होता है तो वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में यहां इंसानों का प्रवास के लिए संभावनाएं प्रबल हो जाएंगी. लॉन्चिंग के 53 से 54 दिन बाद चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान- 2 की लैंडिंग होगी और अगले 14 दिन तक यह डाटा जुटाएगा.

चंद्रयान-1 2009 में भेजा गया था

महज 10 साल में दूसरी बार चांद पर इसरो अपना यान उतारने जा रहा है. चंद्रयान-1 2009 में भेजा गया था. हालांकि, उसमें रोवर शामिल नहीं था. चंद्रयान-1 में केवल एक ऑर्बिटर और इंपैक्टर था जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा था. इसको चांद की सतह से 100 किमी दूर कक्षा में स्थापित किया गया था.

जीएसएलवी-एमके तृतीय का उपयोग 2022 में भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन में भी किया जाएगा.

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