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Saturday, 21 December, 2024
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सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की बहाली, लेकिन नहीं ले सकेंगे कोई बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा की पद पर बहाली का आदेश दिया है. यह केंद्र सरकार के लिए झटका है.

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नई दिल्लीः हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा की पद पर सुप्रीम कोर्ट ने बहाली का आदेश दिया है. हालांकि, कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि वे फिलहाल कोई नीतिगत बड़ा फैसला नहीं ले सकेंगे. यह केंद्र सरकार के लिए झटका है, क्योंकि अदालत ने आधी रात को जारी किए गए सीवीसी के उस आदेश को निरस्त किया है, जिसमें आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा गया था.

वर्मा ने केंद्र सरकार द्वारा उनके अधिकार छीनने और जबरन छुट्टी पर भेजने के खिलाफ याचिका दायर की थी. सरकार ने वर्मा और सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच विवाद सार्वजनिक होने के बाद यह कार्रवाई की थी.

हालांकि, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई आज छुट्टी पर हैं इसलिए जस्टिस संजय किशन कौल ने फैसला पढ़ा. बता दें कि पीठ ने 6 दिसंबर को आलोक वर्मा, केंद्र और सीवीसी की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.

अदालत ने एनजीओ कॉमन कॉज की याचिका पर भी सुनवाई की थी. इस याचिका में राकेश अस्थाना समेत सीबीआई अधिकारियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर अदालत की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग की थी.

वर्मा ने सीवीसी और कार्मिक विभाग के 23 अक्तूबर 2018 के कुल तीन आदेशों को निरस्त करने की मांग की है. उनका आरोप था कि ये आदेश क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर किए गए हैं. साथ ही यह संविधान के मौलिक अधिकारों के विपरीत है.

क्या था मामला

सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की आंतरिक कलह पर सरकार ने कार्रवाई करते हुए तत्काल प्रभाव से आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटा दिया था और संयुक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक ​बनाया गया था.

उस वक्त सरकार ने आलोक वर्मा से छुट्टी पर जाने और अगले आदेश का इंतजार करने को कहा था. इसके अलावा राकेश अस्थाना को भी छुट्टी पर भेज दिया गया था और उनसे सभी चार्ज वापस ले लिए गए थे. वे कई हाई प्रोफाइल मामलों की जांच कर रहे थे.


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इसके अलावा सीबीआई ने अपने डीएसपी देवेंद्र कुमार को निलंबित कर दिया था. उन्हें गिरफ्तार करके कोर्ट में पेश किया गया था, जहां से कोर्ट ने उन्हें सात दिन की सीबीआई हिरासत में भेज दिया था.

कार्मिक विभाग की ओर से जारी नोटिफिकेशन में 1986 बैच के ओडिशा कैडर के आईपीएस अधिकारी एम नागेश्वर राव से निदेशक पद का चार्ज लेने को कहा गया था. यह निर्णय खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दखल के ​बाद लिया गया. सीबीआई कार्मिक विभाग के ​तहत आती है जिसके प्रभारी प्रधानमंत्री होते हैं.


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मांस कारोबारी मोइन कुरैशी के खिलाफ आरोपों की जांच के दौरान दस्तावेजों से छेड़छाड़ करने के आरोप में देवेंद्र को गिरफ्तार किया गया था. धन शोधन और भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों का सामना कर रहे कुरैशी के खिलाफ मामले की जांच कर रहे कुमार को दस्तावेजों से छेड़छाड़ करने के आरोप थे. इस मामले में सीबीआई ने अपने विशेष निदेशक राकेश अस्थाना, कुमार और दो अन्य लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी.

सीबीआई ने आरोप लगाया था कि दिसंबर 2017 और इस वर्ष अक्टूबर में कम से कम पांच बार रिश्वत ली गई. गुजरात कैडर के भारतीय पुलिस सेवा के 1984 बैच के अधिकारी अस्थाना पर कुरैशी मामले में जांच का सामना कर रहे एक व्यापारी से जांच में राहत देने के लिए दो करोड़ रुपये रिश्वत लेने का आरोप है. इस मामले की जांच अस्थाना के नेतृत्व में गठित एक विशेष जांच दल (एसआईटी) कर रहा था.

सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने मंगलवार को सीबीआई के निदेशक पद पर आलोक वर्मा को बहाल करने के सर्वोच्च अदालत के फैसले को आंशिक जीत बताया क्योंकि उन्हें (वर्मा) अभी उनकी पूर्ण शक्तियां नहीं दी गई हैं. भूषण ने फैसले के बाद अदालत के बाहर संवाददाताओं से कहा, ‘सर्वोच्च अदालत ने सीबीआई निदेशक के रूप में आलोक वर्मा की शक्तियां छीनने के सरकार और सीवीसी के फैसले को आज निरस्त कर दिया और आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक पद पर बहाल कर दिया’.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन सीबीआई निदेशक के रूप में उनकी शक्तियां छीनने का आदेश रद्द करते हुए और उन्हें बहाल करने के बावजूद अदालत ने कहा है कि वह प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश वाली सिलेक्ट कमिटी के पास मामला जाने और इस पर विचार करने तक किसी तरह के प्रमुख नीतिगत फैसले नहीं ले पाएंगे’

इस मामले पर एनजीओ ‘कॉमन कॉज’ की ओर से याचिकाकर्ताओं में से भूषण एक थे.

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की पद फिर से बहाली को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा कि वह किसी एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं हैं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं. यह सरकार के लिए सबक है. आज अगर अाप एजेंसियों को लोगों पर दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल करेंगे तो कल कोई और करेगा, फिर लोकतंत्र का क्या होगा?

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