नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार केंद्रीय कैबिनेट (मंत्रिमंडल) द्वारा आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के एक प्रस्ताव, जिसमें राजनीतिक दलों को दिल्ली में उनके कार्यालयों के आवंटित भूमि की श्रेणी को बदलने की सिफारिश की गयी है, को अपनी स्वीकृति देने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अब लगभग 73.22 करोड़ रुपये की बचत होने वाली है, जो कि उसे सरकार को भूमि बकाया के रूप में देनी थी.
इसका मतलब यह भी है कि सरकार कांग्रेस पार्टी को 27 लाख रुपये वापस लौटाएगी. कुल मिलाकर, 14 राजनीतिक दलों, जिन्हें साल 2000 और 2017 के बीच आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाले भूमि और विकास कार्यालय (लैंड एन्ड डेवेलपमेंट ऑफिस – एलएंडडीओ) द्वारा भूमि आवंटित की गई थी, के बकाये में काफी कमी आएगी.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 7 सितंबर को राजनीतिक दलों के लिए आवंटन की श्रेणी को ‘संस्थागत’ से ‘केंद्र सरकार से सरकारी ‘ में बदलने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.’ साथ ही, उनका कहना था कि अभी तक इस फैसले को सार्वजानिक नहीं किया गया है.’
अधिकारी ने कहा कि संस्थागत श्रेणी के लिए भूमि की दरें – जो पहले ही बाजार दरों की तुलना में काफी कम है – गवर्नमेंट-टू- गवर्नमेंट (सरकार-से-सरकारी) श्रेणी की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक हैं.
धर्मार्थ संस्थानों, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों को, और अब तक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को भी, संस्थागत श्रेणी के तहत ही भूमि आवंटित की जाती थी. गवर्नमेंट-टू- गवर्नमेंट श्रेणी वह मानदंड है जिसके तहत सिर्फ सरकारी संस्थानों को भूमि आवंटित की जाती रही है.
चौदह राजनीतिक दलों – जिनमें सत्तारूढ़ भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस सहित, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), जनता दल (यूनाइटेड), और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) जैसी पार्टियों शामिल हैं – पर भूमि और विकास कार्यालय का लगभग 150 करोड़ रुपये बकाया है. यह बकाया एल एंड डी ओ द्वारा दी गयी उस भूमि के लिए है जो इन पार्टियों को साल 2000 और 2017 के बीच उनके पार्टी कार्यालयों के लिए आवंटित की गई थी.
एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि कैबिनेट की स्वीकृति का मतलब यह भी है कि आने वाले भविष्य में राजनीतिक दलों को आवंटित सभी जमीनें गवर्नमेंट-टू- गवर्नमेंट श्रेणी के तहत ही होगी.
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BJP का बकाया 91 करोड़ रुपये से घटकर 17.78 करोड़ रुपये हुआ
राजनीतिक दलों को संसद में उनकी सदस्य संख्या के बल के आधार पर दिल्ली में जमीन आवंटित की जाती है. साल 2006 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा सभी पार्टियों के लिए बनाये गए आवंटन नियमों के अनुसार, संसद (लोकसभा और राज्यसभा मिलाकर) में 101 से 200 सदस्यों वाली पार्टी दो एकड़ भूमि की हकदार है. 200 से अधिक सदस्य होने पर किसी भी पार्टी को चार एकड़ जमीन की अनुमति मिलती है.
भूमि आवंटन श्रेणी में किये गए इस नवीनतम परिवर्तन ने 14 राजनीतिक दलों में से प्रत्येक को फायदा पहुंचाया है क्योंकि उनकी भूमि के एवज में बकाया राशि कई गुना कम हो गई है.
उदाहरण के लिए, जैसा कि एक सरकारी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, भाजपा को संस्थागत श्रेणी के तहत दीन दयाल उपाध्याय मार्ग में 4 एकड़ से थोड़ा अधिक रकबे (और 100 के फ्लोर टू एरिया रेश्यो के साथ) वाले तीन भूखंड (जमीन के टुकड़े) आवंटित किए गए थे.
पार्टी के ऊपर अभी तक की कुल बकाया राशि लगभग 91 करोड़ रुपये थी, जो उन 14 राजनीतिक दलों में सबसे अधिक थी, जिन्हें एलएंडडीओ द्वारा जमीन आवंटित की गई है.
हालांकि, सूत्र ने कहा कि आवंटन श्रेणी को ‘गवर्नमेंट-टू- गवर्नमेंट’ में बदलने के बाद, पार्टी के ऊपर भूमि बकाया घटकर 17.78 करोड़ रुपये रह गया है.
इसी तरह, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम का बकाया 4.5 करोड़ रुपये से घटकर 52 लाख रुपये हो गया है, जबकि टीएमसी का बकाया 2.5 करोड़ रुपये से घटकर 25 लाख रुपये हो गया है.
कांग्रेस पार्टी के मामले में, कोटला रोड स्थित 2 एकड़ के एक भूखंड के लिए पार्टी के ऊपर संचित बकाया लगभग 13 करोड़ रुपये था. लेकिन भूमि आवंटन श्रेणी में बदलाव का अर्थ यह है कि अब सरकार का कांग्रेस पार्टी के ऊपर कोई बकाया शेष नहीं है. सूत्रों के अनुसार, इस बदलाव के बाद, एलएंडडीओ को कांग्रेस पार्टी 27 लाख रुपये के अंतर का भुगतान करना होगा.
और ऐसा नहीं है कि सिर्फ कांग्रेस पार्टी को ही पैसे वापस दिए जायेंगें. एलएंडडीओ समाजवादी पार्टी को लगभग 10 करोड़ रुपये, अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम को 2.6 करोड़ रुपये, तेलंगाना राष्ट्र समिति को 6.5 करोड़ रुपये, राजद को 6 लाख रुपये और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सिस्ट) को 15 लाख रुपये लौटाएगा.
सूत्रों ने कहा कि एलएंडडीओ जल्द ही उन पार्टियों को डिमांड नोटिस (बकाया चुकाने की नालिस) भेजने की प्रक्रिया शुरू करेगा, जिन पर उसका पैसा बकाया है, और साथ ही वह उन पार्टियों को पैसा वापस करना भी शुरू कर देगा, जिन्हें सरकार की तरफ से भुगतान किया जाना है.
दिप्रिंट ने पहले ही यह बताया था कि केंद्रीय कैबिनेट 14 राजनीतिक दलों की भूमि आवंटन श्रेणी में बदलाव के लिए आवास मंत्रालय के प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति दे सकती है.
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क्यों किया गया यह बदलाव?
सरकारी सूत्रों ने बताया कि साल 2000 और 2017 के बीच आवास मंत्रालय द्वारा विभिन्न दलों को निर्धारित संस्थागत दरों पर अपने कार्यालय निर्माण के लिए जमीनें आवंटित की गई थीं, जिनमें से ज्यादातर मध्य दिल्ली में थीं.
हालांकि, आवास मंत्रालय, जिसे हर दो साल में अलग-अलग श्रेणी के लिए निर्धारित जमीन की दरों में संशोधन करना होता है, साल 2000 और 2017 के बीच के करीब 17 साल तक नौकरशाही से जुड़े कारणों की वजह से ऐसा नहीं कर पाई. नतीजतन, जिन 14 पार्टियों को इस अवधि के दौरान जमीनें आवंटित की गई थीं, उन्हें साल 2000 से पहले की संस्थागत दरों पर ही जमीन मिली थी.
सरकारी सूत्रों ने बताया कि आवास मंत्रालय (जिसे पहले शहरी विकास मंत्रालय के नाम से जाना जाता था) ने आवंटन पत्र में स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया था कि पार्टियों को जमीन की दरों में संशोधन होने पर पूर्वव्यापी रूप से (रेट्रोस्पेक्टिवेली) राशि में अंतर का भुगतान करना होगा.
सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि, ‘आवंटन के लिए यह एक पूर्व शर्त थी और सभी 14 पार्टियों ने जब और जैसे भूमि की दरों में संशोधन किया जाये उसी आधार पर अंतर राशि का भुगतान करने के लिए अपनी सहमति के साथ हलफनामा भी दिया था.’
सूत्रों के अनुसार, काफी हीला-हवाली करने के बाद, आखिरकार जून 2017 में आवास मंत्रालय ने साल 2000 से जमीन की दरों को संशोधित करते हुए एक अधिसूचना जारी की. इसके बाद, साल 2000 और 2017 के बीच जिन भी दलों को जमीन आवंटित की गई थी, उन सभी को नोटिस भेजकर बकाया राशि का भुगतान करने के लिए कहा गया था.
सरकारी सूत्रों का कहना है कि हालांकि संशोधित संस्थागत आवंटन दर भी पूर्ण बाजार मूल्य की तुलना में काफी सस्ता था, फिर भी राजनीतिक दल संचित बकाये को चुकाने के लिए आगे नहीं आ रहे थे.
एक सरकारी सूत्र ने कहा कि इसके बाद ही आवास मंत्रालय ने फैसला किया कि राजनीतिक दलों को केंद्र सरकार के समकक्ष माना जाना चाहिए और उन्हें गवर्नमेंट-टू- गवर्नमेंट वाली दरों पर जमीन आवंटित की जानी चाहिए.
संस्थागत श्रेणियों के तहत आवंटन के लिए भूमि की दरें गवर्नमेंट-टू- गवर्नमेंट श्रेणी के तहत आवंटन से लगभग 10 गुना अधिक हैं. उदाहरण के लिए, साल 2000 में संस्थागत श्रेणी के तहत पार्टियों को जिस अनंतिम दर पर जमीन आवंटित की गई थी, वह 88 लाख रुपये प्रति एकड़ थी. साल 2017 में भूमि दरों को संशोधित किए जाने के बाद, साल 2007 में संस्थागत आवंटन दर पूर्वव्यापी रूप से 698 लाख रुपये प्रति एकड़ हो गई, जबकि गवर्नमेंट-टू- गवर्नमेंट श्रेणी के तहत यह मात्र 74 लाख रुपये प्रति एकड़ थी.
मध्य दिल्ली, जहां राजनीतिक दलों को जमीन आवंटित की गई थी, में स्थित इन जमीनों का बाजार मूल्य बहुत अधिक है. रियल एस्टेट क्षेत्र के विशेषज्ञों ने दिप्रिंट को पहले बताया था कि दीन दयाल उपाध्याय मार्ग – जहां भाजपा को अपना राष्ट्रीय मुख्यालय स्थापित करने के लिए अगस्त 2014 में 1,864 लाख रुपये प्रति एकड़ की संस्थागत दर पर दो एकड़ (8,095.80 वर्ग मीटर) का एक भूखंड आवंटित किया गया था – में एक एकड़ भूमि के लिए वर्तमान बाजार दर 200 करोड़ रुपये से अधिक की चल रही है.
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