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Saturday, 4 May, 2024
होमदेशचुनाव नहीं, हाई कॉस्ट, लो कैच और पाकिस्तान- पोरबंदर के मछुआरों पर सबसे ज्यादा क्या बात असर डालती है

चुनाव नहीं, हाई कॉस्ट, लो कैच और पाकिस्तान- पोरबंदर के मछुआरों पर सबसे ज्यादा क्या बात असर डालती है

मछुआरा समुदाय का कहना है कि पाकिस्तानी जेलों में बंद लोगों को छुड़ाने और विशेष वित्तीय पैकेज देने की मांगों पर ज्यादा कुछ नहीं किया गया है. यहां के बहुत से लोग इसे लेकर असमंजस में हैं कि भाजपा का समर्थन करें या फिर कांग्रेस का.

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पोरबंदर, गुजरात: मुंबई के छह आर्टिस्ट का एक छोटा-सा ग्रुप पोरबंदर बंदरगाह के पास स्थित मछुआरों की कॉलोनी सुभाष नगर में संकरी खाड़ी की ओर जाने वाली सड़क के किनारे खुले में लकड़ी के तख्तों पर बैठकर लकड़ी के बड़े-बड़े ट्रॉलर्स पर स्केच बनाने में व्यस्त है.

ये ग्रुप एक आर्ट कैंप के तहत मुंबई से यहां आया है, और एक लंबे समुद्र तट के किनारे बसी मछुआरों की कॉलोनी उनके लिए एक आदर्श जगह है. बैकग्राउंड में दूर तक नजर आते नारियल के पेड़ और सड़क के किनारे खड़ी अलग-अलग आकार की मछुआरों की नौकाओं यहां की सुंदरता को तस्वीरों में उतारने के लिहाज से एक बहुत ही मनोरम स्थल हैं.

लेकिन जिस शांत और रोमांटिक माहौल में ये कलाकार स्केच बना रहे हैं, वो इन मछुआरों की असल जिंदगी से एकदम उलट है. जब आपको हर दिन रोजी-रोटी के लिए जूझना पड़ रहा हो, आपके 250 से ज्यादा भाई-बंधु अनजाने में पाकिस्तानी जल सीमा में घुसने के आरोप में पाकिस्तान की जेलों में सालों से सड़ रहे हों, तो किसका खुशी मनाने का मन करेगा.

विधानसभा को लेकर भले ही पूरे गुजरात में खासी सियासी सरगर्मी हो लेकिन इस छोटी-सी बस्ती के मछुआरे इससे ज्यादा प्रभावित नहीं नजर आते हैं, क्योंकि उनका वोट हासिल करने के लिए हर चुनाव से पहले राजनेताओं की तरफ से किए जाने वाले ‘खोखले’ चुनावी वादों से मोहभंग हो चुका है. गुजरात विधानसभा के चुनाव के लिए दो चरणों में एक और पांच दिसंबर को वोट डाले जाने हैं.

तमाम मुश्किलों से जूझ रहे मछुआरे

डीजल के बढ़ते दाम, तट के पास (मछली की) पकड़ने की कम गुंजाइश, मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों के पाकिस्तानी जलक्षेत्र में भटक जाने और वहां से अधिकारियों द्वारा पकड़े जाने का जोखिम आदि ऐसी समस्याएं हैं जिनसे मछुआरों के हर दिन जूझना पड़ता है.

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इन मछुआरों और छोटे ट्रॉलर और नावों के मालिकों के लिए मछली पकड़ना घाटे का सौदा हो गया है. अधिकांश ट्रॉलर अब उपयोग में नहीं हैं और उन्हें सड़क के किनारे पार्क कर दिया गया है क्योंकि कहीं और जगह नहीं है.

A view of Subhash Nagar fishing colony, Porbandar | Moushumi Das Gupta | ThePrint
सुभाष नगर फिशिंग कॉलोनी, पोरबंदर का एक दृश्य | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

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‘राजनेता हर चुनाव से बड़े-बड़े वादे करते हैं, फिर भूल जाते हैं’

विभिन्न दलों के उम्मीदवार जिस तरह से यहां के चक्कर काट रहे हैं और तमाम तरह के वादों और कल्याणीकारी योजनाओं के जरिये लोगों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, उससे साफ पता चलता है कि आगामी चुनावों में 106 किलोमीटर लंबे पोरबंदर तट के आसपास बसे एक लाख से अधिक मछुआरा-समुदाय के लोगों का समर्थन कितना मायने रखता है.

कांग्रेस प्रत्याशी अर्जुन मोढवाडिया ने जहां यह आश्वासन दिया है कि वह सरकार पर मछुआरों को सब्सिडी पर डीजल उपलब्ध कराने का दबाव डालेंगे, वहीं भाजपा के बाबूभाई बोखिरिया ने समुद्र में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ पाकिस्तानी जेलों में बंद उनके भाई-बंधुओं की रिहाई के लिए उपयुक्त कदम उठाने का वादा किया है. बोखिरिया पोरबंदर सीट से पांच बार जीत चुके हैं और छठी बार बरकरार रखने के लिए मैदान में हैं.

हालांकि, खारवा समुदाय से आने वाले पोरबंदर के ज्यादातर मछुआरे इन वादों से आश्वस्त नहीं हैं.

पोरबंदर बंदरगाह पर एक छोटे-मोटे मछुआरे रामजी. के. शालय ने कहा कि इस बार उन्होंने अभी तय नहीं किया है कि किसे समर्थन देना है.

उन्होंने कहा, ‘हर पांच साल में यही कहानी दोहराई जाती है. जब चुनाव आते हैं तो नेता यहां आते हैं और चांद-तारे तोड़ लाने जैसे वादे करते हैं. लेकिन एक बार चुने जाने के बाद कुछ नहीं करते. पाकिस्तान में बंधक बनाए गए हमारे लोगों को रिहा नहीं किया गया और डीजल की बढ़ी हुई कीमतें हमें बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं.’

मछुआरों की फरियाद कोई नहीं सुनता

पोरबंदर माछीमार बोट एसोसिएशन के अध्यक्ष मुकेश पंजारी ने सुभाष नगर स्थित अपने कार्यालय में दिप्रिंट के साथ बातचीत के दौरान कहा कि सबसे बड़ा जोखिम समुद्र में उतरे मछुआरों को पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा पकड़े जाने का है.

पंजारी ने कहा कि फिलहाल करीब 1,200 ट्रॉलर और मछली पकड़ने वाली नौकाएं हैं और गुजरात के करीब 272 मछुआरे पाकिस्तान की हिरासत में हैं. मार्च में विदेश मंत्री एस. जयशंकर को केंद्रीय मत्स्य मंत्री पुरषोत्तम रूपाला की तरफ से लिखे गए एक पत्र के मुताबिक, कुल मिलाकर 378 भारतीय मछुआरे पाकिस्तान में सलाखों के पीछे हैं, जिनमें से 271 गुजरात से हैं.

पंजारी ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि मछुआरे जानबूझकर पाकिस्तानी जलक्षेत्र में भटके. तट के पास पकड़ कम होने के साथ हमारे मछुआरों को गहरे समुद्र में उतरना पड़ता है और अनजाने में अंतररष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (आईएमबीएल) पार कर जाने पर वह पाकिस्तानी एजेंसियों के हत्थे चढ़ जाते हैं.’

उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि ट्रॉलर्स में जीपीएस लगा होता है, लेकिन कई मछुआरे नहीं जानते कि इसका उपयोग कैसे किया जाए.

उन्होंने आगे कहा कि उनके संघ ने पाकिस्तान की जेलों में बंद मछुआरों की रिहाई और पोरबंदर के मछुआरों के लिए एक विशेष वित्तीय पैकेज के लिए राज्य के मत्स्य मंत्री जवाहर चावड़ा और रूपाला को कई बार आवेदन दिया. ‘लेकिन यह सब व्यर्थ गया और कुछ खास नहीं हुआ.’

आतंकी गतिविधियों के लिए जब्त भारतीय नौकाओं का दुरुपयोग चिंता का विषय

मछुआरे न केवल अपने जलक्षेत्र से भटक जाने पर पाकिस्तानी समुद्री सुरक्षा एजेंसी द्वारा पकड़े जाने को लेकर चिंतित हैं, बल्कि इस बात से भी डरते हैं कि उनकी जब्त नौकाओं का आतंकी गतिविधियों के लिए दुरुपयोग हो सकता है.

पंजारी ने कहा कि भारतीय नौकाओं के अपहरण और आतंकी गतिविधियों के लिए दुरुपयोग होने का भी खतरा काफी ज्यादा रहता है. उन्होंने कहा, ‘हम सभी ने देखा कि 26/11 के मुंबई हमले में क्या हुआ था. मछली पकड़ने वाली नौका कुबेर, जिस पर सवार होकर आतंकवादी मुंबई में दाखिल हुए थे, पोरबंदर की ही थी.’

Fishing trawlers docked by the roadside in Subhash Nagar colony, Porbandar | Moushumi Das Gupta | ThePrint
सुभाष नगर कॉलोनी, पोरबंदर में सड़क के किनारे मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर | मौसमी दास गुप्ता | दिप्रिंट

यह मछुआरों के लिए दोहरी मार है

सुभाष नगर के मछुआरों ने दिप्रिंट को बताया कि यह उनके लिए दोहरी मार है.

दो ट्रॉलर के मालिक पोरबंदर के एक मछुआरे संजय एस. खुदाई ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में हमारी पकड़ (मछली मिलना) कम हो गई है. तट के आसपास प्रदूषण के कारण मछलियों गहरे समुद्र में चली गई हैं. अपनी लागत वसूलने के लिए हमें अच्छी संख्या में पकड़ के लिए गहरे समुद्र में जाना पड़ता है और हम अनजाने में पाकिस्तानी जल क्षेत्र में भटक जाते हैं.’

पंजारी, जिनके पास मछली पकड़ने की छह नौकाएं है, कहते हैं कि इसके बावजूद खर्च निकालना मुश्किल होता है. ऑपरेशनल कॉस्ट बहुत ज्यादा होने के कारण उन्होंने अपने तीन ट्रॉलर्स तो खड़े कर रखे हैं. उन्होंने बताया, ‘मछली पकड़ने के लिए एक बार समुद्र में जाने पर हम चार से साढ़े चार लाख रुपये के बीच खर्च करते हैं. इसमें डीजल लागत और चालक दल के सदस्यों का वेतन शामिल है. लेकिन इन दिनों हमारे लिए लागत निकाल पाना भी मुश्किल हो रहा है.’

तीन ट्रॉलर के मालिक पोरबंदर आइस फैक्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष आशीष प्रेमजीभाई तोरानी ने कहा कि लॉजिस्टिक कॉस्ट इतनी ज्यादा होती है कि कई मछुआरे समुद्र में कारोबार करने के बजाये लंगर डालना ही बेहतर समझते हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि इस तरह इस कारोबार में टिके रहना मुश्किल हो गया है.

सुभाष नगर में रहने वाले एक अन्य मछुआरे राजू डालकिया ने बताया, ‘सबसे बड़ी समस्या यह है कि सालों से हमारे क्षेत्र का विकास नहीं हुआ है. सड़कें टूटी हैं, बिजली अनियमित है और सीवेज खुले में बह रहा है. इन्हें ठीक करने के लिए बाबूभाई बोखिरिया ने क्या किया है?’

गुजरात में दो चरणों के दौरान पोरबंदर में एक दिसंबर को वोट डाले जाने हैं.

(अनुवाद- रावी द्विवेदी)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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