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Wednesday, 24 April, 2024
होमदेशव्हिस्की का इस्तेमाल बढ़ा लेकिन रम ऑन द रॉक्स, भारतीयों में घर पर बैठकर महंगी शराब पीने का ट्रेंड बढ़ा

व्हिस्की का इस्तेमाल बढ़ा लेकिन रम ऑन द रॉक्स, भारतीयों में घर पर बैठकर महंगी शराब पीने का ट्रेंड बढ़ा

एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस ट्रेंड की वजह यह भी हो सकती है कि महामारी के दौरान लोगों के बाहर की बजाये घर पर रहकर पीना ज्यादा पसंद किया, और अब हो सकता है कि इससे बचने वाले पैसों का इस्तेमाल महंगी शराब खरीदने पर कर रहे हों.

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नई दिल्ली: भारतीयों को किसी भी अन्य शराब की तुलना में व्हिस्की पीना ज्यादा पसंद है—और व्हिस्की में भी अब वे सस्ती व्हिस्की के बजाय उसके प्रीमियम ब्रांड को पीना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. शराब उद्योग से जुड़ी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कुछ हद तक इसका कारण यह भी हो सकता है कि लोग अब घर पर ही रहकर शराब पीने के कारण बचने वाले पैसों का इस्तेमाल महंगी बोतले खरीदने में कर रहे हैं.

मुंबई स्थित वित्तीय सेवा समूह एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग की तरफ से एल्कोहलिक ब्रेवरेज इंडस्ट्री पर एक नई रिपोर्ट जारी की गई, इसके विश्लेषण में दिप्रिंट ने पाया कि भारत में शराब की कुल खपत का 93 प्रतिशत हिस्सा स्पिरिट का है जो चीन (69 फीसदी), ब्राजील (36 प्रतिशत), अमेरिका (33 प्रतिशत), यूके (22 प्रतिशत) और दक्षिण अफ्रीका (17 प्रतिशत) जैसे देशों की तुलना में काफी अधिक है.

देश में भारतीय निर्मित विदेशी शराब (आईएमएफए) बाजार का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट में पाया गया कि 2015-2021 की अवधि में व्हिस्की की हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ी, जबकि ब्रांडी की आनुपातिक तौर पर गिरी. इस अवधि में रम की हिस्सेदारी में भी मामूली गिरावट आई है.

रिपोर्ट में बताया गया है, ‘भारतीय आईएमएफएल में बड़े पैमाने पर ब्राउन स्पिरिट्स का दबदबा है, जो वॉल्यूम में 96 फीसदी से ज्यादा योगदान देती है. सारी स्पिरिट्स की संदर्भ में बात करें तो 2021 में कुल आईएमएफएल में 64 प्रतिशत हिस्सेदारी व्हिस्की की रही. व्हिस्की की हिस्सेदारी 2014 में 59.5 प्रतिशत होने की तुलना में 2014-2021 के बीच 1 प्रतिशत सीएजीआर (कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट) की दर से वृद्धि दर्ज की गई है. हालांकि कुल इंडस्ट्री वॉल्यूम में कोई वृद्धि नहीं हुई है.’

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डेटा से यह भी पता चलता है कि महामारी के कारण लगी पाबंदियों की वजह से 2020 में व्हिस्की की हिस्सेदारी बढ़कर 65 प्रतिशत हो गई.


यह भी पढ़ें: कोविड पीक में आर्थिक अपराधों में 40% भारतीय कंपनियों ने 50 हजार से एक लाख तक अमेरिकी डॉलर गंवाए- PwC रिपोर्ट


प्रीमियम ब्रांड्स पसंद आ रहे

आईएमएफएल के संदर्भ में विश्लेषण में पाया गया कि प्रेस्टीज एंड एबव (पीएंडए) सेगमेंट, जिसमें 400 रुपये प्रति 750 मिलीलीटर से अधिक कीमत वाले ब्रांड शामिल होते हैं, की हिस्सेदारी बढ़ रही है और अब कुल आईएमएफएल बाजार में इसकी 50 प्रतिशत से अधिक भागीदारी है.

रिपोर्ट में बताया गया है, ‘सीएजीआर के लिहाज से इंडस्ट्री ग्रोथ 3 फीसदी (कैलेंडर ईयर 2014-2019 में) की तुलना में पीएंडए सेगमेंट वॉल्यूम में 7 फीसदी की वृद्धि हुई है.’ रिपोर्ट कहती है ‘हमारी राय में पीएंडए सेगमेंट के भीतर प्रेस्टीज ब्रांड में सिंगल डिजिट की तुलना में प्रीमियम और लक्जरी ब्रांड ने दोहरे अंकों में वृद्धि दर्ज की है.’

प्रीमियम और लक्जरी ब्रांड की स्पिरिट की कीमत 1,000 रुपये और 2,000 रुपये प्रति 750 एमएल से अधिक है. लोकप्रिय ब्रांड—जिनकी कीमत 400 रुपये प्रति 750 मिलीलीटर से कम है—ने 2014-2021 में अपनी हिस्सेदारी में काफी गिरावट देखी.

महामारी ने पीने का तरीका बदल दिया

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कोविड-19 के दौरान लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध और रेस्तरां/बार/पब बंद होने या उनके खुलने-बंद होने के समय पर लागू पाबंदियों की वजह से कैलेंडर वर्ष 2020 में भारत में निर्मित विदेशी शराबी की बिक्री में 18 प्रतिशत की गिरावट आई.’

शोधकर्ताओं के मुताबिक, ऑफ-ट्रेड कंजम्पशन—बार, होटल, रेस्तरां, आदि के बाहर—महामारी से पहले कुल खपत का 80 प्रतिशत होता था और कैलेंडर वर्ष 2020 में यह बढ़कर 85 प्रतिशत हो गया.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हालांकि, हम अर्थव्यवस्था और रेस्तरां/बार/पब खुलने के बाद ऑफ-ट्रेड हिस्सेदारी घटने की उम्मीद कर रहे हैं. कोविड-19 के दौरान, कई राज्यों ने महामारी के कारण राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए शराब पर टैक्स बढ़ा दिया था. हालांकि, कुछ राज्यों ने बिक्री में खासी गिरावट दिखने के बाद टैक्स वृद्धि को आंशिक/पूर्ण से वापस ले लिया.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि आम तौर पर भारतीय उपभोक्ता अपने घरों के बाहर शराब के सेवन के आदी रहे हैं.

साथ ही जोड़ा गया, ‘हालांकि, कोविड-19 के प्रकोप और ऑन-ट्रेड खपत पर प्रतिबंध के कारण ऑफ-ट्रेड खपत में वृद्धि हुई. महामारी के दौरान कई उपभोक्ताओं ने घर पर शराब का सेवन शुरू कर दिया, जिससे दीर्घावधि में खपत की मात्रा काफी बढ़ सकती है, क्योंकि इससे शराब खरीद की क्षमता बढ़ सकती है.’

कुल मिलाकर देखा जाए तो हो यह रहा है कि उपभोक्ताओं को ऐसा लगने लगा है कि घर पर बैठकर शराब पीना सस्ता है क्योंकि रेस्तरां, बार और पब एमआरपी से 30-50 प्रतिशत अधिक शुल्क लेते हैं. नतीजतन, लोग घर पर पीने का विकल्प चुन रहे हैं और इससे जो पैसा बचता है उसका उपयोग प्रीमियम ब्रांड खरीदने पर कर रहे हैं.

उपभोक्ताओं को घर पर पीने के लिए प्रोत्साहित करने वाला एक अन्य फैक्टर शराब की होम डिलीवरी से संबंधित नियमों को उदार बनाया जाना भी है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘शराब की खपत और राज्यों का राजस्व और ज्यादा बढ़ाने के लिए, कई राज्यों ने होम डिलीवरी पर प्रतिबंधों में ढील दी है. पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, ओडिशा और पंजाब जैसे राज्यों ने शराब की होम डिलीवरी की अनुमति दे रखी है.’

दक्षिणी राज्य आईएमएफएल के सेवन में आगे

भारत में आईएमएफएल की खपत कुछ राज्यों में सबसे ज्यादा है. शीर्ष छह राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और केरल हैं और भारत में कुल आईएमएफएल खपत में लगभग 70 प्रतिशत हिस्सेदारी इन्हीं राज्यों की है.

कुछ राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अन्य की तुलना में शराब बिक्री से मिलने वाले टैक्स पर अधिक निर्भर हैं. उदाहरण के तौर पर पुडुचेरी के कुल कर राजस्व का 32 प्रतिशत शराब बिक्री से आता है. यह आंकड़ा उत्तराखंड (दूसरा सबसे ज्यादा निर्भरता वाला राज्य) के लिए 25 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश के लिए 22 प्रतिशत, कर्नाटक, सिक्किम, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में हर एक के लिए 20 प्रतिशत और केरल (सबसे कम निर्भरता) के लिए सिर्फ 4 प्रतिशत है.

हालांकि, रिपोर्ट में बताया गया है कि कुछ राज्यों में नियामकीय अनिश्चितता की वजह से इस क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ रही है.

इसमें बताया गया है, ‘आंध्र प्रदेश (खपत के लिहाज से चौथा सबसे बड़ा राज्य) में 2019 में राज्य सरकार बदलने के बाद से शराब की खपत में गिरावट आई है. नई सरकार ने सत्ता संभालते ही एक नई शराब नीति पेश की और चरणबद्ध तरीके से दुकानों की संख्या घटाकर पूर्ण शराबबंदी लागू करने की अपनी योजना को आगे बढ़ाया. इसने राज्य-प्रबंधित खुदरा दुकानों की स्थापना की और निजी खुदरा दुकानें बंद करके बाजार की रूपरेखा ही बदल दी.

रिपोर्ट के मुताबिक, इसके विपरीत, छत्तीसगढ़ सरकारी नियंत्रण से निकलकर निजी क्षेत्र की भागीदारी में चला गया है, जो उद्योग के लिए एक वरदान साबित हो सकता है.

(अनुवाद- रावी द्विवेदी)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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