नयी दिल्ली, 27 सितंबर (भाषा) कांग्रेस ने शनिवार को आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पहले लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत लाने का वादा किया था लेकिन वह इस वादे को भूल गई और लोगों की आकांक्षाओं के साथ लगातार विश्वासघात किया।
पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने यह भी कहा कि पिछले दिनों हुई हिंसा में चार लोगों की मौत की घटना की न्यायिक जांच होनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि संविधान की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों को स्वायत्तता और स्वशासन के उपाय सुनिश्चित करती है।
खरगे ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘कांग्रेस, केंद्र सरकार द्वारा लद्दाख में स्थिति को संभालने के दयनीय तरीके अपनाने और उसके बाद कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी की कड़ी निंदा करती है।
उन्होंने आरोप लगाया कि इस संकट का मूल कारण भाजपा का लद्दाख के लोगों की आकांक्षाओं के साथ लगातार विश्वासघात है।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘अब एक साल से अधिक समय से उथल-पुथल मची हुई है और इस केंद्रिशासित प्रदेश को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की लोगों की पुकार को धैर्यपूर्वक सुनने के बजाय, मोदी सरकार हिंसा से जवाब दे रही है। ‘
खरगे का कहना है कि भाजपा ने इस क्षेत्र को छठी अनुसूची के तहत दर्जा देने का वादा किया था, दुख की बात है कि उस वादे को पूरी तरह से छोड़ दिया गया है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया, ‘कांग्रेस लद्दाख में शांति के अलावा कुछ नहीं चाहती। दशकों से, हमने यह सुनिश्चित किया है कि यह खूबसूरत सीमा क्षेत्र लोकतंत्र की भावना और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों को बरकरार रखते हुए सामंजस्यपूर्ण और सुरक्षित बना रहे।’
खरगे ने यह भी कहा, ‘हम चार निर्दोष युवकों की मौत और कई अन्य को लगी गंभीर चोटों की न्यायिक जांच की मांग करते हैं। लद्दाख में लोकतांत्रिक संस्थाओं और लोकतंत्र को पुनर्जीवित और बहाल करने की जरूरत है।’’
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘2019 में, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने सिफारिश की थी कि पूरे लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत लाया जाए। गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय, सभी ने कोई आपत्ति नहीं जताई। इसे 2020 के लेह पर्वतीय परिषद चुनाव के लिए भाजपा के घोषणापत्र में एक वादे के रूप में भी शामिल किया गया था।’
उन्होंने कहा, ‘ सोनम वांगचुक तो यही मांग दोहरा रहे थे, लेकिन अब वह खुद बिना जमानत के जेल में हैं। और हमसे अपेक्षा की जाती है कि हम स्वयं को लोकतंत्र की जननी समझें।’
भाषा हक माधव
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