गुरदासपुर/पठानकोट: संकेत साफ थे, मौसम विभाग ने सामान्य से ज़्यादा बारिश का अनुमान जताया था, अप्रैल में विशेषज्ञों की एक समिति ने भाखड़ा बांध का जलस्तर कम करने के लिए अतिरिक्त पानी छोड़ने की सिफारिश की थी और नदियों के कैचमेंट क्षेत्रों पर अतिक्रमण कोई राज़ नहीं था.
लेकिन प्रशासन ने बहुत कम तैयारी की और फिर आई पंजाब की सबसे भीषण बाढ़, जिसे 1988 के बाद सबसे बड़ा जलसंकट कहा जा रहा है. सिर्फ गुरदासपुर, पठानकोट और अमृतसर ज़िलों में ही 1,900 से अधिक गांव डूब गए, कम से कम 45 लोगों की मौत हुई और करीब 4 लाख लोग प्रभावित हुए.
दिप्रिंट से बात करने वाले विशेषज्ञों ने तबाही के लिए बांध प्रबंधन की गड़बड़ी, जर्जर नहरें, टूटते तटबंध और बेतहाशा निर्माण को ज़िम्मेदार ठहराया. इनमें सबसे अहम मुद्दा रहा बांधों से पानी छोड़ने का. माना जा रहा है कि रावी, सतलुज और ब्यास पर बने बांधों से छोड़े गए अतिरिक्त पानी ने पंजाब में बाढ़ का कहर और बढ़ा दिया.
हालात इसलिए और बिगड़े क्योंकि पठानकोट के 19वीं सदी में बने माधोपुर बैराज की मरम्मत ठीक से नहीं हुई थी. इसके तीन गेट पिछले महीने गिर गए थे. यह बैराज रावी नदी के बहाव को नियंत्रित करता है.

फोकस इस समय तीन बड़े बांधों पर है, जो पंजाब की तीन स्थायी नदियों पर बने हैं और जिनसे भारी मात्रा में पानी छोड़ना पड़ा.
सतलुज पर बना भाखड़ा बांध और ब्यास पर बना पोंग बांध, भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (BBMB) के अधीन हैं. यह एक सांविधिक निकाय है जिसे पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत गठित किया गया था. बीबीएमबी पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान के बीच पानी का बंटवारा भी नियंत्रित करता है. रावी पर बना रणजीत सागर बांध, वहीं, पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन और राज्य सिंचाई विभाग के नियंत्रण में है.
जल संसाधन विशेषज्ञों के मुताबिक, मानसून के दौरान हर साल जून से सितंबर के बीच बांध पानी से भरते हैं.
एस.के. हालदार, केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यू) के पूर्व अध्यक्ष ने दिप्रिंट से कहा,“मानसून के समय उपलब्ध स्टोरेज, बांधों में बाढ़ रोकने वाला कुशन बनता है, लेकिन बांधों की भी अपनी क्षमता होती है. इस बार पंजाब के ऊपरी इलाकों में बांधों में अतिरिक्त पानी आया.”
उन्होंने समझाया कि अगर बांध पानी स्टोर नहीं कर पाता, तो उसे छोड़ना पड़ता है. इस बार भारी बारिश से नदियों के कैचमेंट क्षेत्र पहले से ही भरे हुए थे और ऊपर से छोड़े गए पानी ने नीचे के इलाकों को और डुबा दिया.
BBMB के एक पूर्व अध्यक्ष ने भी माना कि “लगातार बारिश की वजह से बाढ़ से बचना मुश्किल था, लेकिन अगर पंजाब ने अप्रैल में बीबीएमबी और आईएमडी की दी गई चेतावनियों को गंभीरता से लिया होता और बांधों के प्रवाह को बेहतर तरीके से संभाला होता, तो नुकसान कम हो सकता था.”
भारत मौसम विज्ञान विभाग ने इस साल मध्य और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य से अधिक मानसून का अनुमान जताया था. हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में 5 सितंबर तक मौसमी औसत से 45% ज़्यादा बारिश दर्ज की गई.
दिप्रिंट ने अगस्त और सितंबर में बांधों से छोड़े गए पानी को लेकर बीबीएमबी के जल नियमन निदेशक संजीव कुमार से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
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‘1988 के बाद पहली बार’
पंजाब के ऊपर बने बांधों का रखरखाव और संचालन बीबीएमबी करता है. इन बांधों से पानी छोड़े जाने का फैसला बोर्ड के सदस्यों, पार्टनर राज्यों के मुख्य अभियंताओं और केंद्रीय जल आयोग की तकनीकी समिति लेती है.
इस साल, भारी बारिश के चलते रावी पर बने रणजीत सागर बांध से 2.2 लाख क्यूसेक पानी छोड़ना पड़ा. इसी वजह से माधोपुर बैराज के तीन गेट टूट गए. भाखड़ा और पोंग बांधों में भी रिकॉर्ड तोड़ पानी आया और मजबूरी में उन्हें भी पानी छोड़ना पड़ा.
गुरदासपुर के दीनानगर के एसडीएम जसपिंदर सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “1988 की बाढ़ के बाद रावी में इतना पानी कभी नहीं आया. यह क्षमता से ज़्यादा था. कठुआ में बादल फटने और भारी बारिश ने हालात और बिगाड़ दिए.”
भाखड़ा बांध के मामले में बीबीएमबी की तकनीकी समिति ने अप्रैल में बांध से हरियाणा की तरफ 8,500 क्यूसेक पानी छोड़ने की मंज़ूरी दी थी, लेकिन पंजाब सरकार ने आपत्ति जताई और इसे 4,000 क्यूसेक तक सीमित रखने की ज़िद्द की. इससे दोनों राज्यों के बीच खींचतान हो गई और अतिरिक्त पानी नहीं छोड़ा गया.
पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि राज्य सरकार ने बाढ़ रोकने के उपाय करने के बजाय ‘राजनीतिक नाटक’ किया और यहां तक कि भाखड़ा बांध के गेटों पर अतिरिक्त पानी छोड़ने से रोकने के लिए पुलिस तक तैनात कर दी.
बीबीएमबी अधिकारियों के अनुसार, कुछ हफ्तों बाद, अभूतपूर्व बारिश की वजह से बांध से पानी छोड़ना पड़ा. एक अगस्त तक भाखड़ा बांध 50 प्रतिशत भर चुका था और 1 से 18 अगस्त के बीच औसतन 23,000 क्यूसेक पानी छोड़ा गया. इसके बाद यह मात्रा और बढ़ गई और दो साल में पहली बार बांध के स्पिलवे गेट खोले गए.
बीबीएमबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “हमें इस मौसम में भारी बारिश को लेकर आईएमडी से इनपुट मिले थे. उसी आधार पर हमने (भाखड़ा बांध से) अतिरिक्त पानी छोड़ने की सिफारिश की थी. पंजाब ने पानी छोड़ने का विरोध किया. अगर उस समय पानी छोड़ा गया होता, तो बांध में कुछ जगह बन जाती.”
उन्होंने माना कि सही समय पर पानी न छोड़ने का फैसला तबाही को और बढ़ा सकता है.
रिकॉर्डतोड़ पानी का बहाव
चंडीगढ़ में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए बीबीएमबी के चेयरमैन मनोज त्रिपाठी ने कहा कि इस साल पोंग बांध में पानी का फ्लो 2023 से लगभग 20 प्रतिशत ज़्यादा रहा, जिसे उन्होंने रिकॉर्डतोड़ बताया. उन्होंने कहा, “बीबीएमबी ने इस बहाव के बावजूद एक लाख क्यूसेक से ज़्यादा पानी छोड़ने की इजाज़त नहीं दी. इतना पानी पहले कभी ब्यास में नहीं आया. हमने अचानक 2-2.5 लाख क्यूसेक पानी छोड़ने से बचा. पानी धीरे-धीरे, नियंत्रित तरीके से और सभी साझीदार राज्यों की सहमति से छोड़ा गया. यह सब ‘रूल कर्व’ के मुताबिक किया गया.”
आंकड़े देते हुए त्रिपाठी ने बताया कि 1 जुलाई से 5 सितंबर के बीच ब्यास नदी में 11.70 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी आया, जो अब तक का सबसे ज़्यादा है. 2023 में यह आंकड़ा 9.52 बीसीएम था और 2019 में 5 बीसीएम.
भाखड़ा बांध में इस साल 9.11 बीसीएम पानी आया. 2019 में यह 8.59 बीसीएम था. 1988 की बाढ़ में सबसे ज़्यादा 9.52 बीसीएम रिकॉर्ड किया गया था. त्रिपाठी ने कहा कि भाखड़ा बांध में पानी का स्तर इस बार अधिकतम सीमा 1,680 फीट को पार नहीं कर पाया. “1988 में स्तर 1,685 फीट से ऊपर चला गया था, लेकिन इस साल यह लगभग 1,679 फीट तक ही रहा.”
उन्होंने यह भी कहा कि राज्यों को यह सोच बदलनी होगी कि बांध हमेशा भरे रहने चाहिए. उन्होंने कहा, “मानसून में ज़्यादा पानी आने से बांधों से भारी मात्रा में पानी छोड़ना पड़ता है, जिसकी वजह से हालात नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं.”
दिप्रिंट से बात करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि पोंग बांध नीचे की ओर आने वाली बाढ़ को कुछ हद तक कम कर सकता है. उन्होंने समग्र रूप से बांधों के बेहतर प्रबंधन की ज़रूरत बताई, यह भी कहा कि नीचे की ओर पानी रोकने का ढांचा ठीक से नहीं है और तटबंध कमज़ोर हैं.
ढहते तटबंध
पंजाब में बाढ़ का एक बड़ा कारण कमजोर और ढहते तटबंधों का ढांचा भी है. सतलुज और रावी नदियों ने इस साल कई जगह अपने किनारे तोड़े और भारी तबाही मचाई. इस बार की बाढ़ में कई तटबंधों के टूटने की खबरें आई.

पंजाबी यूनिवर्सिटी की पूर्व प्रोफेसर (भूगोल विभाग) गुरिंदर कौर ने डाउन टू अर्थ में लिखा, “राज्य में बाढ़ इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि नालों, मौसमी दरियाओं, छोटी नदियों और तटबंधों की समय पर देखभाल नहीं होती. जब अचानक बांध के फाटक खोले जाते हैं, तो बहुत ज्यादा पानी एक साथ नालों, नहरों और शाखाओं में घुसता है. कमज़ोर तटबंध इस दबाव को झेल नहीं पाते और टूट जाते हैं, जिससे बाढ़ आ जाती है.”
पंजाब सरकार के खान एवं भूविज्ञान विभाग की 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, नदियों, दरियाओं और नालों की समय पर सफाई (डिसिल्टिंग) न होने की वजह से उनमें गाद, रेत और बजरी का जमाव बढ़ गया. यही 2019 की बाढ़ का एक बड़ा कारण बना था.
अमृतसर के मुख्य कृषि अधिकारी बलजिंदर सिंह भुल्लड़ ने दिप्रिंट से कहा, “नदियों की ठीक से डिसिल्टिंग नहीं हुई. यह भी बाढ़ का कारण है. इसके अलावा, राज्य में नदियों के कैचमेंट एरिया पर भारी अतिक्रमण है.”
बीबीएमबी के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने भी कहा कि पानी छोड़कर बांधों की डिसिल्टिंग करना गाद जमा होने को कम करने का अच्छा तरीका है. बीबीएमबी के चेयरमैन त्रिपाठी ने भी गाद की समस्या पर ध्यान दिलाया और बताया कि सिर्फ भाखड़ा बांध की 25% क्षमता गाद से भर चुकी है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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