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Friday, 19 April, 2024
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40 दशक में औसत बारिश घटी, इसका क्षेत्रीय असंतुलन भी बढ़ा : सरकार

मौसम विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्षा चक्र में बदलाव का सीधा असर बारिश की अधिकता वाले पूर्वोत्तर राज्यों में बारिश की कमी के रूप में देखा गया है.

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नई दिल्ली : पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि भारत में पिछले चार दशक के दौरान न सिर्फ मौसमी बारिश की औसत मात्रा राष्ट्रीय स्तर पर घटी है बल्कि पिछले एक दशक में मानसून के क्षेत्रीय वितरण का असंतुलन भी बढ़ा है.

मौसम विभाग की एक आंकलन रिपोर्ट के मुताबिक वर्षा चक्र में बदलाव का सीधा असर बारिश की अधिकता वाले पूर्वोत्तर राज्यों में बारिश की कमी और कम बारिश वाले राजस्थान जैसे इलाकों में बारिश की अधिकता के रूप में देखा गया है. इससे मिट्टी के मिजाज में भी बदलाव आया है जिससे जमीन की उत्पादकता और फसल चक्र प्रभावित हुआ है.

मंत्रालय ने हाल ही में मानसून संबंधी मौसम विभाग के विश्लेषण के आधार पर देश में वर्षा क्रम में बदलाव का ब्योरा संसद में पेश करते हुये बताया, ‘उत्तर पश्चिम भारत में 2010 से 2019 के दौरान कई वर्षों की तुलना में कम बारिश दर्ज की गयी है. वहीं, उत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों में हाल के वर्षों में कम बारिश हुयी है.’

इसके अनुसार मानसून के असमान वितरण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक तरफ उत्तर और उत्तर पूर्वी राज्यों में बारिश की अधिकता वाले इलाकों में बारिश की मात्रा कम हुयी वहीं कम बारिश वाले राजस्थान में बीते एक दशक के कई सालों में सामान्य मात्रा की तुलना में अधिक वर्षा दर्ज की गयी.

उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान विभाग की साल 2007 की रिपोर्ट में बताया गया था कि साल 1981 से 2016 के बीच, देश में साल 1871-1980 की तुलना में औसतन 24 मिमी बारिश कम दर्ज हुयी है और इससे असम, मेघालय और पूर्वी मध्य प्रदेश में मानसून की बारिश कम होने की संभावना है.

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ब्योरे में मंत्रालय ने बताया कि वर्षा क्रम में बदलाव के मुताबिक फसल चक्र में परिवर्तन की जरूरत को देखते हुये भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कम बारिश और कम समय में तैयार होने वाली तथा बाढ़ और सूखे के अनुकूल फसलों की नयी किस्म भी विकसित कर ली है.

इन फसलों का प्रसार आईसीएआर के देश भर में मौजूद 121 कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से किया जा रहा है. साथ ही इन केन्द्रों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के अनुकूल फसल चक्र को ढालने और किसानों को इसके लिये अभ्यस्थ बनाने के लिये ‘राष्ट्रीय कृषि जलवायु अनुकूल कृषि नवाचार’ (एनआईसीआरए) कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है.

इसके अनुसार एनआईसीआरए के तहत आईसीएआर और आईआईटी की प्रादेशिक कृषि इकाईयों में संचालित 130 ऐग्रोमेट फील्ड यूनिट में मौसम की स्थानीय गतिविधियों के आधार पर किसानों को खेती से जुड़े रोजमर्रा के फैसले लेने में सहायता के लिये सप्ताह में दो दिन (मंगलवार और शुक्रवार) परामर्श शिविर लगते हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया सहित संचार के माध्यमों से भी यह परामर्श दिया जा रहा है.

मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार वर्षा क्रम में बदलाव का जमीन की गुणवत्ता पर क्षेत्रवार पड़ने वाले संभावित असर को देखते हुये जिला स्तर पर केन्द्र और राज्यों के सहयोग से आकस्मिक योजनायें बनाई जा रही है. इसके लिये केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना के तहत राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन को भी लागू किया है.

इसका मकसद जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप मरुस्थलीकरण, जमीन के क्षरण और बंजर होने का आंकलन करना है.

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