नई दिल्ली: भारतीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए गठित मंत्रियों के एक समूह ने अपनी रिपोर्ट में पाया है कि मौजूदा शुल्कों और सरकार की तरफ से लगाए तमाम प्रतिबंधों को धता बताते हुए भारतीय बाजार में चीनी उत्पादों की बाढ़ आ गई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य देशों के साथ भारत के व्यापार समझौतों का फायदा उठाने के लिए सोयाबीन से लेकर टेलीफोन संबंधी उपकरण और वाहनों से लेकर उनके कलपुर्जे तक जैसे तमाम चीनी उत्पाद दूसरे देशों के रास्ते यहां के बाजार में भेजे जा रहे हैं. यह भी पाया गया कि फुटवियर, कपड़े, चमड़े, घड़ियां और चार्जर्स जैसे बिजली के उपकरण के सेगमेंट में तो तमाम नामी ब्रांड के नकली या कमतर गुणवत्ता वाले उत्पादों को भारतीय बाजार में भेजा जा रहा है.
वाणिज्य मंत्रालय के डाटा से पता चलता है कि इनमें से अधिकांश वस्तुओं को चीन से आयात किया जाता है.
कपड़ा और महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी इस मंत्रिसमूह का नेतृत्व कर रही हैं और इसने अपनी रिपोर्ट अक्टूबर में सरकार को सौंपी थी. इस रिपोर्ट की एक प्रति दिप्रिंट के पास मौजूद है.
सिफारिशों पर कार्रवाई करने के लिए संबंधित सभी मंत्रालयों के साथ रिपोर्ट साझा की गई है. लेकिन सरकार रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले ही इनमें से कुछ खामियों को दूर करने की राह पर है.
उदाहरण के लिए, राजस्व विभाग ने ‘रुल्स ऑफ ऑरिजन‘ प्रावधान के तहत खामियों को दूर करने के लिए कदम बढ़ाया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि केवल उन्हीं देशों में निर्मित वस्तुएं जिनके साथ भारत में एक मुक्त व्यापार समझौता होता है, उन्हें कम आयात शुल्क का लाभ मिले. इसने अधिमान्य सीमा शुल्क लागू करने के लिए न्यूनतम मूल्य संवर्धन जैसी शर्तों को लागू किया है.
इसने सॉफ्टा समझौते के दुरुपयोग को रोकने के लिए सोयाबीन तेल के आयात के मानदंडों को भी कड़ा कर दिया था.
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एचएस कोड की निगरानी
मंत्रिसमूह ने नियमों का दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त कार्रवाई की वकालत की है. इसने इस दुरुपयोग को रोकने और पहचान सुनिश्चित करने के उद्देश्य से ‘एचएस कोड’ में बदलाव पर नज़र रखने के लिए भारत सामरिक व्यापार एजेंसी (आईएसटीए) बनाने का प्रस्ताव रखा है और किसी तरह की गड़बड़ी किए जाने पर कड़ी कार्रवाई करने को कहा है.
‘एचएस कोड’ का उपयोग वस्तुओं के वर्गीकरण के लिए किया जाता है और सभी देशों में एक मानकीकृत वर्गीकरण और शुल्क लागू करने के लिए इसे अपनाया जाता है.
मंत्रिसमूह ने रिपोर्ट में सुझाव दिया कि ‘नकली उत्पादों के आयात को सीमित करने के लिए निर्धारित एचएस कोड- 64 (फुटवियर), 61 (परिधान), 42 (चमड़े के उत्पाद), 91 (घड़ियां), 85 (इलेक्ट्रिकल मशीनरी और उपकरण)- की कड़ी जांच होनी चाहिए और कहा कि इससे करीब 15 बिलियन डॉलर की बचत हो सकती है.
इन सभी एचएस कोड में भारत में होने वाले आयात में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी चीन की है.
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अलग मॉडस ऑपरेंडी
जीओएम की रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत में आयात होने वाले उत्पादों में 20-30 प्रतिशत ‘अन्य’ श्रेणी में आते हैं, जो करीब 130 बिलियन डॉलर के आसपास होता है और यह मुख्य रूप से शुल्क और कर से बचने के लिए किया जाता है.
इसमें यह भी कहा गया है कि अन्य देशों द्वारा ‘रूल ऑफ ओरिजन’ के दुरुपयोग के कारण भी भारत को नुकसान उठाना पड़ता है.
वाहन और उसके कलपुर्जों का उदाहरण देते हुए जीओएम ने बताया कि भारत द्वारा चीन से आयात पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाए जाने के बाद सिंगापुर और हांगकांग से उनके आयात में तेज उछाल आ गया था.
रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि कैसे बाद के वर्षों में चीन से इन वस्तुओं का आयात घटा लेकिन सिंगापुर और हांगकांग से इनके आयात में क्रमशः 13,000 प्रतिशत और 277 प्रतिशत की वृद्धि हो गई.
साथ ही कहा गया कि इसीलिए, ऐसा माना जाता है कि चीन के कम निर्यात का इसके साथ एक मजबूत सहसंबंध है, आयात शुल्क से बचने के लिए हांगकांग और सिंगापुर के साथ भारत के व्यापार समझौतों का फायदा उठाकर वहां के रास्ते इनका निर्यात किया गया.
सोयाबीन का उदाहरण
जीओएम ने इस संदर्भ में दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते या साफ्टा के गठन के बाद नेपाल और बांग्लादेश से सोयाबीन तेल के आयात में भारी उछाल का उदाहरण सामने रखा.
रिपोर्ट में बताया गया कि 2016-17 के बाद से सोयाबीन तेल के आयात में 23,500 प्रतिशत की वृद्धि हुई वो भी इस तथ्य के बावजूद कि दोनों देशों के पास सोयाबीन का उत्पादन सीमित है और इसे क्रश करने की क्षमता भी सीमित ही है.
भारतीय निर्माताओं को पीछे रखने वाले मौजूदा तरजीही व्यापार समझौतों की समीक्षा की जरूरत पर बल देते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इस मामले में साफ्टा के तहत शुल्क में मिलने वाली छूट का फायदा उठाने के लिए डब्ल्यूटीओ के रूल ऑफ ओरिजिन को धता बताते हुए सोयाबीन को नेपाल या बांग्लादेश के रास्ते चीन से भेजा जा रहा था.’
सरकारी अनुमानों के अनुसार, वैश्विक विनिर्माण में भारत की हिस्सेदारी केवल 2.8 प्रतिशत है. सरकार ने बीते एक साल में भारतीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए कॉरपोरेट टैक्स दरों में बड़ी कटौती और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देने जैसे कई कदम उठाए है. सरकार ने स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए कुछ उत्पादों पर सीमा शुल्क भी लगाया.
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