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शुक्रवार, 13 जून, 2025
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वर्ष बीतने के कगार पर, बैंक आफ बड़ौदा के ‘राष्ट्रभाषा सम्मान’ पर बना हुआ है संशय

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(नरेश कौशिक)

नयी दिल्ली, पांच दिसंबर (भाषा) भारतीय भाषाओं के साहित्य के हिंदी अनुवाद को प्रोत्साहन देने के लिए बैंक आफ बड़ौदा द्वारा पिछले साल शुरू किए गए अनुवाद के सबसे बड़े राष्ट्रीय पुरस्कार ‘राष्ट्रभाषा सम्मान’ को लेकर अस्पष्टता की स्थिति बनी हुई है। साल बीतने को है, लेकिन अभी तक बैंक की ओर से 2024 के राष्ट्रभाषा सम्मान पुरस्कार के बारे में कोई पहल नहीं की गई है, जबकि पिछले साल जून महीने में पुरस्कार की घोषणा कर दी गई थी।

वर्ष 2023 के निर्णायक मंडल में शामिल कथाकार और अनुवादक प्रभात रंजन ने इस वर्ष अभी तक पुरस्कार की घोषणा नहीं किए जाने की पृष्ठभूमि में दावा किया, ‘‘2023 में पहला पुरस्कार प्रदान किया गया। लेकिन पहला ही पुरस्कार उर्दू उपन्यास को देने पर विवाद हुआ था।’’

उन्होंने कहा,‘‘ और इस संबंध में बाद में बैंक को बड़ी संख्या में आरटीआई आवेदन भी प्राप्त हुए थे।’’

उन्होंने आशंका जतायी कि संभवत: इसी के चलते इतने बड़े पुरस्कार को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

हालांकि बैंक आफ बड़ौदा की एक शीर्ष अधिकारी ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में पुरस्कार को लेकर हुए विवाद या इसे बंद किए जाने संबंधी सवाल का कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया।

महिला अधिकारी ने अपना नाम गोपनीय रखने की अपील के साथ कहा कि पुरस्कार चयन की प्रक्रिया अभी शुरू हुई है और इस पर विचार चल रहा है। उन्होंने साथ ही बताया कि 2024 के लिए अभी तक किसी को पुरस्कार नहीं दिया गया है।

पुरस्कार को बंद करने संबंधी खबरों पर उन्होंने कहा कि प्रबंधन ने अभी तक कुछ नहीं कहा है कि इस पुरस्कार को जारी रखेंगे या कुछ बदलाव करेंगे।

इस साल यह पुरस्कार दिया जाएगा या नहीं, इस सवाल पर महिला अधिकारी ने कोई टिप्पणी करने से इंकार करते हुए कहा कि निर्णायक रूप से कुछ नहीं बता सकते।

वर्ष 2023 में गठित निर्णायक मंडल की अध्यक्ष गीतांजलि श्री से संपर्क किए जाने पर उन्होंने इस मामले में कोई भी जानकारी होने से इंकार किया।

पिछले साल मार्च-अप्रैल में पुरस्कार के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित की गई थीं और पुरस्कार विजेता की घोषणा जून महीने में की गई। उर्दू के लेखक मोहसिन खान को उनके उपन्यास ‘अल्लाह मियां का कारखाना’ के लिए यह पुस्कार प्रदान किया गया था।

इस पुरस्कार के तहत विजेता कृति के मूल लेखक तथा उसके हिंदी अनुवादक को क्रमश: 21 लाख तथा 15 लाख रुपये की सम्मान राशि दी जाती है। इसके अलावा अन्य पांच चयनित श्रेष्‍ठ कृतियों के लेखकों तथा अनुवादकों को क्रमश: तीन और दो लाख रुपये की राशि दिए जाने का प्रावधान है।

इस पुरस्कार को शुरू करने की घोषणा 2022 में जयपुर साहित्योत्सव (जेएलएफ) के दौरान की गई थी।

पिछले निर्णायक मंडल में शामिल रहे शिक्षाविद् पुष्पेश पंत ने कहा,‘‘ अभी तक कोई जूरी तक गठित नहीं की गई है, तो कुछ गड़बड़ है। हालांकि बैंक के पूर्व महाप्रबंधक ने पुरस्कार की घोषणा के समय कहा था कि इसके लिए एक ट्रस्ट बनाया जाएगा, ताकि यह पुरस्कार बाद में भी जारी रहे।’’

बैंक आफ बड़ौदा के पूर्व प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी संजीव चड्ढा ने 2023 में इस पुरस्कार की ‘लॉंग लिस्ट’ जारी करते हुए कहा था कि हमने ‘बैंक ऑफ़ बड़ौदा राष्ट्रभाषा सम्मान’ की शुरुआत भारतीय भाषाओं के मूल साहित्य और उनके हिंदी अनुवाद को सम्मानित और प्रोत्साहित करने के लिए की है। यह पुरस्कार देश के विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिभावान भारतीय लेखकों को राष्ट्रीय मंच प्रदान करेगा तथा भारतीय भाषाओं के साहित्य लेखन और उनके अनुवाद कार्य को बढ़ावा देगा।’’

पुरस्कार के चयन के लिए बुकर पुरस्कार विजेता गीतांजलि श्री की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय निर्णायक मंडल का गठन किया गया था। निर्णायक मंडल के अन्य चार सदस्यों में प्रसिद्ध कवि अरूण कमल, शिक्षाविद् और इतिहासकार पुष्पेश पंत, साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवयित्री और उपन्यासकार अनामिका तथा हिंदी कथा लेखक एवं अनुवादक प्रभात रंजन शामिल थे।

भाषा नरेश

नरेश पवनेश

पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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