scorecardresearch
Tuesday, 23 April, 2024
होमदेशअर्थजगतसीमा पर तनाव घटने के बाद भारत ने चीनी निवेश प्रस्तावों को ‘सावधानी’ से मंजूर करना शुरू किया

सीमा पर तनाव घटने के बाद भारत ने चीनी निवेश प्रस्तावों को ‘सावधानी’ से मंजूर करना शुरू किया

सूत्रों ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार चीनी निवेश प्रस्तावों को ‘गति देने’ की योजना बना रही है, जो मुख्यत: विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित हैं. साथ ही जोड़ा कि इसके पीछे विचार ‘धीरे-धीरे और स्थिरता के साथ आर्थिक संबंधों को फिर से बहाल करना है.’

Text Size:

नई दिल्ली : लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनातनी में आ रही कमी के बीच नई दिल्ली ने बीजिंग की ओर से निवेश से जुड़े कुछ प्रस्तावों को ‘सावधानी’ के साथ मंजूरी पर विचार करना शुरू कर दिया है. विभिन्न सूत्रों ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी.

सूत्रों ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार चीनी निवेश प्रस्तावों को ‘गति देने’ की योजना बना रही है, जो मुख्यत: विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित हैं. साथ ही जोड़ा कि इसके पीछे विचार ‘धीरे-धीरे और स्थिरता के साथ आर्थिक संबंधों को फिर से बहाल करना है.’

अप्रैल 2020 में भारत ने एक आदेश जारी किया था जिसके तहत पड़ोसी देश अगर देश में निवेश करना चाहें तो इसके लिए सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य था. यह आदेश मुख्य रूप से कोविड महामारी के बीच चीनी कंपनियों का दबदबा रोकने के उद्देश्य से जारी किया गया था. हालांकि. चीन की तरफ से आए प्रस्तावों को मंजूरी दी जा रही है, लेकिन सूत्रों ने कहा कि आदेश में कोई बदलाव नहीं किया गया है.

पहचान न बताने की शर्त पर वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हमने चीन से आए एफडीआई प्रस्तावों को मंजूरी की प्रक्रिया शुरू कर दी है. रणनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों से जुड़े प्रस्तावों को छोड़कर बाकी को हम तेजी के साथ मंजूर कर रहे हैं.’

अधिकारी ने कहा कि जिन प्रस्तावों की मंजूरी प्रक्रिया तेज की गई है, वे विनिर्माण से संबंधित हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

यह कदम अप्रैल-मई 2020 में शुरू होकर करीब एक साल तक चले गतिरोध के बाद भारत और चीन के लद्दाख से अपनी सेनाएं हटाए जाने की दिशा में आगे बढ़ने के बाद उठाया गया है. गतिरोध के बीच भारत अपने इस रुख पर अडिग था कि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द बहाल हुए बिना चीन के साथ सामान्य व्यापार और कारोबारी रिश्ते जारी नहीं रह सकते हैं—जैसा कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्पष्ट किया था.

सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ हफ्तों के दौरान राजनयिक वार्ताओं के दौरान एफडीआई प्रस्तावों पर चर्चा हुई है.

पिछले महीने लद्दाख से सैन्य वापसी का पहला चरण, पैंगोग झील क्षेत्र में, सफलतापूर्व पूरा होने के बाद 25 फरवरी को एस. जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच करीब 75 मिनट की बातचीत हुई थी.

इसमें नई दिल्ली ने कहा कि इस क्षेत्र में सैन्य बलों के बीच तनाव को पूरी तरह खत्म करने के लिए टकराव वाले सभी इलाकों से सेना की वापसी जरूरी है, साथ ही जोड़ा ‘शांति और सौहार्द बहाली की दिशा में आगे बढ़ने के साथ द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति के लिए उपयुक्त स्थितियां कायम करेंगे.’

दोनों पक्षों ने मुद्दे जल्द सुलझाने के उद्देश्य से दोनों मंत्रियों के बीच एक हॉटलाइन सेवा स्थापित करने पर भी सहमति जताई.

शुक्रवार को चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिश्री ने चीनी उप-विदेश मंत्री लुओ झाओहुई से मुलाकात की और इस पर चर्चा की कि कैसे सीमा क्षेत्रों में शांति बहाली से ‘आपसी रिश्तों में प्रगति का माहौल बनेगा.’


यह भी पढ़ें: भारत की जगह नहीं ले सकता चीन, नेपाल में उसके बढ़ते प्रभाव से चिंता की बात नहीं- पूर्व PM भट्टाराई


एफडीआई नीति में ‘पहले जैसी ही’ पाबंदियां

पिछले वर्ष अप्रैल में केंद्र सरकार ने आदेश जारी किया था कि चीन की ओर से आए सभी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रस्तावों के लिए सरकार की मंजूरी आवश्यक होगी. यह उन देशों के एफडीआई निवेश को विनियमित करने की नीति का हिस्सा था, जिनके साथ भारत सीमाएं साझा करता है.

बीजिंग ने अप्रैल 2020 के कदम को ‘भेदभावपूर्ण’ कहा था और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत के खिलाफ कार्रवाई की धमकी दी थी क्योंकि नई दिल्ली ने इसकी समीक्षा करने से इनकार कर दिया था.

उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) के एक अधिकारी के अनुसार, यह प्रतिबंध फिलहाल ‘पहले की तरह ही’ लागू है.

ऐसी रिपोर्टों के बीच कि सरकार चीन से 26 प्रतिशत तक एफडीआई के प्रस्तावों ऑटोमैटिक रूट से मंजूरी की छूट पर विचार कर सकती है, अधिकारी ने कहा कि अप्रैल 2020 की नीति में अभी तक कोई बदलाव नहीं हुआ है.

चीन के संबंध में, अधिकारी ने कहा, उसे ‘खुली छूट नहीं’ दी गई है.

अधिकारी ने बताया कि चीन के कुछ प्रस्तावों को हाल में मंजूर किया गया है, लेकिन इनकी संख्या के बारे में जानकारी से इनकार कर दिया.

अधिकारी ने आगे बताया कि सरकारी मंजूरी हासिल करने की इच्छुक कंपनियों को एफडीआई पोर्टल पर अपना पंजीकरण करना होगा और उनके सिक्योरिटी क्लीयरेंस के लिए उनके आवेदनों पर गृह मंत्रालय सहित संबंधित विभागों की तरफ से गौर किया जाएगा.

बीजिंग ने अप्रैल 2020 के कदम को ‘भेदभावपूर्ण’ करार दिया था और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत के खिलाफ कार्रवाई की धमकी भी दी थी, लेकिन नई दिल्ली ने इसकी समीक्षा से इनकार कर दिया था.

भारत-चीन के बीच व्यापार घाटा घटाने पर जोर

यद्यपि चीनी निवेश प्रस्तावों को धीरे-धीरे मंजूरी मिलने लगी है, भारत वित्त वर्ष 2020-2021 में व्यापार घाटे पर ‘सतर्कता से नजर’ बनाए हुए है, जो घटकर वित्त वर्ष 2020-21 में लगभग 45 बिलियन डॉलर से 46 बिलियन डॉलर पर आने की उम्मीद है, सूत्र ने बताया. 2020-2021 के डाटा का अभी इंतजार किया जा रहा है.

वाणिज्य विभाग के अनुसार, भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा 2019-2020 में 48.65 बिलियन डॉलर और 2018-19 में 53.56 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था.

ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत की तरफ से चीन को लोहे और इस्पात, तांबा और एल्युमीनियम का निर्यात बढ़ रहा है जबकि चीनी सामानों का आयात घट रहा है.

व्यापार विशेषज्ञ और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर बिश्वजीत धर कहते हैं कि आयात घटने का प्रमुख कारण है भारत में आर्थिक विकास में सुस्ती और भारतीय उद्योगों का ‘खराब दशा’ में होना.

धर ने कहा, ‘चीन को भारत से निर्यात मुख्यत: बढ़ने और आयात घटने की वजह यह है कि भारत में न तो ग्रोथ है और न ही उपभोग के लिए मांग ही है. उद्योग अपना उत्पादन घटा रहे हैं इसलिए बिचौलियों की मांग कम है. इलेक्ट्रॉनिक सामानों में भी कोई वृद्धि नहीं हुई है और उद्योगों ने अपने उत्पादन बंद कर रखे हैं.’

लॉ फर्म जे. सागर एसोसिएट्स के पार्टनर ललित कुमार के अनुसार, ‘स्टार्ट-अप और न्यू एज फर्मों सहित तमाम भारतीय कंपनियों में पहले से ही चीनी निवेश है और इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है. इसलिए, इसमें सही संतुलन कायम करना होगा.’

उन्होंने कहा, ‘अवसरवादी अधिग्रहण और टेकओवर को जहां प्रतिबंधित किया जा सकता है, वहीं 5 से 15 प्रतिशत तक मामूली होल्डिंग की अनुमति दी जा सकती है.’

एफडीआई निवेश में विशेषज्ञता रखने वाले कुमार ने कहा कि सरकार की मंजूरी केवल बड़े अधिग्रहण तक ही सीमित होनी चाहिए, जहां एक चीनी फर्म अहम हिस्सेदारी रखती है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर प्रतिबंध लगाए ही जाते हैं और सरकार की मंजूरी अनिवार्य रहती है, तो मंजूरी प्रक्रिया तेज करने की जरूरत है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments