नई दिल्ली: भीमा कोरेगांव केस, जिसकी एनआईए जांच चल रही है, में एक आरोपी रोना विल्सन के खिलाफ प्रमुख साक्ष्य पुलिस की तरफ से जब्त किए गए एक लैपटॉप में प्लांट किए गए थे. यह दावा मैसाचुसेट्स स्थित डिजिटल फॉरेंसिक फर्म आर्सेनल कंसल्टिंग ने अपनी एक रिपोर्ट में किया है.
सबसे पहले बुधवार को दि वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित उक्त फर्म के फॉरेंसिक आकलन के मुताबिक, किसी साइबर हमलावर ने विल्सन के लैपटॉप में सेंध लगाने के लिए मालवेयर का इस्तेमाल किया और उसमें कम से कम 10 संदिग्ध लेटर प्लांट कर दिए.
मालवेयर—मलीसियस सॉफ्टवेयर का संक्षिप्त नाम—का इस्तेमाल साइबर अपराधियों की तरफ से किसी कंप्यूटर सिस्टम में सेंध लगाने या अनधिकृत तौर पर उसकी एक्सेस हासिल करके उसको क्षति पहुंचाने के लिए किया जाता है.
एनआईए ने जब्त डिजिटल उपकरणों की फॉरेंसिक इमेज बचाव पक्ष को मुहैया कराई थी जिसने उन्हें समीक्षा के लिए अमेरिकी फर्म के पास भेजा था.
प्रतिक्रिया के लिए संपर्क करने पर एनआईए प्रवक्ता जया रॉय ने आर्सेनल की रिपोर्ट को ‘तथ्यों से छेड़छाड़’ बताते हुए खारिज कर दिया.
आर्सेनल की रिपोर्ट के आधार पर, जिसमें दावा किया गया है कि विल्सन के कंप्यूटर में 2016 और 2018 के बीच लगभग दो वर्षों में कुछ गड़बड़ियां की गई थी, एक्टिविस्ट की तरफ से बांबे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करके अदालत से उसके खिलाफ मामला खारिज करने का आग्रह किया गया है.
विल्सन के वकील मिहिर देसाई ने कहा, ‘कार्यवाही रद्द करने के लिए बांबे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. यह फॉरेंसिक रिपोर्ट संदर्भ के लिए इसके साथ संलग्न है. यह विल्सन की संलिप्तता को लेकर संदेह दूर करने के लिए पर्याप्त है.’
देसाई ने कहा कि दस्तावेज एनआईए द्वारा अपने केस में विल्सन के साथ–साथ अन्य आरोपियों के खिलाफ बनाए गए सबूतों का हिस्सा हैं.
उन्होंने अन्य चीजों के साथ ईमेल का हवाला देते हुए कहा, ‘हमें इस मामले में साक्ष्यों से जुड़े मुख्य दस्तावेज मिले और उसी में यह पाया गया. उम्मीद है कि अदालत इस पर ध्यान देगी. मामले पर अगले कुछ दिनों में सुनवाई होनी है.
दिप्रिंट की तरफ से एक्सेस की गई इस रिपोर्ट में अमेरिकी फर्म ने विल्सन के कंप्यूटर पर कथित मालवेयर हमले को ‘अब तक आर्सेनल के सामने आए सबूतों से छेड़छाड़ संबंधी सबसे गंभीर मामलों में से एक’ बताया है. हालांकि, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने इस निष्कर्ष को खारिज कर दिया.
एनआईए प्रवक्ता जया रॉय ने कहा. ‘कोर्ट में दाखिल आरोपपत्र के साथ संलग्न की जाने वालीं फॉरेंसिक रिपोर्ट मान्यता प्राप्त लैब की होती हैं, जिसे भारतीय अदालतें स्वीकार करती हैं. इस मामले में, यह काम रीजनल फॉरेंसिक साइंस लैब, पुणे ने किया था. और उसकी रिपोर्ट के अनुसार ऐसा कोई मालवेयर नहीं मिला. बाकी सब तथ्यों के साथ छेड़छाड़ का मामला है.’
बुधवार शाम को जारी एक बयान में एनआईए ने आर्सेनल के निष्कर्षों पर कई सवाल उठाए. रिपोर्ट में विल्सन के कंप्यूटर पर लेटर प्लांट किए जाने संबंधी दावों का जिक्र करते हुए एनआईए ने कहा कि ‘जिन संदर्भों और घटनाओं का जिक्र है वे चार्जशीट में शामिल अन्य मौखिक, दस्तावेजी और तकनीकी सबूतों से पूरी तरह मेल खाते हैं.’
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‘गोपनीय दस्तावेज हिडन फोल्डर में डाले गए’
भीमा कोरेगांव मामला 2018 में नए साल की पूर्व संध्या पर भीड़ जुटने से संबंधित है. ये लोग उस लड़ाई के 200 साल पूरे होने के मौके पर एक आयोजन के लिए एकत्र हुए थे जो पेशवाओं और ब्रिटिश सेना, जिसमें दलित शामिल थे और बाद में जीते भी थे, के बीच हुई थी. अगले दिन भड़की हिंसा के मद्देनजर इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोगों पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया गया है.
मामले की जांच सबसे पहले पुणे पुलिस ने की और बाद में एनआईए ने इसे अपने हाथ में ले लिया था. जांचकर्ताओं ने तब से राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए एक बड़ी साजिश का आरोप लगाया.
विल्सन इस केस में गिरफ्तार 16 लोगों में से एक हैं. अन्य लोगों में वकील सुधा भारद्वाज, आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और पादरी स्टेन स्वामी और एक्टिविस्ट वारवरा राव शामिल हैं.
एनआईए के अनुसार, भीमा कोरेगांव के अभियुक्तों की इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों से गोपनीय पत्र बरामद किए गए थे. जांच एजेंसी ने चार्जशीट में कथित तौर पर विल्सन के पास से जब्त किए गए एक दस्तावेज का हवाला देते हुए कहा है कि यह बताता है कि ‘एंटी फासिस्ट फ्रंट’ का गठन एक माकपा माओवादी नेता के निर्देश पर किया गया है.
आर्सेनल ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि विल्सन के कंप्यूटर पर 22 महीने से अधिक समय तक गड़बड़ियां की गई थीं.
रिपोर्ट में दावा किया गया है, ‘विल्सन के कंप्यूटर में सेंध लगाने वाले साइबर हमलावरों के पास पर्याप्त संसाधन (समय सहित) थे और ये स्पष्ट है कि उनका प्राथमिक लक्ष्य निगरानी और गोपनीय दस्तावेज प्लांट करना था.’
रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया है कि आर्सेनल ने उसी हमलावर को उन खास मालवेयर इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ा पाया जिनके जरिये पिछले चार वर्ष के दौरान न सिर्फ विल्सन के कंप्यूटर पर सेंध लगाई गई बल्कि भीमा कोरेगांव मामले में उनके सह–प्रतिवादियों और ‘भारत के कुछ अन्य हाईप्रोफाइल मामलों’ में गड़बड़ी की गई.
आर्सेनल की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि विल्सन के कंप्यूटर में पाए गए गोपनीय दस्तावेजों को मालवेयर के जरिये एक हिडन फोल्डर में पहुंचाया गया था.
रिपोर्ट में दावा किया गया है, ‘विल्सन के कंप्यूटर में गोपनीय दस्तावेज नेटवायर (एक मालवेयर) के जरिये एक हिडन फोल्डर में डाले गए थे और किसी तरह से ये इसमें नहीं पहुंचे.’
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि किसी ने वारवरा राव के अकाउंट का इस्तेमाल करके एक के बाद एक कई ‘संदिग्ध मेल’ भेजने के बाद 13 जून 2016 को विल्सन के कंप्यूटर में सेंध लगा ली.
इसके मुताबिक, ‘ईमेल पर बातचीत के दौरान वारवरा राव के ईमेल अकाउंट का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति ने बार–बार यह कोशिश की कि विल्सन एक खास डॉक्यूमेंट को खोलें. शाम 6:18 बजे विल्सन ने जवाब दिया कि उन्होंने डॉक्यूमेंट सफलतापूर्वक खोल लिया. ये डॉक्यूमेंट खुलते ही उसके साथ भेजी गई ‘एनदर विक्ट्री.आरएआर’ नामक एक आरएआर अर्काइव फाइल के जरिये विल्सन के कंप्यूटर में नेटवायर रिमोट एक्सेस ट्रोजन (आरएटी) को इंस्टॉल कर दिया गया.
आरएआर डाटा को कम्प्रेश करना वाला एक एप्लिकेशन है, जबकि आरएटी एक प्रकार का मालवेयर है जिसका उपयोग किसी के कंप्यूटर की एक्सेस हासिल करने के लिए किया जाता है. यह आमतौर पर टार्गेट यूजर द्वारा किसी लिंक पर क्लिक करने या ईमेल के साथ अटैच फाइल को डाउनलोड करने पर इंस्टाल हो जाता है.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ‘कोई ऐसा सबूत नहीं है जो यह बताता हो कि विल्सन के खिलाफ अभियोजन पक्ष की तरफ से पेश किए गए शीर्ष दस सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों को कभी भी विल्सन के कंप्यूटर पर किसी वैध तरीके से इंटरैक्ट किया गया हो.’
रिपोर्ट में आगे दावा किया गया है, ‘सबसे बड़ी बात है कि ऐसा भी कोई सबूत नहीं है जो शीर्ष दस दस्तावेजों में से किसी एक के भी या हिडन फोल्डर को कभी भी खोले जाने को दर्शाते हों.’
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘आमतौर पर जब डॉक्यूमेंट फाइल बनाई जाती है या पहली बार खोली जाती है तो ऑब्जेक्ट आइडेंटीफायर्स बने हैं. इस मामले में शीर्ष दस डॉक्यूमेंट में कोई भी ऑब्जेक्ट आइडेंटीफायर नहीं है.’
एनआईए ने रिपोर्ट खारिज की
एनआईए ने बुधवार शाम जारी एक बयान में कहा कि पुणे पुलिस ने 17 अप्रैल 2018 को विल्सन के दिल्ली स्थित घर पर छानबीन की और ‘हार्ड डिस्क, सीडी, लैपटॉप, मोबाइल फोन, मेमोरी कार्ड समेत कुछ संदिग्ध सामग्री’ जब्त की. इसमें शामिल डिजिटल डिवाइस ‘आगे की जांच के लिए रीजनल एफएसएल पुणे’ को भेज दी गई थीं.
बयान में कहा गया कि विश्लेषण के बाद पुणे स्थित रीजनल लैब ने ‘इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की इमेज और क्लोन कॉपी सहित एक फॉरेंसिक रिपोर्ट भेज दी और इसमें कहीं भी डिजिटल डिवाइस के साथ कोई छेड़छाड़ किए जाने की बात सामने नहीं आई है.’
चार्जशीट दायर होने के बाद एनआईए ने ‘फाइनल रिपोर्ट के साथ डिजिटल डिवाइसों की फॉरेंसिक इमेज बचाव पक्ष को उपलब्ध करा दी थी और जिसे उन्होंने विश्लेषण के लिए अमेरिकी फर्म के पास भेजा था.’
एनआईए ने आर्सेनल के इस दावे पर भी सवाल उठाया कि विल्सन के कंप्यूटर में 13 जून 2016 यानी भीमा कोरेगांव की घटना से डेढ़ साल पहले सेंध लगाई गई थी.
एनआईए ने कहा, ‘आर्सेनल कंसल्टिंग की रिपोर्ट के अनुसार बताया जा रहा है कि रोना विल्सन के कंप्यूटर में सेंध उनकी गिरफ्तारी से 22 माह पहले लगाई गई थी और इसीलिए इसे उनकी गिरफ्तारी से जोड़ना समझ से परे है, क्योंकि यह मामला उनकी गिरफ्तारी से छह महीने पहले 8 जनवरी 2018 को, 1 जनवरी 2018 की एक घटना के संदर्भ में दर्ज किया गया था.’
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