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शुक्रवार, 13 जून, 2025
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सभी राजनीतिक दल मुफ्त सौगातों के पक्ष में : न्यायालय

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नयी दिल्ली, 23 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त चीजों के वादों का विरोध करने वाली जनहित याचिका पर विचार करते हुए मंगलवार को कहा कि भाजपा समेत सभी राजनीतिक दल मुफ्त योजनाओं के पक्ष में हैं और इसलिए इससे निपटने के लिए न्यायिक प्रयास किया गया है।

शीर्ष अदालत ने मुफ्त योजनाओं के मुद्दे पर तथा इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप पर बयान देने के लिए द्रविण मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) और उसके कुछ नेताओं से अप्रसन्नता भी जाहिर की।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति हिमा कोहली तथा न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘इस मुद्दे पर मैं कह सकता हूं कि भाजपा समेत सभी राजनीतिक दल एक ही तरफ हैं। सभी मुफ्त सौगात चाहते हैं। इसलिए हमने एक कोशिश की।’’

पीठ ने कहा कि इसके पीछे मंशा इस मुद्दे पर व्यापक बहस शुरू कराने की है और इस लिहाज से समिति के गठन का विचार किया गया। उसने कहा, ‘‘हमें देखना होगा कि मुफ्त चीज क्या है और कल्याण योजना क्या है।’’

पीठ ने कहा कि उसे संतुलना बनाना होगा और वह सरकार की किसी नीति या योजना के खिलाफ नहीं है।

उसने कहा, ‘‘कुछ ने कहा कि हमें विचार करने का, इन मुद्दों पर ध्यान देने का कोई हक नहीं है। हमें संतुलन बनाना होगा। हम सरकार की किसी नीति के खिलाफ नहीं हैं। हम किसी योजना के खिलाफ नहीं हैं।’’

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने जैसे ही द्रमुक की ओर से दलीलें रखना शुरू किया, पीठ ने पार्टी के नेताओं के कुछ बयानों का उल्लेख करते हुए उनसे अप्रसन्नता जताई।

शुरुआत में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वैधानिक वित्त आयोग की समिति गठित करने का विचार रखा। पीठ ने सिब्बल की मदद मांगी है। उन्होंने कहा कि वित्तीय प्रबंधन जिम्मेदारी कानून के तहत अगर कुछ मुफ्त चीजें वितरित की जाती हैं तो लाभ 3 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता।

पीठ ने सुझावों पर गौर किया और कहा कि बहस जरूरी है और पूछा कि क्या इस पर केंद्रीय कानून होने पर न्यायिक जांच की अनुमति है। सिब्बल ने कहा कि न्यायपालिका के पास किसी भी कानून की वैधता की जांच करने की शक्ति है।

सीजेआई ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, कुछ राज्य गरीबों और महिलाओं को साइकिल देते हैं। यह बताया गया है कि साइकिलों ने जीवन शैली में सुधार किया है। समस्या यह है कि कौन सी मुफ्त सौगात है और कौन सी चीज किसी व्यक्ति के उत्थान के लिए लाभदायक है। ग्रामीण गरीबी से पीड़ित एक व्यक्ति के लिए उसकी आजीविका उस छोटी नाव या साइकिल पर निर्भर हो सकती है। हम यहां बैठकर इस पर बहस नहीं कर सकते”।

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी को समाज कल्याण योजनाओं से आपत्ति नहीं है लेकिन कठिनाई तब सामने आई जब एक पार्टी ने टेलीविजन जैसी गैर-आवश्यक चीजें बांटीं।

उन्होंने कुछ राजनीतिक दलों के मुफ्त बिजली के दावों का भी जिक्र किया और कहा कि पीएसयू वित्तीय रूप से भारी नुकसान उठा रहे हैं।

कानून अधिकारी ने कहा, ‘मतदाता को सोच समझकर चुनाव करने का अधिकार है। यदि आप उसे झूठे वादे दे रहे हैं, जिसकी आपकी वित्तीय स्थिति अनुमति नहीं देती है या आप अर्थव्यवस्था को नष्ट कर रहे हैं …. तो यह एक गंभीर मुद्दा है जिसके विनाशकारी आर्थिक परिणाम हो सकते हैं।’

शीर्ष अदालत वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में उपहार देने की प्रथा का विरोध करती है और चुनाव आयोग से उनके चुनाव प्रतीकों पर रोक लगाने और उनका पंजीकरण रद्द करने के लिए अपनी शक्तियों का उपयोग करने की अपील करती है।

भाषा वैभव नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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