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Sunday, 28 April, 2024
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एयर इंडिया के निजीकरण का विरोध करेगा एयरलाइन कर्मचारी संघ

यूनियन के प्रतिनिधि के अनुसार, यूनियनों ने निजीकरण का विरोध करने का फैसला किया है और इसके लिए सभी कानूनी विकल्प तलाशें जाएंगे.

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नई दिल्ली: एयर इंडिया के कर्मचारी संघों ने राष्ट्रीय एयरलाइन के निजीकरण का विरोध करने का फैसला किया है. कर्मचारियों के बकाया वेतन और पेंशन के भुगतान सहित विभिन्न मुद्दों पर अभी भी स्पष्टता नहीं है.

कर्मचारी यूनियनों के प्रतिनिधियों की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब सरकार घाटे में चल रही एयर इंडिया के प्रस्तावित विनिवेश के लिए अंतिम रूपरेखा पर काम कर रही है.

मुंबई में विभिन्न यूनियनों के प्रतिनिधियों की बैठक में यह भी तय किया गया कि निजीकरण के खिलाफ सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन (आईटीएफ) को पत्र लिखा जाएगा.

इनमें पायलटों, चालक दल के सदस्यों, इंजीनियरों और ग्राउंड स्टाफ समेत अन्य का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनियनें शामिल थी.

यूनियन के प्रतिनिधि के अनुसार, यूनियनों ने निजीकरण का विरोध करने का फैसला किया है और इसके लिए सभी कानूनी विकल्प तलाशें जाएंगे.

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बता दें कि इसी साल जुलाई में एयर इंडिया के निजीकरण के अपने प्रस्ताव को देखते हुए सरकार ने कंपनी में व्यापक स्तर पर सभी नियुक्तियों और पदोन्नतियों को रोकने का निर्देश दिया था.


यह भी पढ़ें : एयर इंडिया के निजीकरण पर काम तेज, सभी नियुक्तियां, पदोन्नति रोकने के निर्देश


पिछले कार्यकाल में बोली लगाने वाले को ढूंढ़ने में नाकाम रही मोदी सरकार इस कार्यकाल में एयर इंडिया को निजी हाथों में देने के लिए युद्ध स्तर पर काम कर रही है. सरकार ने निजीकरण की प्रक्रिया में निर्णय लेने के लिए मंत्रियों के समूह (जीओएम) को दोबारा गठित किया था. जिसका अध्यक्ष अमित शाह को बनाया गया था. यह समिति एयर इंडिया के निजीकरण के संबंध में फैसला लेगी. इसमें वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य एवं रेल मंत्री पीयूष गोयल, नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी बतौर सदस्य हैं.

एयर इंडिया पर कुल लगभग 58,000 करोड़ रुपये का कर्ज है. राष्ट्रीय विमानन कंपनी का संचयी नुकसान 70,000 करोड़ रुपये है. इसी साल 31 मार्च को खत्म हुए वित्त वर्ष में विमानन कंपनी को 7,600 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.

निजीकरण के मुद्दे पर नागरिक विमानन मंत्री भी कह चुके हैं कि एयर इंडिया को बचाने के लिए उसका निजीकरण करना ही होगा.

सरकार ने पिछले साल एयर इंडिया में 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए निविदा आमंत्रित की थी. लेकिन निविदा प्रक्रिया के पहले चरण में एक भी निजी पक्ष ने दिलचस्पी नहीं ली जिससे यह योजना विफल रही.

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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