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Friday, 19 April, 2024
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भविष्य की किसी भी COVID लहर से बच्चों के प्रभावित होने की संभावना नहीं: एम्स सीरो सर्वेक्षण

अध्ययन में यह भी पाया गया कि 10 से 17 वर्ष की आयु के बच्चों में 60.30 प्रतिशत सेरोपोसिटिविटी थी, लेकिन इनमें से 50.9 प्रतिशत पॉजिटिव मामले एसिम्प्टोमैटिक थे.

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नई दिल्ली: इस आशंका के बीच की संभावित तीसरी लहर बच्चों और किशोरों को अधिक प्रभावित कर सकती है, दिल्ली और तीन राज्यों में बच्चों और वयस्कों पर किए गए एक सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण के मध्यावधि विश्लेषण में 2-17 वर्ष की आयु के बच्चों में 55.7 प्रतिशत, सीरोप्रीवैलंस पाया गया है. जिससे देश को यह आश्वासन मिलता है कि यह समूह तीसरी लहर में वेरिएंट से सामना करने के लिए कमजोर नहीं है.

अध्ययन को एम्स, नई दिल्ली की संस्थागत नैतिकता समिति और एम्स भुवनेश्वर, एम्स गोरखपुर, ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, फरीदाबाद और अगरतला गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज सहित अन्य सभी भाग लेने वाले संस्थानों द्वारा अनुमोदित किया गया था.

एक सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण उन लोगों की संख्या का विश्लेषण करता है जिन्होंने वायरस के लिए एंटीबॉडी विकसित की है, जो इस बात का अनुमान लगाते हैं कि जिनको कोविड -19 हुआ वो आबादी सामने आई है.

एम्स के सर्वेक्षण में वयस्कों की तुलना में बच्चों में सीरोप्रीवैलंस पाया गया, बाद वाले समूह के 63.5 प्रतिशत वयस्कों ने कोविड एंटीबॉडी विकसित किए.

रिपोर्ट में यह देखा गया कि ‘बच्चों में सार्स- सीओवी-2 सीरो-पॉजिटिविटी दर अधिक थी और वयस्क आबादी के बराबर थी. इसलिए, यह संभावना नहीं है कि कोविड-19 संस्करण द्वारा भविष्य की कोई भी तीसरी लहर दो साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी.

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अध्ययन में कहा गया है कि एकत्र किया गया डेटा विविध और काफी हद तक ठीक है. हम पहली बार, 2-17 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए सीरोप्रीवैलंस अनुमान प्रदान करते हैं. शहरी स्लम क्षेत्र, ग्रामीण क्षेत्र और कुछ जनजातीय आबादी दोनों के डेटा, सामान्यीकरण को और बढ़ाते हैं. प्रत्येक अध्ययन के भीतर बड़ी संख्या में समूहों (25) को शामिल करने से हमारे निष्कर्ष अधिक प्रतिनिधि बन जाते हैं.’

यह परिणाम अंतरिम डेटा पर आधारित था, जो एक बड़े राष्ट्रव्यापी बहु-केंद्रित जनसंख्या-आधारित सीरो-महामारी विज्ञान अध्ययन का हिस्सा है, जो भारत के पांच राज्यों में 10,000 लोगों पर आयोजित किया जाएगा.

डेटा संग्रह 15 मार्च और 10 जून 2021 के बीच किया गया था और इसमें 4,509 प्रतिभागी थे, जिनमें से 700 18 वर्ष और उससे कम के थे, और बाकी वयस्क थे.

परिणाम दिल्ली, गोरखपुर, अगरतला और भुवनेश्वर से हैं, जो शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों को कवर करते हैं.

अध्ययन में यह भी पाया गया कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में सीरोप्रीवैलंस कम था.  शहरी बच्चों में 73.9 प्रतिशत और शहरी वयस्कों में 74.8 प्रतिशत, ग्रामीण बच्चों में 52.9 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में वयस्कों में 60 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों और वयस्कों के बीच सीरोप्रीवैलंस का अंतर भी अधिक था.

अन्य निष्कर्ष

अध्ययन के परिणामों में फीमेल बच्चों में अधिक सेरोपोसिटिविटी पाई गई. हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एक सैंपलिंग के कारण हो सकता है. यह खोज मेटा-विश्लेषण के विपरीत थी जहां यह दिखाया गया था कि पुरुषों में व्यापकता अधिक है. रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्यावधि विश्लेषण के समय उपलब्ध आंकड़ों की कम संख्या के कारण यह एक मौका हो सकता है.

अध्ययन में यह भी पाया गया कि 10 से 17 वर्ष की आयु के बच्चों में 60.30 प्रतिशत सेरोपोसिटिविटी थी, लेकिन इनमें से 50.9 प्रतिशत पॉजिटिव मामले एसिम्प्टोमैटिक थे. 2-4 और 5-9 वर्ष के आयु समूहों के लिए, सेरोपोसिटिविटी क्रमशः 42.4 प्रतिशत और 43.8 प्रतिशत थी. अध्ययन में कहा गया है कि 10-17 आयु वर्ग में उच्च सेरोपोसिटिविटी हो सकती है क्योंकि इस आयु वर्ग के बच्चों की मोबिलिटी ज्यादा है.

अध्ययन ने पिछले सर्वेक्षण की तुलना में 10-17 आयु वर्ग के बीच काफी अधिक सेरोपोसिटिविटी की सूचना दी. अगस्त-सितंबर 2020 में किए गए दूसरे राष्ट्रव्यापी सीरो-प्रचलन अध्ययन ने 10-17 वर्ष की आयु के 3,021 बच्चों में 9.0% सेरोपॉज़िटिव की सूचना दी थी, जबकि हमारे अध्ययन में यह 60.30% है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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