गुजरात के गांवों से लेकर शहरों तक सरगर्मियां काफी बढ़ गई हैं, और यह नवरात्रि के कारण नहीं है. 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए पारा धीरे-धीरे चढ़ने के बीच राज्य में एक पूर्व पत्रकार, एक सामाजिक कार्यकर्ता और एक पूर्व कांग्रेस विधायक ने भारतीय जनता पार्टी को उसके अपने ही गढ़ में घेरने के लिए कमर कस ली है. ये तीनों ही आम आदमी पार्टी के नए चेहरे हैं जो यहां स्थानीय स्तर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ पोस्टर बॉय वाली इमेज साझा करते हैं.
आम आदमी पार्टी का गुजरात ऑफिस शुक्रवार शाम सामान्य तौर पर लगभग खाली मिला. वहां मौजूद चंद कार्यकर्ताओं का कहना था कि ‘सभी बड़े नेता चुनावी तैयारियों में जुटे हैं और गुजरात दौरे पर हैं.’
गुजरात में केजरीवाल वन मैन आर्मी नहीं है. पिछले कुछ हफ्तों में गुजरात आप के अध्यक्ष गोपाल इटालिया, इसुदान गढ़वी और इंद्रनील राजगुरु ने अपना चुनावी अभियान तेज कर दिया है. वे पूरे राज्य की यात्रा कर रहे हैं, और मतदाताओं से उन्हें और उनकी पार्टी को एक मौका देने को कह रहे हैं.
32 वर्षीय इटालिया पिछले सात सालों से एक एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर सक्रिय हैं और जमीनी स्थिति, खासकर ग्रामीण भारत के बारे, की खासी समझ रखते हैं. गढ़वी, एक पूर्व पत्रकार और वीटीवी गुजराती के संपादक हैं, जिन्होंने काफी लोकप्रिय कार्यक्रम महामंथन की एंकरिंग की थी, जिसके बड़ी संख्या प्रशंसक हैं. वहीं, कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे राजगुरु इसी साल अप्रैल में अपनी निष्ठा बदलकर आप का हिस्सा बन गए थे. लाखों लोगों के बीच उनका एक मजबूत जनाधार है. लेकिन तीनों के बीच केवल राजगुरु के पास ही राजनीतिक अनुभव है.
और नेक इरादे ही उन्हें मतदाताओं के साथ जुड़ने की राह पर आगे ले जा सकते हैं.
अहमदाबाद में भाजपा के एक कट्टर समर्थक का कहना था, ‘राजनीतिक स्टंट करके कोई भी फेमस हो सकता है. लोग केवल उन पर भरोसा करें जो काम करेंगे.’ कई अन्य लोगों की तरह उन्हें भी भी आप में ‘नए चेहरों’ को लेकर संशय है.
गढ़वी, इटालिया, राजगुरु, और ‘आप का नया चेहरा’ बने अन्य सभी लोग भाजपा को घेरने के लिए पूरी तरह तैयार हैं और आत्मविश्वास से भरे हुए हैं, और ये केजरीवाल के ही नक्शेकदम पर चल रहे हैं जो कभी खुद भी राजनीति में न्यूकमर थे.
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एक ‘स्पष्ट वक्ता’
गोपाल इटालिया सोशल मीडिया पर जितने लोकप्रिय है, विवादों से भी उनका उतना ही नाता रहा है. वह खुद को एक ‘स्पष्ट वक्ता’ मानते हैं. उनका कहना है, ‘मैं सच बात बोलता हूं. लोग यह बात समझते भी हैं कि मैं जो बोलता हूं, बहुत स्पष्टता के साथ और ईमानदारी से बोलता हूं.’
2019 में उनकी एक वीडियो क्लिप वायरल हुई जिसमें इटालिया को ‘पीवीसी पाइप से बनी पिस्तौल’ से फायर करते देखा गया, जो कि पटाखों पर पाबंदी के संदर्भ में थी. इससे पहले, उन्होंने ड्राई स्टेट में शराब के सेवन पर तत्कालीन डिप्टी सीएम नितिन पटेल के साथ बातचीत का एक ऑडियो क्लिप जारी किया था. उनके एक पुराने वीडियो को लेकर भी विवाद गहराया, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर हिंदू रीति-रिवाजों के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.
लेकिन जबसे उन्हें दिसंबर 2020 में गुजरात में पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, उन्होंने इस तरह के सभी ‘स्टंट’ छोड़ दिए—ऐसा ही एक स्टंट राज्य के तत्कालीन गृह मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा पर जूता फेंकने का भी था.
आप के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘पहले गोपाल भाई ने कई विवादित बयान दिए थे, लेकिन अब मैं उन्हें भगवद् गीता के श्लोक याद करते देख रहा हूं.’
अब, इटालिया अपने पार्टी प्रमुख के नक्शेकदम पर हैं. वे कहते हैं, ‘उन्होंने (केजरीवाल) भविष्य और नतीजों के बारे में सोचे बिना ही अपना काम जारी रखा था.’
कॉन्स्टेबल और क्लर्क से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता तक, इटालिया ने कई पेशों में पैर जमाने की कोशिश की. लेकिन आप के साथ जुड़ना उन्हें सबसे उपयुक्त लगा. वह बमुश्किल दो साल पहले पार्टी के साथ जुड़े थे. इटालिया कहते हैं, ‘मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि जीवन में इतने आगे पहुंचूंगा. और अगर एक छोटे से गांव से निकलकर मैं यहां तक आ सकता हूं तो मुझ जैसे अन्य लोगों को भी अवसर मिलना चाहिए.’ उन्होंने भावनगर जिले के एक छोटे से गांव टिम्बी में स्कूली शिक्षा हासिल की थी और माध्यमिक स्तर की पढ़ाई दूसरे गांव में पूरी की. उसके बाद अहमदाबाद चले गए जहां उन्होंने गुजरात यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई की.
आप की योजना गुजरात में हर दरवाजे पर दस्तक देने और उम्मीद और बदलाव की कोशिशों का अपना संदेश पहुंचाने की है. पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है, ‘हम सभी को यह बताना चाहते हैं कि हमने दिल्ली और पंजाब में क्या किया है.’
इटालिया के मुताबिक, उनका संदेश तेजी से घर-घर फैल रहा है. उनके मुताबिक, ‘गुजरात जैसे राज्य में किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि कोई भाजपा के खिलाफ लड़ेगा. लेकिन अब लोग हम पर भरोसा जता रहे हैं.’
बतौर नेता ‘साफ-सुथरी छवि’ बनाई
पत्रकार से नेता बने 40 वर्षीय इसुदान गढ़वी की रणनीति है—दिसंबर में प्रस्तावित चुनाव से पहले ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना.
आप में शामिल होने के 14 महीनों के भीतर उन्होंने 90,000 किलोमीटर की यात्रा की है. यात्रा के दौरान अपनी टोयोटा इनोवा को ही अपना घर बना लेने वाले गढ़वी कहते हैं, ‘मैंने गुजरात के हर जिले का दो बार दौरा किया है.’ उनका यह अभियान काफी व्यस्तता भरा रहता है और 10 से 12 घंटे तक लगातार चलता है.
गढ़वी एक पत्रकार और ‘साफ-सुथरी छवि वाले नेता’ के तौर पर अपनी लोकप्रियता को भुना भी रहे हैं. अपने टीवी प्रोग्राम महामंथन में उन्होंने किसानों के मुद्दे उठाने से लेकर परीक्षा के पेपर लीक होने तक कई विषयों को कवर किया है.
जब वह जमीनी स्तर पर रिपोर्टिंग के लिए गांवों का दौरा करते, तो 5,000 से ज्यादा लोग उन्हें अपनी समस्याएं बताने के लिए इकट्ठा हो जाते थे. वे कहते हैं, ‘लोग मेरा शो वैसे ही देखते थे जैसे रामायण और महाभारत देखते थे. लेकिन मैं हर किसी की समस्या का समाधान नहीं कर पा रहा था. इसलिए मैंने नौकरी छोड़ने और उनके लिए कुछ करने का फैसला किया.’ 1 जून 2021 को उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि वह पत्रकारिता छोड़ रहे हैं. और अगले ही महीने वह आप में शामिल हो गए.
गढ़वी कहते हैं, ‘कई राजनीतिक दल मुझे (अपने साथ जुड़ने का) मौका दे रहे थे, लेकिन मैंने अरविंद केजरीवालजी को चुना क्योंकि वह मुद्दों पर बात करते हैं.’
उनका दावा है कि उनके शामिल होने के बाद से पांच लाख से अधिक लोगों ने पार्टी को अपना समर्थन दिया है.
इटालिया की तरह गढ़वी भी राजकोट जिले के पिपलिया गांव में पले-बढ़े हैं. उनके राजनीति में आने से उनका परिवार खुश नहीं था. उन्होंने कहा, ‘जबसे मैं आप में शामिल हुआ हूं, मुझे जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं, मेरा परिवार परेशान था, लेकिन मैंने धीरे-धीरे उन्हें मना लिया. मैंने उनसे कहा है कि मैं अभी 40 साल का हूं, मैं इस जीवन को बर्बाद नहीं करना चाहता, इसलिए मैं लोगों की सेवा करूंगा और इसी रास्ते पर आगे बढ़ूंगा.’
एक शानदार वक्ता गढ़वी के अभियान के दौरान लाखों लोगों जुटते हैं. वे कहते भी हैं, ‘मेरा भाषण सुनने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. अगर आप मुझे 50,000 लोगों की भीड़ के साथ 35 मिनट का समय दें, तो मैं अपने भाषण से उन्हें बांधे रह सकता हूं.
और उनके समर्थक भी उन पर भरोसा करते हैं. अहमदाबाद के राजनीतिक विश्लेषक दिलीप गोहल कहते हैं, ‘इसुदान गढ़वी एक लोकप्रिय पत्रकार रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में लोग उन्हें बेहद पसंद करते हैं.’
गढ़वी बच्चों को मुफ्त शिक्षा, किसानों को फसल की सही कीमत और सभी के लिए मुफ्त दवाएं चाहते हैं. यही बातें उन्हें अपना अभियान आगे बढ़ाने में काफी मदद कर रही हैं. उन्होंने कहा, ‘मैंने कई नीतियां बनाई हैं. अगर हम जीते तो केजरीवाल उन्हें लागू करवा देंगे.’
हालांकि, भाजपा इस सबसे कोई फर्क न पड़ने का दावा कर रही है. गुजरात भाजपा के प्रमुख प्रवक्ता यम व्यास कहते हैं, ‘कई दल आते हैं और चले जाते हैं. राजद, लोजपा, बसपा भी पहले आ चुकी हैं. हम उनका स्वागत करते हैं, लेकिन हम आप को एक प्रतिस्पर्द्धी कतई नहीं मानते हैं. कांग्रेस उनसे ज्यादा मजबूत है.’
…और इनके लिए तो राजनीति ही सब-कुछ है
इन नेताओं की तिकड़ी में 56 वर्षीय इंद्रनील राजगुरु ही ऐसे हैं जिनके पास एक लंबा राजनीतिक अनुभव है. राजनीति ही उनके लिए सब-कुछ है और वह सिर्फ भाजपा को हारते देखना चाहते हैं. राजगुरु एक प्रमुख कांग्रेस नेता और 2012 से 2017 तक राजकोट पूर्व के विधायक रहे हैं.
और उनके पाला बदलने की कुछ खास वजहें भी रही हैं. राज्य में सांप्रदायिक विभाजन रोकने में कांग्रेस के अक्षम रहने के कारण उनका पार्टी से मोहभंग हो गया. राजगुरु—जिनके पिता भी कांग्रेस में रहे थे—का कहना है, ‘गुजरात कांग्रेस में लोगों के सांप्रदायिक एकीकरण को लेकर किसी तरह के उत्साह का अभाव है. आप मुद्दों पर बात करती है, इसलिए मैं इसमें शामिल हो गया.’
राजगुरु जोर देकर कहते हैं कि अभी चुनाव लड़ने में उनकी ‘कोई खास दिलचस्पी’ नहीं है. वह कहते हैं, ‘मैंने चुनाव लड़ने का मन नहीं बनाया है, लेकिन मैं पार्टी की मदद की हरसंभव कोशिश करना चाहता हूं. भाजपा को हराना बहुत जरूरी है.’
लेकिन मतदाताओं के साथ उनका रिश्ता ही उनकी असली जमापूंजी है. अन्य युवा नेताओं की तरह, वह ‘सच्चाई’ पर जोर देते हैं. राजगुरु ने कहा, ‘मैंने लोगों से झूठ नहीं बोलता. लोग यही देखते हैं और इसलिए मुझे पसंद करते हैं.’
राजगुरु खुद को एक ऐसे नेता के तौर पर पेश करते हैं जिसे ‘जमीनी स्तर पर काम करना पसंद है. और केजरीवाल के विपरीत, वह गुजरात की राजनीति में बाहरी व्यक्ति नहीं हैं.
आप के ये नेता गुजराती मतदाताओं को यह समझाने का आधार मुहैया करा रहे हैं कि पार्टी में दिल्ली के मुख्यमंत्री से आगे भी कुछ है.
दिलीप गोहिल कहते हैं, ‘भाजपा यह दिखाने की कोशिश तो कर रही है कि आप उसकी प्रतिद्वंद्वी पार्टी नहीं है लेकिन लगता है कि उन्हें स्थिति समझ आ रही है. इसमें कोई दो-राय नहीं कि केजरीवाल के अलावा भी ऐसे नेता हैं जो भीड़ जुटाने में सक्षम हैं. राजनीति में आने से पहले ही वे मशहूर हो चुके थे. हम कह सकते हैं कि केजरीवाल के अलावा, ये तीनों भी आप के पोस्टर बॉय हैं.’
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