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Friday, 19 April, 2024
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3.9 फीसदी विवाहित महिलाओं ने कहा- पतियों के हाथों झेली यौन हिंसा, कर्नाटक टॉप पर

भारतीय क़ानून मैरिटल रेप को अपराध नहीं मानता. दिल्ली HC में कुछ याचिकाओं की सुनवाई चल रही है, जिनमें यौन उत्पीड़न कानूनों के तहत मैरिटल रेप के अपवाद को चुनौती दी गई है.

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नई दिल्ली: 2019-21 में कराए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर 25 में से एक महिला ने बताया कि वो अक्सर या कभी-कभी पति के हाथों यौन हिंसा का शिकार हुई है. इसके अलावा, कुछ सूबों में ये मुद्दा अन्य राज्यों से ज़्यादा चलन में है, और कर्नाटक, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा असम इस सूची में सबसे ऊपर हैं.

सर्वे में 18 से 49 वर्ष के बीच आयु की कभी भी विवाहित रही (जो फिलहाल या पहले विवाहित थीं) महिलाओं से पूछा गया था कि उन्हें अपने पति की ओर से किस तरह की हिंसा का सामना करना पड़ा था.

26 राज्यों (तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और जम्मू-कश्मीर के अलावा दूसरे केंद्र-शासित क्षेत्रों के आंकड़े एनएफएचएस-5 पोर्टल पर उपलब्ध नहीं थे) के आंकड़ों के आधार पर क़रीब 4 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि वो अक्सर या कभी-कभी अपने पति के हाथों यौन हिंसा का शिकार हुई हैं.

लेकिन ये प्रतिशत कर्नाटक (9.7 प्रतिशत), बिहार (7.1 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल (6.8 प्रतिशत), और असम (6.1 प्रतिशत) में कहीं ज़्यादा है.

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एनएफएचएस-4 के डेटा के मुक़ाबले, जो 2015-16 में कराया गया था, अपने विवाह में यौन हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं का प्रतिशत, कर्नाटक में 6.3 से बढ़कर 9.7 प्रतिशत हो गया. उसकी अपेक्षा बिहार में ये प्रतिशत 12.2 से घटकर 7.1 प्रतिशत पर आ गया.

भारतीय क़ानून में मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता, हालांकि इस विषय पर अक्सर क़ानूनी और सामाजिक बहस होती रही है. दिल्ली हाईकोर्ट में फिलहाल कुछ याचिकाओं की सुनवाई चल रही है, जिनमें यौन उत्पीड़न कानूनों के तहत मैरिटल रेप के अपवाद को चुनौती दी गई है. व्यापक रूप से रिपोर्ट की जा रही इन सुनवाइयों के बीच, सोशल मीडिया में भी इस विषय पर बहस चल रही है. हैशटैग #MarriageStrike ख़ूब ट्रेण्ड कर रहा है, जिसे वो लोग बढ़ावा दे रहे हैं जिनका मानना है, कि महिलाओं को विवाह में ज़्यादा क़ानूनी अधिकार नहीं दिए जाने चाहिए.

इस संदर्भ में, एनएफएचएस-5 सर्वे इस बात को उजागर करता है, कि महिलाओं की अच्छी ख़ासी संख्या को विवाह में यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है, लेकिन उन्हें कोई विशेष क़ानूनी सहारा नहीं दिया गया है.


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कर्नाटक का मामला

कर्नाटक में 9.7 प्रतिशत महिलाओं- हर 10 में लगभग एक- ने बताया कि उन्होंने अपने पति के हाथों यौन हिंसा का सामना किया है. इनमें से 2.7 प्रतिशत ने कहा कि ऐसा ‘अक्सर’ होता था, और 7 प्रतिशत ने कहा कि ऐसा ‘कभी-कभी’ हुआ.

जिन उत्तरदाताओं ने कहा कि वो यौन हिंसा का शिकार हुई हैं, उनमें से 7.9 प्रतिशत ने बताया कि न कहने के बाद भी, उन्हें अपने पति के साथ यौन संभोग के लिए मजबूर किया गया. क़रीब 6 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें धमकियों और अन्य तरह के दबावों के ज़रिए, ऐसी ख़ास यौन क्रियाएं करने के लिए मजबूर किया गया, जो वो नहीं करना चाहतीं थीं. और 3 प्रतिशत ने कहा कि उनके पतियों ने शारीरिक हिंसा के ज़रिए, उनसे ऐसी यौन क्रियाएं कराईं जो वो नहीं करना चाहतीं थीं.

2015-16 में कराए गए पिछले चरण के सर्वे से तुलना करें, तो कर्नाटक में वैवाहिक जीवन में यौन हिंसा की शिकार महिलाओं की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई. उस अवधि में 6.3 प्रतिशत महिलाओं ने कहा था, कि उन्होंने अक्सर या कभी कभी अपने पति के हाथों यौन हिंसा का सामना किया था.

3.4 प्रतिशत की ये वृद्धि चिंताजनक लगती है, लेकिन हिंसा में इज़ाफे की बजाय आंशिक रूप से इसकी वजह, कर्नाटक में ऐसी घटनाओं को बताने की अपेक्षाकृत ऊंची दर को माना जा सकता है.

भारत के सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता गीता लूथरा ने कहा, ‘शिक्षा, सशक्तीकरण, और महिला हितैषी वातावरण से, महिलाओं के अंदर किसी भी तरह की हिंसा के खिलाफ बोलने, और उसका प्रतिकार करने की क्षमता बढ़ जाती है. ये एक कारण हो सकता है कि कर्नाटक में महिलाएं, उनके साथ यौन उत्पीड़न और हिंसा से जुड़ी ज़्यादतियों को लेकर ज़्यादा मुखर हैं.’

लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्त्ता बृंदा अदीगा, जो बेंगलुरू स्थित एनजीओ ग्लोबल कंसर्न्स इंडिया के साथ काम करती हैं, ने कहा कि शिक्षा और पेशेवर रोज़गार पितृसत्तात्मक अपेक्षाओं तथा मानसिकताओं से बचने की कोई गारंटी नहीं हैं.

अदीगा ने कहा, ‘लगभग 80 से 85 प्रतिशत मामलों (मैरिटल रेप) में जो हम संभालते हैं, पीड़िताओं का कहना है कि उनके पति-पार्टनर्स उनपर तंज़ करते हैं, और उनसे पूछते हैं कि क्या वो जबरन सेक्स के बारे में शिकायत करेंगी. समस्या दरअसल समाज में है, धारावाहिक दिखाते रहते हैं कि कैसे पति की आज्ञा मानना, और परिवार को एकजुट रखना, महिला की ज़िम्मेदारी है. यही संकीर्ण सोच घरों में यौन हिंसा झेल रही महिलाओं को ख़ामोश कर देती है’.

उनके अनुसार, पुरुषों की अपेक्षाकृत ऊंची शैक्षणिक योग्यताएं और पेशेवर सफलता, ऐसे समाज में उनकी हक़दारी की भावना को बढ़ा सकती हैं, जिसने ज़्यादा प्रगति नहीं की है. अदीगा ने कहा, ‘ऊंची शैक्षणिक योग्यताओं और पेशेवर सफलता के साथ, पुरुषों को लगता है कि वो बहुत हक़दार हो गए हैं. उन्हें लगता है कि भले ही उनकी पत्नी/पार्टनर सेक्स के लिए ना कहे, वो उसकी मर्ज़ी को ख़ारिज कर सकते हैं. पुरुष समझते हैं कि अपनी ताक़त दिखाने का यही एक तरीक़ा है. उन्हें लगता है कि यही एक रास्ता है, जिससे वो अपनी पढ़ी लिखी और योग्य पत्नियों को छोटा महसूस करा सकते हैं’.


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दूसरे राज्यों में प्रवृत्तियां

कर्नाटक के अलावा गोवा और महाराष्ट्र में भी, ऐसी महिलाओं के प्रतिशत में काफी इज़ाफा नज़र आता है, जिन्होंने अपने वैवाहिक जीवन में यौन हिंसा झेलने की बात कही है.

गोवा, जहां 2015-16 में केवल 0.1 प्रतिशत महिलाओं ने वैवाहिक जीवन में यौन हिंसा बताई थी, अब वहां 4 प्रतिशत उत्तरदाता कह रही हैं, कि वो अपने पति के हाथों यौन हिंसा का शिकार हुईं. इसी तरह महाराष्ट्र में भी, विवाह में यौन हिंसा स्वीकारने वाली महिलाओं का प्रतिशत, 2015-16 में 1.7 से बढ़कर 2019-20 में 4.8 पहुंच गया.

बिहार के आंकड़ों में, जहां विवाह में यौन हिंसा झेलने वाली महिलाओं का प्रतिशत दूसरा सबसे अधिक 7.1 था, इस बार गिरावट देखी गई है. 2015-16 में, 12.2 प्रतिशत महिलाओं ने कहा था, कि उन्होंने अपने वैवाहिक जीवन में अकसर या कभी कभी, यौन हिंसा का अनुभव किया था.

एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस-5 के आंकड़ों से, मणिपुर (9.7 से घटकर 3.6 प्रतिशत), त्रिपुरा (8.6 प्रतिशत से घटकर 2.6)और हरियाणा (8 से घटकर 2.7 प्रतिशत) में भी गिरावट का पता चलता है.

क़ानूनी सहारा

भारतीय क़ानून में बलात्कार और सहमति को विस्तार से परिभाषित किया गया है, लेकिन शादीशुदा जोड़ों के मामले में उसमें एक अपवाद दिया गया है, जब तक कि महिला की आयु 18 वर्ष से कम न हो. इसलिए मैरिटल यौन हिंसा का सामना कर रहीं महिला को, क़ानून के दूसरे प्रावधानों का सहारा लेना पड़ता है.

लूथरा के अनुसार, पत्नियां घरेलू हिंसा एक्ट 2005, के अंतर्गत ‘इंसाफ की मांग’ कर सकती हैं, जिसमें यौन हिंसा भी शामिल है. लेकिन, यौन हिंसा के लिए दिया गया सज़ा का प्रावधान, रेप क़ानून की अपेक्षा काफी कम है.

लूथरा ने कहा, ‘घरेलू हिंसा एक्ट के प्रावधान अधिकतर दीवानी क़ानून में आते हैं, जिसका मतलब है कि क़ानून तोड़ने वाले (पति) पर ज़्यादा से ज़्यादा मुआवज़ा देने का दायित्व होगा, या महिला को सुरक्षा प्रदान की जा सकती है. अपराधी को जेल नहीं भेजा जाएगा, जो बलात्कार समेत सभी अपराधिक क़ानूनों में होता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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