scorecardresearch
Sunday, 26 May, 2024
होमदेश‘सरकारी संपदा वाले खनिजों का दोहन’- उत्तराखंड HC ने 2जी स्पेक्ट्रम केस का हवाला देकर राज्य का नियम रद्द किया

‘सरकारी संपदा वाले खनिजों का दोहन’- उत्तराखंड HC ने 2जी स्पेक्ट्रम केस का हवाला देकर राज्य का नियम रद्द किया

चीफ जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य के खनन नियमों में उस संशोधन को रद्द कर दिया, जिसके तहत भूमि मालिकों को निर्माण कार्यों के दौरान अपनी संपत्ति की खुदाई में निकले संसाधनों के उपयोग की अनुमति दी गई थी.

Text Size:

नई दिल्ली: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के उस खनन नियम को रद्द कर दिया है, जिसके तहत उसने प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के बजाये सिफारिश के आधार पर भूमिधरों (जमींदारों) को खनन पट्टे आवंटित करने की अनुमति दी थी.

चीफ जस्टिस विपिन सांघी की अगुवाई वाली पीठ ने पाया कि यह नियम 2012 में 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करता है.

शीर्ष कोर्ट ने 2012 के अपने फैसले में पहले आओ पहले पाओ के आधार पर 2जी लाइसेंस आवंटित करने की सरकार की नीति को अवैध करार दिया था. इस नियम को ‘असंवैधानिक और मनमाना’ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में तत्कालीन संचार और आईटी मंत्री ए. राजा के समय में जारी किए गए सभी 122 लाइसेंस रद्द कर दिए थे.

पीठ, जिसमें जस्टिस रमेश चंद्र खुल्बे भी शामिल हैं, ने कहा, ‘हमें यह देखकर बहुत दुख होता है कि राज्य किस तरह अपनी अमूल्य संपदा का इस तरह कौड़ियों के भाव में दोहन होने दे रहा है.’

संशोधित नियम में ‘मामूली’ रॉयल्टी का ही प्रावधान

26 सितंबर 2022 के आदेश में 28 अक्टूबर 2021 को जारी राज्य की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया गया, जिसमें उत्तराखंड लघु खनिज (रियायत) नियम, 2001 के नियम-3 में संशोधन किया गया था.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

संशोधित नियम के तहत किसी भूमिधर को अपनी संपत्ति पर निर्माण के उद्देश्य के लिए उस संपत्ति की खुदाई में निकली मिट्टी, रेत, चट्टान, बोल्डर, बजरी आदि के उपयोग की अनुमति दी गई थी.

इसमें कहा गया था कि इस तरह के दोहन के लिए उसे पर्यावरण मंजूरी लेने की कोई आवश्यकता नहीं है और भूमिधर इस काम के लिए जेसीबी मशीन का उपयोग भी कर सकता था.

यद्यपि संशोधित नियम में उत्खनन में निकले खनिजों पर मामूली रॉयल्टी के भुगतान का प्रावधान था, लेकिन ऐसी परिस्थिति में मिलने वाली राशि किसी ठेकेदार की तरफ से भुगतान की जाने वाली रॉयल्टी राशि की तुलना में बहुत कम थी, जिसे बोली प्रक्रिया पूरा करने के बाद खनन पट्टा आवंटित किया गया होता.

उत्तराखंड में खनिजों के खनन पट्टों के संचालन से जुड़े व्यवसाय में लगे एक व्यक्ति ने इन संशोधनों को ‘असंवैधानिक’ बताते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इसके बाद, इस साल जनवरी में अदालत ने इस संशोधित नियम पर रोक लगा दी थी.

उनके वकील ने कोर्ट में दलील दी कि संशोधित नियम के जरिये किसी पारदर्शी और सार्वजनिक प्रक्रिया के बिना खनन व्यापार में भूमिधरों को पिछले दरवाजे से प्रवेश की अनुमति दी गई. वकील ने कोर्ट को यह भी बताया कि नई श्रेणी के तहत रॉयल्टी देनदारी मात्र 70-85 रुपये प्रति मीट्रिक टन है जबकि याचिकाकर्ता और उसकी तरह की खनन व्यवसाय से जुड़े अन्य ऑपरेटर्स के लिए यह दर 460 रुपये प्रति मीट्रिक टन है.

उन्होंने 2जी स्पेक्ट्रम केस में फैसले का हवाला देते हुए यह भी कहा कि राज्य में खनन पट्टों के आवंटन में भी उसी तरह की प्रक्रिया अपनाई जा रही जैसी 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन के मामले में चल रही थी.


यह भी पढ़ें: ‘दिल्ली की हिंदुत्व सरकार में सिखों को भरोसा नहीं’- पंजाब में नेताओं ने केंद्र के खिलाफ संभाला मोर्चा


‘खनन में निकले खनिज राज्य की संपदा’

इस मामले में अपने बचाव में राज्य की तरफ से कहा गया कि नए नियम का उद्देश्य बारिश के मौसम में प्रभावित होने वाली कृषि भूमि को क्लियर करने की सुविधा देना है.

राज्य के मुताबिक, चूंकि उत्तराखंड में अधिकांश निजी भूमि नदियों और अन्य जल निकायों से सटे क्षेत्रों में स्थित हैं, बारिश के बाद इन जगहों पर कचरा जमा हो जाता है. लेकिन, सख्त खनन नियम भूमिधरों को घरों के निर्माण और कृषि कार्यों के लिए अपनी जमीन की सफाई कराने से रोकते हैं.

बहरहाल, राज्य की दलीलों को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कहा, ‘लघु खनिज राज्य की संपत्ति हैं. केवल इसलिए कि बाढ़ के दौरान वे निजी जमीनों पर जमा हो जाते हैं, ये भूमिधरों की निजी संपत्ति नहीं बन जाते हैं.’

कोर्ट ने आगे कहा कि वह संशोधन के पीछे राज्य के इरादे से तो सहमत है. लेकिन इस पर अमल के लिए जो तरीका अपनाया जा रहा है, उसे अनुमति नहीं दी जा सकती है. पीठ ने कहा कि खेती के लिए जमीन उपलब्ध कराने के लिए कचरे को हटाने की अनुमति देने की आड़ में राज्य ने वास्तव में व्यापक स्तर पर खनन पट्टे दिए हैं.

अदालत ने निजी भूमि में खनन और लघु खनिजों के वाणिज्यिक दोहन के लिए रॉयल्टी दरें कम होने को भी दोषपूर्ण करार दिया और कहा कि ये शुल्क मौजूदा बाजार दर की तुलना में बहुत मामूली है.

कोर्ट ने यह भी सुझाया कि उपजाऊ कृषि भूमि से लघु खनिजों को हटाने को प्रोत्साहित करने के इरादे से राज्य की तरफ से भूमिधरों को ‘10 प्रतिशत तक’ जैसी कुछ रियायत का प्रावधान किया जा सकता था.

कोर्ट ने कहा, ‘हालांकि, प्रतिवादी इतने उदार नहीं नहीं हो सकते कि मौजूदा बाजार दरों की तुलना में मामूली खनिजों में अपने अधिकारों को छोड़ दें, और वह भी उस याचिकाकर्ता को देखते हुए, जिसने मूल्यवान खनिजों के खनन का अधिकार हासिल कर रखा है.’

इस मामले में यह भी पाया गया कि संशोधित नियम में महानिदेशक, भूविज्ञान और खनन इकाई की सिफारिश पर भूमिधरों को दिए जाने वाले लाइसेंस की संख्या में कोई ऊपरी सीमा तय नहीं की गई थी.

अदालत ने कहा, ‘इस संबंध में किसी तरह के नियम-कायदे और प्रतिबंध के बिना सर्वाधिकार महानिदेशक, भूविज्ञान और खनन इकाई में निहित हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘हमने इसे अपना जीवन दिया है’: मुंबई के ‘बंद’ प्रिंस अली खान अस्पताल से कर्मचारी क्यों नहीं जाना चाहते


share & View comments