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Saturday, 21 December, 2024
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मुश्किल भरे 2020 के बाद कैसे नए साल में भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट सकती है

वित्त वर्ष 2021 में भारत की जीडीपी में सिकुड़न जारी रहने के ही अनुमान हैं लेकिन प्रतिबंधों में छूट, सप्लाई चेन की रुकावटों को दूर करने के उपायों से मांग में वृद्धि के साथ अर्थव्यवस्था में उछाल आने की उम्मीद की जा रही है. 

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विश्व अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के असर से बाहर निकलने लगी है तो उम्मीद की जा रही है कि नया साल खुशियां लौटाएगा. अनुमान है कि वर्ष 2020-21 में भारत की जीडीपी में कोविड-19 की मार के कारण गिरावट जारी रहेगी लेकिन इसकी गति उतनी तेज नहीं रहेगी जितने का अनुमान पहले लगाया गया था. इसका वजह यह है कि पिछली तिमाही में अर्थव्यवस्था में सुधार उम्मीद से बेहतर रही.

जुलाई से सितंबर की तिमाही में जीडीपी में गिरावट की दर घटकर 7.5 प्रतिशत हो गई जबकि अप्रैल-जून वाली तिमाही में यह करीब 24 प्रतिशत थी.

अर्थव्यवस्था में गिरावट के मामले में साल 2020 अभूतपूर्व रहा. लेकिन उम्मीद है कि अगले साल इसमें तेज सुधार होगा. कोविड के कारण लगाए गए प्रतिबंधों में ढील दिए जाने, सप्लाई में बाधाओं को दूर करने के उपायों के साथ मांग में वृद्धि से अर्थव्यवस्था में उछाल आने की अपेक्षा की जा रही है.

मैनुफैक्चरिंग सेक्टर ने जून वाली तिमाही में लचर प्रदर्शन करने के बाद जुलाई-सितंबर वाली तिमाही में वृद्धि दर्ज की है. ताजा आंकड़े औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि के संकेत दे रहे हैं. कृषि ने कुछ तो अच्छे मॉनसून के कारण और कुछ नीतिगत उपायों के कारण दोनों तिमाहियों में वृद्धि दर्ज की है. जहां तक यात्रा, पर्यटन और सत्कार जैसे सेवा क्षेत्र की बात है, इनमें मांग में गिरावट जारी रहने के कारण सुधार में असुंतलन बने रहने की ही संभावना है.

लेकिन कृषि क्षेत्र में जोरदार वृद्धि, उपभोक्ता सामान के उत्पादन के साथ औद्योगिक उत्पादन में सुधार अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत हैं. अनुमान है कि वर्ष 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था एशिया में सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था साबित होगी.


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भारत में आर्थिक गिरावट का इतिहास

भारत जीडीपी के तिमाही अनुमान 1998 से जारी करने लगा है, इसके बाद से पहली बार अर्थव्यवस्था ‘टेक्निकल’ मंदी में फंसी है जबकि दो तिमाहियों में जीडीपी में ऋणात्मक वृद्धि दर्ज की गई. उदारीकरण से पहले, 1950-51 के बाद तीन ऐसे दौर आए— 1957-58, 1965-66, 1979-80 में— जब जीडीपी की वार्षिक दर में गिरावट आई थी. इनमें से हरेक वित्त वर्ष में वृद्धि दर में 4 से ज्यादा प्रतिशत अंकों की गिरावट आई थी. यह वो दौर था जब अर्थव्यवस्था अनिश्चित मानसून और कच्चे तेल के मामले में मिलने वाले झटकों से हिचकोले खाया करती थी. इन वर्षों में जीडीपी में गिरावट कृषि क्षेत्र में तेज गिरावट की वजह से ही आई थी.

1957-58 में कृषि आधारित जीडीपी में 4 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई थी. 1965-66 में सूखे की वजह से कृषि आधारित जीडीपी में 11 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई थी. वित्त वर्ष 1979-80 में कृषि आधारित जीडीपी में 12 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई थी.

लेकिन गिरावट के ये दौर छोटे-छोटे रहे और इनके बाद के वर्षों में मजबूत सुधार दर्ज किए गए थे. उदाहरण के लिए, 1980-81 में जीडीपी –5.20 प्रतिशत से उछाल मार कर 7.17 प्रतिशत पर पहुंच गया था. यह भी देखा गया कि गिरावट वाले वर्षों के अगले वर्ष में मजबूत सुधार दर्ज किए गए.


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अलग तरह की मंदी

अमेरिका में नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च की बिजनेस साइकल डेटिंग कमिटी का कहना है कि आर्थिक मंदी फरवरी 2020 के बाद ही शुरू हो गई थी. बेरोजगारी में अभूतपूर्व वृद्धि और उत्पादन में जबरदस्त गिरावट के कारण ही इस दौर को मंदी का दौर कहा गया. लेकिन कमिटी का कहना था कि मंदी का यह दौर सामान्य से कम लंबा होगा और चंद महीने ही रहेगा.

कोरोना महामारी के कारण आई आर्थिक मंदी पिछली मंदियों से अलग किस्म की होगी. मंदी का यह दौर इसलिए गंभीर माना जा रहा है क्योंकि बेरोजगारी में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है लेकिन यह दौर छोटा ही रहेगा. शुरुआती जो संकेत मिल रहे हैं, मसलन खुदरा बिक्री और उत्पादन में वृद्धि, वे यही बता रहे हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था सुधार की राह पर है.


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आर्थिक गतिविधियों में जान आई

भारत समेत दूसरे देशों में जीडीपी में गिरावट मुख्यतः इसलिए आई क्योंकि वायरस के विस्तार को रोकने के लिए आर्थिक गतिविधियों पर जबरन रोक लगाई गई. अब सोशल डिस्टेन्सिंग की शर्तों में ढील के साथ आर्थिक गतिविधियों में जान लौटी है.

लॉकडाउन ने लोगों को खर्चों पर रोक लगाने को मजबूर किया था. भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि पारिवारिक वित्तीय बचत जनवरी-मार्च वाली तिमाही में जीडीपी के 10 प्रतिशत के आंकड़े से जून वाली तिमाही में 21.4 प्रतिशत के आंकड़े पर पहुंच गई थी. परिवारों ने भविष्य में आमदनी की अनिश्चितता के मद्देनज़र सावधानी बरतते हुए अपनी बचत बढ़ाई होगी, मगर अब कोविड का ज़ोर घटने के कारण वे फिर से खर्च करना शुरू करेंगे और अगले तिमाहियों में आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि हो सकेगी.

रिजर्व बैंक ने महामारी शुरू होने के बाद से रेपो रेट में 115 बेसिस पॉइंट की कटौती कर डाली है. ब्याज दरों में कटौती और लीक से हट कर अपनाई गई मौद्रिक नीति के कारण बैंकों की उधारी दर में गिरावट से क्रेडिट ग्रोथ को बढ़ावा मिलेगा. विश्व अर्थव्यवस्था में सुधार से निर्यात को बढ़ावा मिलेगा.

अंत में, कोविड के वैक्सीन की आपात मंजूरी से उन सेक्टरों में भी जान लौटेगी, जो अब तक लस्त-पस्त पड़े थे. वैक्सीन को लेकर अनिश्चितता दूर होने से परिवार सत्कार तथा पर्यटन जैसे सेक्टरों पर खर्च करने के लिए अपनी बचत में हाथ डाल सकते हैं. ये सब 2021 में आर्थिक वृद्धि को मजबूत बनाने में योगदान ही देंगे.

(इला पटनायक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं और राधिका पांडेय एनआईपीएफपी में कंसल्टेंट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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