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Saturday, 2 November, 2024
होमइलानॉमिक्सरिजर्व बैंक का दोधारी फैसला— दरें न बढ़ाने से सरकार को उधार लेना आसान हुआ मगर महंगाई का खतरा बढ़ा

रिजर्व बैंक का दोधारी फैसला— दरें न बढ़ाने से सरकार को उधार लेना आसान हुआ मगर महंगाई का खतरा बढ़ा

कर्ज प्रबंधन एजेंसी का अभाव सरकारी कर्ज और मुद्रास्फीति को संभालने में एक आंतरिक द्वंद्व पैदा करता है. सरकार ने मुद्रास्फीति को चुना लेकिन दरें बढ़ाने से विदेशी फंड आ सकते थे

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कई जानकारों को आश्चर्य में डालते हुए भारतीय रिजर्व बैंक की मुद्रा नीति कमिटी (एमपीसी) ने बृहस्पतिवार को फैसला किया कि रेपो रेट में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा और वह अभी 4 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट 3.5 फीसदी ही रहेगी. एमपीसी ने आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए जब तक जरूरी होगा तब तक रियायती रुख बनाए रखा जाएगा. लगता है, इस नीति का मकसद सरकारी उधार की लागत को नीचा रखना है, वह भी ऐसे समय में जब तमाम देशों के केंद्रीय बैंक अपनी अति रियायती मुद्रा नीति को सामान्य बनाने और मुद्रास्फीति के दबाव में वृद्धि के बीच ब्याज दरों में वृद्धि करने की राह पर हैं.

मुद्रा नीति को सामान्य बनाने की हड़बड़ी

दुनिया भर में केंद्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति में वृद्धि के बीच मुद्रा नीति को सामान्य बनाने की शुरुआत उम्मीद से पहले कर दी है. अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने 25-26 जनवरी को हुई अपनी बैठक में संकेत दिया कि वह मार्च के महीने से ही ब्याज दरों में वृद्धि की शुरुआत कर सकता है. फेड के अध्यक्ष ने संकेत दिया कि परिसंपत्तियों की खरीद भी मार्च से रोकी जा सकती है. कमिटी का बयान अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर करीब 40 वर्षों के अपने सबसे ऊंचे स्तर पहुंच जाने के जवाब में आया है.

इस बीच बैंक ऑफ इंग्लैंड ने तीन महीने के भीतर लगातार दूसरी बार ब्याज दरों में वृद्धि की. यह वृद्धि 0.5 प्रतिशत की की गई है. यह कदम ब्रिटेन में मुद्रास्फीति की दर दिसंबर में 5.4 प्रतिशत पर पहुंच जाने के जवाब में उठाया गया. अप्रैल में यह 7.25 प्रतिशत के आंकड़े को छू सकती है.


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भारतीय हालात

महामारी के दौरान अर्थव्यवस्थाओं को सहारा देने के लिए जो वित्तीय विस्तार दिया गया वह विकसित देशों में कहीं अधिक मुखर था और इसके कारण मांग में मजबूती आई. इसके साथ सप्लाइ में अड़चनों के कारण मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई. लेकिन भारत में महामारी से मुक़ाबले में नीतिगत पहल के तहत जो वित्तीय उपाय किए गए वे तुलनात्मक रूप से हल्के थे. सहारा मुख्यतः व्यवसायों को सोवरेन गारंटी के साथ डाइरेक्टेड क्रेडिट के रूप में और पूंजीगत खर्च में वृद्धि के रूप में मिला. लेकिन हमें वित्तीय उपायों के कारण मांग में वैसी वृद्धि नहीं दिखी जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में दिखी.

मुद्रा नीति को सामान्य बनाना

मुद्रा नीति में यह स्वीकार किया गया कि आर्थिक वृद्धि के लिए सहारा देना जरूरी है, रिजर्व बैंक ने मुद्रा नीति को धीरे-धीरे सामान्य बनाने की प्रक्रिया शुरू की. अक्तूबर 2021 में उसने अपने ‘जी-सेक एक्विजीशन प्रोग्राम’ (जी-सैप) के जरिए ‘जी-सेक’ (सरकारी प्रतिभूति) की खरीद बंद कर दी और अतिरिक्त तरलता को वापस लेने के लिए वैरिएबल रिवर्स रेपो रेट (वीआरआरआर) नीलामी शुरू कर दी. रिवर्स रेपो रेट लेन-देन में बैंक अपना अतिरिक्त फंड रिजर्व बैंक में जमा करके ब्याज कमाते हैं. इसका एक हिस्सा निश्चित दर पर और कुछ हिस्सा अस्थिर दर पर जमा किया जाता है.

अस्थिर दर वाले रिवर्स रेपो रेट में ब्याज दरें बोली लगाकर तय की जाती हैं. अक्तूबर 2021 से वीआरआरआर नीलामी तरलता प्रबंधन का प्रमुख साधन है. दिसंबर में मुद्रा नीति संबंधी घोषणा में रिजर्व बैंक ने वीआरआरआर नीलामी से हासिल राशि में वृद्धि कर दी. उसने वीआरआरआर नीलामी के तीन दिन, सात दिन, 14 दिन वाली अवधियां घोषित कर दी. नतीजतन, अल्पकालिक मनी मार्केट दरें रेपो रेट के बराबर गई हैं.

मुद्रास्फीति में वृद्धि के बीच मुद्रा नीति

उम्मीद थी कि बृहस्पतिवार की बैठक में रिजर्व बैंक रिवर्स रेपो रेट में 20 आधार अंकों की वृद्धि करके अपनी मुद्रा नीति के सामान्यीकरण को ‘औपचारिक’ स्वरूप प्रदान करेगा और इसे दूसरी अल्पकालिक दरों के तालमेल में लाएगा. उसने अगले वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जो काफी आशावादी लगता है. कच्चे तेल की वैश्विक कीमत में सख्ती मुद्रास्फीति के लिए बड़ा खतरा पेश कर रही है. ओमिक्रॉन के मामलों में कमी के बीच मांग में मजबूती आने के कारण इनपुट लागत के दबावों के विस्तार में तेजी आ सकती है. ‘कोर’ मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत के स्तर पर बनी रह सकती है.

इसके अलावा, दरों में वृद्धि के कारण भारतीय और अमेरिकी बॉन्डों से लाभ में अंतर बढ़ सकता था, लेकिन अमेरिकी बॉन्डों से लाभ में वृद्धि के कारण यह कम हो रहा है. इसके कारण भारतीय बाज़ारों में विदेशी फंड की आवक कुछ हद तक बढ़ सकती थी.


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बॉन्ड बाजार में घबराहट

दरों में वृद्धि करने से रिजर्व बैंक ने इसलिए भी परहेज किया होगा कि अगले साल के लिए सरकार अपेक्षा से अधिक उधार ले सकती है. बजट में अगले वित्त वर्ष के लिए 14.95 लाख करोड़ की सकल मार्केट बॉरोइंग की घोषणा की गई. ऊंची बॉरोइंग के कारण सप्लाइ-डिमांड के तालमेल में गड़बड़ी और घरेलू बॉन्डों को ग्लोबल बॉन्ड सूचकांकों में शामिल करने के उपायों के अभाव ने बॉन्ड से लाभ को बजट घोषणाओं के बाद रेकॉर्ड 6.9 प्रतिशत के स्तर पर पहुंचा दिया. ब्याज दरों में वृद्धि की औपचारिक घोषणा का अर्थ यह होता कि रिजर्व बैंक बाजार के साथ कदम मिला रहा है.

कर्ज प्रबंधन एजेंसी के अभाव में, सरकारी कर्ज और मुद्रास्फीति को संभालने में एक आंतरिक द्वंद्व है. कर्ज प्रबंधन एजेंसी के अभाव में रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति को लेकर अपेक्षाओं के प्रबंधन में पिछड़ सकता है. इससे केंद्रीय बैंक की साख घटेगी और बाजार में और घबराहट फैलेगी. ऐसी स्थितियों में फेड रेट्स में परिवर्तन के कारण अफरातफरी, तेल की कीमतों में वृद्धि या दूसरे झटकों के चलते मुद्रा और मानी मार्केट में उथलपुथल पैदा हो सकती थी.

(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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