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Friday, 1 November, 2024
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पोस्टमार्टम पर मोदी सरकार का नया नियम कैसे परिवारों का इंतजार घटाएगा, अंगदान को भी मिलेगा बढ़ावा

मोदी सरकार ने सोमवार को एक नया पोस्टमार्टम प्रोटोकॉल लागू किया है जो दिन का उजाला खत्म होने के बाद भी शव परीक्षण की अनुमति देता है. इससे पहले की व्यवस्था के कारण यह प्रक्रिया अक्सर लंबी खिंच जाती थी.

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नई दिल्ली: भारत सरकार ने पोस्टमार्टम प्रोटोकॉल में बदलाव को अधिसूचित कर दिया है जिसमें दिन के किसी भी समय शव परीक्षण करने की अनुमति दी गई है. भले ही प्राकृतिक रोशनी हो या नहीं. हालांकि, यह इस पर निर्भर करेगा कि जिस अस्पताल में ऑटोप्सी की जानी हो, वहां उपयुक्त बुनियादी ढांचा उपलब्ध होना चाहिए.

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि सूर्यास्त के बाद शव परीक्षण नहीं करने को लेकर कोई कानूनी बाध्यता नहीं थी लेकिन केवल दिन के उजाले में ही पोस्टमार्टम करने की परंपरा को अक्सर प्रक्रिया लंबी खींचने के बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था खासकर छोटे शहरों में.

प्रोटोकॉल में बदलाव से न केवल मृतक के परिजनों के लिए स्थितियां बदलेंगी जिन्हें अक्सर शव पाने के लिए एक लंबा इंतजार करना पड़ता है बल्कि देश में अंग दान कार्यक्रम में भी बड़ा असर पड़ने की संभावना है.

क्या है नया प्रोटोकॉल

पोस्टमार्टम परीक्षण, जैसा इसके नाम से ही पता चलता है, पैथोलॉजिस्ट और फोरेंसिक मेडिसिन डॉक्टर किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद आमतौर पर उसकी मौत का कारण पता लगाने के लिए करते हैं. सभी शवों का पोस्टमार्टम नहीं किया जाता है.

यह केवल उन मामलों में होता है जहां मृत्यु का कारण ज्ञात नहीं होता या परिस्थितियां संदिग्ध होती हैं या फिर मृत्यु अचानक या किसी हिंसा की वजह से हुई होती है.

नए प्रोटोकॉल के बारे में सोमवार को जारी एक बयान में मंत्रालय ने कहा कि यह निर्णय ‘केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को विभिन्न स्रोतों से प्राप्त कई संदर्भों के जवाब और सरकार की इस प्रतिबद्धता के अनुरूप लिया गया कि सरकारी प्रक्रियाओं के अनुपालन के कारण पड़ने वाले बोझ को घटाकर जीवन जीना आसान बनाया जाएगा.’ इसमें कहा गया है कि सूर्यास्त के बाद शव परीक्षण की अनुमति देने वाला नया प्रोटोकॉल ‘आज से ही प्रभावी’ होगा.

बयान में कहा गया है ‘मृतक के दोस्तों और रिश्तेदारों को थोड़ी राहत देने के अलावा नई प्रक्रिया अंग दान और प्रत्यारोपण को भी बढ़ावा देगी क्योंकि शव परीक्षण की प्रक्रिया के बाद निर्धारित समय में अंगों का इस्तेमाल किया जा सकेगा.’

हालांकि, इस बदलाव के साथ कुछ शर्तें भी जुड़ी हैं. उन मौतों के मामले में जहां हत्या, आत्महत्या, बलात्कार का संदेह या आरोप है, या फिर शव सड़ चुका है या किसी तरह की गड़बड़ी का संदेह है तो शवों की जांच केवल दिन के उजाले में करने का प्रावधान रखा गया है लेकिन ऐसे मामलों में भी एक अपवाद जोड़ा गया है कि अगर कानून-व्यवस्था की स्थिति नाजुक हो तो प्रक्रिया में तेजी लाई जा सकती है (इसका मतलब है कि पोस्टमार्टम परीक्षण दिन का उजाला खत्म होने के बाद किया जा सकता है).


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प्राकृतिक रोशनी क्यों मायने रखती है

पोस्टमॉर्टम परीक्षण में प्राकृतिक रोशनी बहुत महत्व रखता है क्योंकि घाव या आंतरिक अंगों के रंग से मृत्यु के कारणों के बारे में ज्यादा सटीक जानकारी मिल सकती है.

भारत में सशस्त्र बलों के मेडिकल जर्नल में 2005 के एक पेपर में उस समय पुणे के सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज में फोरेंसिक मेडिसिन विभाग के प्रमुख रहे डॉ. आर.बी. कोटाबागी ने लिखा था, ‘प्रभावी कोल्ड-स्टोरेज सुविधा के साथ अच्छी तरह सुसज्जित शव परीक्षण कक्ष एक आवश्यक बुनियादी ढांचा है.’

उन्होंने आगे लिखा, ‘ऑटोप्सी रूम में अच्छी प्राकृतिक रोशनी, एग्जॉस्ट वेंटिलेशन, फ्लाई-प्रूफिंग, पानी की लगातार सप्लाई, अच्छी ड्रेनेज सुविधा के साथ सेंट्रल ड्रेनेज वाली एक ऑटोप्सी टेबल होनी चाहिए. प्राकृतिक प्रकाश सबसे अच्छा होता है क्योंकि इसमें विभिन्न रंगों को सही ढंग से समझा जा सकता है. इसलिए एक नियम के तौर पर आर्टिफिशियल रोशनी की व्यवस्था के बिना रात में शव परीक्षण नहीं किया जाना चाहिए.’

हालांकि, एम्स के पूर्व निदेशक और फोरेंसिक मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ टी.डी. डोगरा ने बताया कि इसकी शुरुआत देश में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान हुई थी.

उन्होंने कहा, ‘ऑटोप्सी 1860 के दशक के आसपास शुरू हुई थी. उस समय बिजली नहीं होती थी इसलिए सूर्यास्त के बाद पोस्टमार्टम नहीं किया जा सकता था. घावों को ठीक से देखने-समझने में रोशनी बहुत जरूरी है लेकिन आपको समझना होगा कि लिखित में ऐसा कोई आदेश नहीं है. यह एक परंपरा है जो चली आ रही है.’

उन्होंने ऑटोप्सी कक्ष में आर्टिफिशियल रोशनी के संबंध में अपने खुद के पेपर का जिक्र करते हुए कहा जो 1984 में जर्नल ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट में प्रकाशित हुआ था जिसमें बताया गया था कि शव परीक्षण करने वाली मेज पर 150 लुमेन (प्रकाश की चमक निर्धारित करने वाली इकाई) की रोशनी पर्याप्त है.

उन्होंने तो यह तक बताया कि नई दिल्ली स्थित एम्स में 2000 के दशक के पूर्वार्ध तक शवों का परीक्षण आर्टिफिशियल रोशनी की व्यवस्था के साथ ही एक तहखाने में किया जाता था. उन्होंने बताया, ‘जब मैंने 1971 में एम्स ज्वाइन किया तो हम केवल आर्टिफिशियल रोशनी की व्यवस्था के साथ ही शव परीक्षण करते थे. गुजरात और महाराष्ट्र जैसे कई राज्य पहले ही 24 घंटे ऑटोप्सी की अनुमति देने वाली अधिसूचना जारी कर चुके हैं.’

अंगदान के लिहाज से इसके निहितार्थ

यातायात हादसों के कारण बड़ी संख्या में मौतें होने के बावजूद देश में विभिन्न कारणों से शव दान में कोई वृद्धि नहीं हो पाई है. इन्हीं में से एक कारण दिन के उजाले में ऑटोप्सी होने की व्यवस्था भी है. एक समय तो इस तरह के सुझाव भी दिए गए थे कि अंगों को उपयोगी बनाए रखने के लिए शव परीक्षण से पहले उन्हें निकालने की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए.

मंत्रालय ने सोमवार को अपने बयान में कहा, ‘ऐसी जानकारी सामने आई है कि कुछ संस्थान पहले से ही रात के समय पोस्टमार्टम कर रहे हैं.’

आगे कहा गया, ‘प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति और बदलावों के मद्देनजर, खासकर रोशनी की पुख्ता व्यवस्था और पोस्टमार्टम के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की उपलब्धता को देखते हुए, अस्पतालों में रात के समय पोस्टमार्टम करना अब मुमकिन है.’

इसमें कहा गया है कि प्रोटोकॉल ‘यह निर्धारित करता है कि अंग दान के लिए पोस्टमार्टम प्राथमिकता के आधार पर किया जाए और नियमित तौर पर जिन अस्पतालों में पोस्टमार्टम के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा उपलब्ध हो वहां शव परीक्षण सूर्यास्त के बाद भी किया जाए.’

इसमें यह भी कहा गया है, ‘बुनियादी ढांचा पुख्ता होना और सभी उपयुक्त आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध होने का आंकलन खुद अस्पताल प्रभारी द्वारा किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि साक्ष्यों की जरूरत के लिहाज से इसमें कोई कमी न रह जाए. अस्पताल को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि संदेह की कोई गुंजाइश न रहने देने और भविष्य में कानूनी उद्देश्यों के लिए संदर्भ के तौर पर संरक्षित करने के लिहाज से रात में होने वाले सभी पोस्टमॉर्टम की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाए.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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