नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश, जो भारत में सबसे कम टेस्ट पॉजिटिव रेट के साथ कोविड-19 से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में से एक है, में सक्रिय मामलों में खासी गिरावट नजर आ रही है लेकिन मरने वालों का आंकड़ा लगभग दोगुना हो गया है.
दिप्रिंट ने 1 सितंबर से 20 अक्टूबर के बीच सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण किया जिसके मुताबिक सक्रिय मामलों की संख्या घटकर करीब आधी हो गई है जो 1 सितंबर को 55,538 की तुलना में 20 अक्टूबर को 30,416 हो गए.
हालांकि, इसी अवधि में मौतों का आंकड़ा 3,542 की तुलना में लगभग दोगुना होकर 6,714 पर पहुंच गया.
दिप्रिंट ने जिन विशेषज्ञों से बात की उनका कहना है कि यह ट्रेंड इस बात का संकेत है कि संक्रमण का पहले से पता नहीं चल पा रहा है और टेस्टिंग डाटा ज्यादा पक्का और विस्तृत होना चाहिए.
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हालांकि, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशक डी.एस. नेगी का कहना है कि राज्य में मौतों से ज्यादा बड़ी संख्या में मरीजों के ठीक होने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हां, यह सच है कि कोविड का खतरा अभी खत्म नहीं हुआ है, लेकिन रिकवरी रेट बढ़ना और एक्टिव केस में कमी हमारे लिए सकारात्मक संकेत हैं.’
यूपी में गुरुवार तक 6,755 मौतों और 4,25,356 मरीजों के ठीक होने के साथ कुल 4,61,475 मामले दर्ज किए गए थे. यह कोविड से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों के मामले में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु के बाद पांचवें स्थान पर है. कोविड मामलों के ग्राफ पर नजर रखने वाली क्राउड-सोर्स वेबसाइट Covidtoday.in के अनुसार यूपी सबसे कम टेस्ट पॉजिटिविटी रेट (21 अक्तूबर को 3.45) के मामले में देश में चौथे स्थान पर है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि यूपी उन 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शामिल है जहां पिछले 24 घंटे में हुई मौतों का आंकड़ा देश में कुल मौतों का 81 फीसदी है.
सक्रिय मामले घटे, मौतें बढ़ रहीं
यूपी सरकार की तरफ से जारी स्वास्थ्य बुलेटिन के अनुसार, राज्य में सक्रिय मामले 1 सितंबर से 20 अक्टूबर के बीच लगातार घटे हैं, जो 23.5 प्रतिशत से घटकर 6.6 प्रतिशत पर पहुंच गए हैं.
1 सितंबर को 23.5 प्रतिशत (55,538 मामले) एक्टिव केस थे. 15 सितंबर को यह आंकड़ा घटकर 20.7 फीसदी (67,335 मामले) रह गया. 1 अक्टूबर तक यह दर घटकर 12.49 प्रतिशत (50,378 मामले) हो गई और 20 अक्टूबर को 6.6 प्रतिशत (30,416 मामले) रह गई.
इसके विपरीत, मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ते हुए 1 सितंबर को 3,542 मौतों की तुलना में 20 अक्टूबर को 6,714 हो गया. इस अवधि में मृत्यु दर मामूली गिरावट के साथ 1.5 प्रतिशत से 1.4 प्रतिशत हो गई.
क्या मौतें बढ़ना खतरे का संकेत
नेगी ने दिप्रिंट को बताया कि मौतों की बढ़ती संख्या चिंता का कारण नहीं है.
नेगी ने कहा, ‘मौतों का आंकड़ा बढ़ने के कई कारण हैं. कई मामलों में लोग घर से अलग-थलग बने रहते हैं और रिपोर्ट नहीं करते हैं कि उन्हें कोविड है. लेकिन जब गंभीर हो जाते हैं तभी इलाज कराने का विकल्प अपनाते हैं और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.’
उन्होंने आगे जोड़ा, ‘दूसरी बात जब निजी अस्पतालों में भर्ती मरीज की हालत बिगड़ जाती है तो उन्हें गंभीर हालत में सरकारी मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में भेजा जाता है और ऐसे में उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है. हमने बढ़ती मौतों के मामलों के देखने के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाई है.’
नेगी ने कहा कि इसके बजाये रिकवरी रेट ज्यादा होने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘हमारा रिकवरी रेट 90 प्रतिशत से ऊपर है. इसलिए मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि मौतों का आंकड़ा बढ़ाना बड़े खतरे का संकेत है.मरीजों के ठीक होने की दर बढ़ना और सक्रिय मामलों में कमी एक सकारात्मक संकेत हैं. मौत के ज्यादातर मामले कोमोर्बिडिटी की स्थिति से जुड़े होते हैं.
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही संक्रमण के बारे में जानकारी देरी से रिपोर्ट हो रही हो, घटती संख्या को देखते हुए यह बात एक्टिव केस लोड में नजर नहीं आती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के हेल्थ इकोनॉमिस्ट और सलाहकार डॉ. रिजो एम. जॉन कहते हैं, ‘यह कहना विरोधाभासी है कि सक्रिय मामले घट रहे हैं लेकिन मौतें बढ़ रही हैं. भले ही संक्रमण का पता देरी से चल रहा हो, उनकी जानकारी सामने आ रही है और उन्हें केसलोड में जोड़ना चाहिए. समय के साथ केसलोड घटने के साथ मृत्यु दर में भी कमी आनी चाहिए.’
वैश्विक स्वास्थ्य और बायोएथिक्स पर शोध करने वाले डॉ. अनंत भान के अनुसार, बढ़ती मौतें की वजह यह भी हो सकती है कि संक्रमण के बारे में समय पर पता न चल पा रहा हो. उन्होंने कहा, बहुत से मामले देरी से सामने आ रहे हैं, जिसका अर्थ है कि इलाज शुरू होने में देरी होती है और फिर मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता है.’
डॉ. जॉन ने कहा कि उच्च मृत्यु दर टेस्ट करने की रणनीति में भी परिलक्षित हो सकती है.
उन्होंने कहा, ‘देश में किए गए कुल टेस्ट में तेरह प्रतिशत यूपी में किए गए हैं. लेकिन राज्य विभिन्न तरीके के परीक्षणों के बारे में अलग-अलग डाटा नहीं देता है, और न ही हमारे पास हर प्रकार के टेस्ट के पॉजिटिविटी रेट के बारे में कोई जानकारी है. यूपी रैपिड एंटीजेन टेस्ट पर निर्भर हो सकता है जिसमें टेस्ट पॉजिटिविटी रेट कम ही रहता है. आरटी-पीसीआर टेस्ट की तुलना में इसमें गलत तरीके से निगेटिव टेस्ट नतीजे की गुंजाइश ज्यादा रहती है. ऐसे में डाटा पारदर्शिता जरूरी है.’
(प्रशांत श्रीवास्तव के इनपुट के साथ)
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