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Thursday, 28 March, 2024
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प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ डॉक्टरों ने दिल्ली में कोविड के बढ़ने की चेतावनी दी

दिल्ली में इस सीजन की शुरुआत में 'बहुत खराब' वायु गुणवत्ता देखने को मिली है. डॉक्टर और विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बढ़ते प्रदूषण से कोविड के मामलों में वृद्धि होगी.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में मंगलवार को इस साल की सबसे खराब वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) रिकॉर्ड की गई. प्रदूषण और तापमान के गिराने के प्रभावों के कारण कोरोनोवायरस महामारी को लेकर चिंताएं लगातार बढ़ रही हैं.

महामारी के दौरान किए गए कई अध्ययनों से पता चलता है कि कोविड-19 से मौत शहरी वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक जोखिम के कारण होती है.

दिप्रिंट ने कई डॉक्टरों और विशेषज्ञों से बात की, जिन्होंने कहा कि बढ़ते प्रदूषण से कोरोनोवायरस के मामलों में वृद्धि होगी, क्योंकि सांस से सम्बंधित संक्रमण कोविड-19 के केंद्र में हैं.

डॉक्टरों ने कहा कि वे टेस्ट बढ़ाने की उम्मीद कर रहे हैं, ताकि अधिक से अधिक लोगों का जल्दी से कोविड-19 परीक्षण किए जाएं और उनके इलाज पर ध्यान दिया जा सके.

बुधवार तक, दिल्ली में 5,854 मौतों और 2,86,880 रिकवरी के साथ कुल 3,14,224 मामले दर्ज किए गए हैं.

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दिल्ली का बढ़ता प्रदूषण

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, दिल्ली की वायु गुणवत्ता मंगलवार को ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच गई, जिसमें एक्यूआई 304 है. यह इस सीजन में पहली बार हुआ है.

पूर्ववर्ती दिनों में एक्यूआई औसत ‘खराब’ श्रेणी में रही. सोमवार को एक्यूआई 261 पर था, जबकि रविवार को यह 216 और शनिवार को 221 पर था. बुधवार को, एक्यूआई 279 पर ‘ख़राब’ श्रेणी में लौट आया.

पर्यावरणविदों ने कहा कि दिल्ली सरकार प्रदूषण से निपटने की योजना लेकर आई है, लेकिन इसके लिए व्यापक खाका तैयार करना आवश्यक है.

सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी ने कहा, ‘साल के इस समय में अस्पताल में श्वसन(सांस से संबंधित) संबंधी बीमारियां बढ़ते प्रदूषण स्तर के कारण बढ़ती हैं.’

इस साल हमारे पास प्रदूषण के साथ कोविड का दोहरा बोझ है. उन्होंने कहा कि प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण दिल्ली वासियों के फेफड़े कमजोर हो जाते हैं, जो चिंताजनक है.


यह भी पढ़ें : कोविड के साथ डेंगू, मलेरिया या सीज़नल फ्लू भी हो तो क्या करें? स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी किए दिशानिर्देश


‘शहरी प्रदूषण और गंभीर कोविड-19 परिणाम’

चिंताएं विभिन्न अध्ययनों से भी उपजी हैं, जो कि प्रदूषण के साथ कोविड -19 के परिणामों के साथ सामने आयी हैं.

सितंबर में पत्रिका इनोवेशन में प्रकाशित एमोरी यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में कहा गया है, ‘शहरी वायु प्रदूषकों, विशेष रूप से NO2 गंभीर कोविड-19 की मौत के दीर्घकालिक जोखिम परिणामों को बढ़ा सकता है.’

इसी अध्ययन में यह भी पाया गया कि ‘शहरी वायु प्रदूषण के जोखिम में कमी ने उन लोगों के बीच 14,000 मौतों को होने से बचाया, जिन्हें 17 जुलाई, 2020 तक वायरस के लिए पॉजिटिव पाया गया था.’

अप्रैल में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि ‘पीएम2.5 में केवल 1 μg / m3 की वृद्धि कोविड -19 की मृत्यु दर में 8 प्रतिशत की वृद्धि के साथ जुड़ी है.’

क्लोजर होम, दिल्ली में इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में रेडियोलॉजी विभाग द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि खराब हवा के संपर्क के वर्षों में दिल्ली-एनसीआर के निवासियों के फेफड़ों में संरचनात्मक परिवर्तन हुए हैं, जिससे उन्हें बंगाल, ओडिशा, बिहार या आसपास के निवासियों की तुलना में श्वसन संबंधी बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील बना दिया गया है.

‘कोविड मामलों के बढ़ने की उम्मीद करें’

डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने कहा कि बढ़ते प्रदूषण के स्तर और सर्दियों की शुरुआत के साथ कोविड -19 मामलों में वृद्धि की उम्मीद है.

डॉ बी.एल. शेरवाल, दिल्ली सरकार द्वारा संचालित राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में निदेशक, ‘हम मामलों में वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि यह वायरस फ़ैलने के लिए सही समय है. प्रदूषण के स्तर के कारण प्रतिरक्षा में भी समझौता होता है.’

चिंता की बात यह है कि जैसे-जैसे लोग सैर के लिए निकलते हैं, खासकर बुजुर्ग, प्रदूषण के कारण उनकी प्रतिरोधक क्षमता से समझौता हो जाता है और वे आसानी से कोविड के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाते हैं.

डॉक्टरों ने यह भी कहा कि इस दौरान अंतर्निहित श्वसन संबंधी बीमारियां और भी बदतर हो जाएंगी.

इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ एस चटर्जी ने कहा, हल्के कोविड मामलों में फेफड़ों से समझौता नहीं किया जाता है. हालांकि, 10-15 प्रतिशत मामलों में जो गंभीर रूप से बदल जाते हैं, सांस की तकलीफ प्रदूषण के साथ और बढ़ जाती है जो घातक हो सकती है.’

‘परीक्षण संख्या बढ़ाने के लिए’

डॉक्टर भी परीक्षण संख्या में वृद्धि देखने की उम्मीद कर रहे हैं. कोविड के मुख्य लक्षण, साथ ही साथ प्रदूषण से प्रेरित श्वसन संबंधी बीमारियां, गले में खराश, खांसी और सर्दी के समान हैं, जब भी ये लक्षण होते हैं, तो परीक्षण में वृद्धि होने की उम्मीद होती है.

डॉक्टरों ने कहा कि कोविड लक्षणों के बारे में जनता में जागरूकता के साथ-साथ परीक्षण बढ़ेगा.

लोगों की जागरूकता दिल्ली की बढ़ती परीक्षण संख्या में परिलक्षित होती है. डॉ शेरवाल ने कहा कि दिल्ली में हर दिन 50-60,000 परीक्षण किए जाते हैं क्योंकि लोग जागरूक होते हैं और यदि कोई लक्षण महसूस करते हैं तो वे खुद का परीक्षण करवाते हैं.

हालांकि, विशेषज्ञों ने इस बात से इनकार किया कि परीक्षण नीति में किसी भी तरह के बदलाव के जरूरत है केवल पहले टेस्ट करने की जरूरत है.

डॉ गिरिधर बाबू, प्रोफेसर और हेड, लाइफ़कोर्स एपिडेमियोलॉजी ऑफ़ पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ने कहा, ‘वायु प्रदूषण श्वसन संबंधी अन्य सूक्ष्मजीवों के संक्रमण से निकटता से संबंधित है.’

उन्होंने कहा, सही परिणाम यह है कि स्वास्थ्य प्रणाली कोविड पर अधिक संदेह कर सकती है, जब तक यह एक सिंड्रोमिक दृष्टिकोण है जो परीक्षण के लिए उपयोग किया जाता है, यह ठीक है. परीक्षण नीति को बदलने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि भारत सरकार और आईसीएमआर ने पहले ही नवीनतम दिशानिर्देशों में मांग के आधार पर परिक्षण की नीति पेश की है .

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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