नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी के दौरान महत्वपूर्ण समय गंवा देने के बाद, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जे) के लिए बनाई गई प्रशासनिक इकाई नेशनल हेल्थ अथॉरिटी, अगले एक वर्ष में अपने लाभार्थी आधार को दोगुना करने की योजना बना रही है.
उसी दिशा में क़दम बढ़ाते हुए अथॉरिटी, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश में विशेष अभियान शुरू करने जा रही है. संभावित लाभार्थियों की सबसे अधिक संख्या, इन्हीं राज्यों में मानी जाती है. पीएम-जे के 60 प्रतिशत लक्षित लाभार्थी इन्हीं तीन सूबों में हैं.
सरकार से वित्त पोषित, दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम के तौर पर प्रचारित की जा रही, पीएम-जे योजना का मक़सद ‘ग़रीब और कमज़ोर परिवारों को’, 5 लाख से अधिक का सालाना स्वास्थ्य बीमा कवर देना है. स्कीम के तहत लाभार्थी परिवार के हर सदस्य को, निजी ई-कार्ड दिए जाते हैं.
10.74 करोड़ परिवारों या 50 करोड़ आबादी के लक्ष्य में से- जिसे सितंबर 2018 में पीएम-जे योजना लॉन्च किए जाने के समय निर्धारित किया गया था- एनएचए अभी तक क़रीब 13.5 ई-कार्ड्स जारी कर चुकी है.
एनएचए सीईओ डॉ विपुल अग्रवाल ने कहा, ‘हम देश में कहीं पर भी पंजीकरण अभियान नहीं चला पाए हैं, क्योंकि कोविड के दौरान घर-घर जाकर संपर्क करना संभव नहीं था. अधिकतर कार्ड्स अस्पतालों में ही दिए गए थे. सामान्य सेवा केंद्रों में भी पंजीकरण काफी कम हो गया था’.
उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए पिछले एक साल में इसकी रफ्तार काफी कम हो गई थी. अब हम बहुत कम समय में इसकी संख्या को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. अगले एक साल में, हमारे पास 30 करोड़ लाभार्थी होने चाहिए, और अस्पतालों में होने वालीं 50-60 लाख वार्षिक भर्तियां, बढ़कर 1.5 करोड़ हो जानी चाहिएं. यही हमारा लक्ष्य है’.
अग्रवाल के अनुसार, सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) की ‘अविश्वसनीयता’ एक समस्या रही है, क्योंकि ख़ासकर शहरी इलाक़ों में, लक्षित आबादी की एक बड़ी संख्या तक, पहुंचा नहीं जा सका.
एसईसीसी आंकड़े वर्ष 2011 के हैं.
उन्होंने आगे कहा, ‘एसईसीसी डेटाबेस में बहुत सी ख़ामियां हैं. शहरी क्षेत्रों में, प्रवास की वजह से ज़मीनी स्तर पर, 20-30 प्रतिशत से ज़्यादा लोगों तक पहुंचा नहीं जा सका. ग्रामीण क्षेत्रों में ये क़रीब 60-70 प्रतिशत था’. उन्होंने आगे कहा, ‘यही कारण है कि उत्तराखंड, और जम्मू-कश्मीर (केंद्र-शासित क्षेत्र) जैसे राज्यों ने, राशन कार्ड डेटा इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है’.
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UP, MP, बिहार में विशेष अभियान
एससीसीसी आंकड़ों के अनुसार, जिसमें सुविधाओं से वंचित परिवारों को, ग़रीबी की एक अलग श्रेणी में रखा गया है (वो पक्के घर में रहते हैं कि नहीं) बिहार से 2,00,74,242 घर पीएम-जे लाभार्थी होने के पात्र हैं. यूपी के लिए ये संख्या 3,24,75,784 है, जबकि एमपी में 1,47,23,864 है.
इसका मतलब है कि स्कीम के तहत लक्षित 10.74 घरों में से, 6 करोड़ से अधिक घर, अकेले इन तीन सूबों में हैं.
अग्रवाल ने कहा, ‘इन तीन सूबों से हमें बहुत बड़ी संख्या नहीं मिली है, इसलिए स्वास्थ्य, शहरी विकास, तथा ग्रामीण विकास मंत्रालयों के साथ मिलकर, इन सूबों में 100 प्रतिशत लाभार्थियों तक पहुंचने के लिए, हम एक विशेष अभियान शुरू करने जा रहे हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘एमपी ने ये अभियान पहले ही शुरू कर दिया है, और उसने एक ही दिन में, 2 करोड़ ई-कार्ड्स हासिल कर लिए’.
उन्होंने ये भी कहा कि कुल मिलाकर, तीनों सूबों में पीएम-जे की पहुंच, लक्ष्य के 20-30 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं है.
आयुष्मान CAPF
केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ मिलकर, इस महीने के शुरू में एनएचए ने, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया, जिसमें पुलिसकर्मी और उनके परिवार, पीएम-जे के पैनल पर मौजूद 12,000 अस्पतालों में कैशलेस सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं.
लेकिन, डॉ अग्रवाल ने स्पष्ट किया, कि ‘इसका मतलब ये नहीं है, कि ये 40 लाख लोग पीएम-जे लाभार्थी बन गए हैं’.
उन्होंने कहा, ‘सिर्फ एसईसीसी के लोग इसके पात्र हैं. लेकिन इससे ये होगा कि उनके लिए, सिर्फ 1,300 की बजाय, 12,000 अस्पताल खुल जाएंगे’.
अग्रवाल ने कहा, ‘गृह मंत्री अमित शाह ने असम में इसका पायलट शुरू किया. उनके लिए इससे प्रक्रिया आसान हो जाएगी, जबकि दूसरी तरफ हम जनसांख्यिकीय प्रोफाइल्स, और इलाज चाहने वालों के व्यवहार से जुड़ा डेटा हासिल कर पाएंगे’.
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