नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को 2024-25 के अंतरिम बजट में 9-14 वर्ष की सभी लड़कियों के लिए सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ टीकाकरण शुरू करने की सरकार की मंशा की घोषणा की.
यह टीकाकरण पर केंद्र सरकार की शीर्ष सलाहकार संस्था, नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन (एनटीएजीआई) द्वारा यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (यूआईपी) के जरिए वैक्सिनेशन की शुरूआत किए जाने की सिफारिश करने के एक साल से अधिक समय बाद आया है.
सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा, “हमारी सरकार सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए 9 से 14 वर्ष की आयु वर्ग की लड़कियों के लिए टीकाकरण को प्रोत्साहित करेगी.”
विश्व स्वास्थ्य संगठन-इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (डब्ल्यूएचओ-आईएआरसी) के अनुसार, हर साल भारत में लगभग 1,23,907 महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का पता चलता है, जो ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) के कारण होता है और इस बीमारी के चलते 77,348 महिलाओं की मौत हो जाती है.
कुल मिलाकर, वित्त वर्ष 2024-25 के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय को 90,657 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं – जो कि पिछले साल पेश किए गए पूर्ण बजट से 1.6 प्रतिशत ज्यादा है, और 2023-24 के संशोधित 80,516 करोड़ रुपये के अनुमान से 12.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी है.
प्रस्तावित 90,657 करोड़ रुपये में से 3,001 करोड़ रुपये डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च को आवंटित किए गए हैं, और शेष स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग को आवंटित किए गए हैं..
अपने बजट भाषण में, सीतारमण ने यह भी घोषणा की कि सरकार की प्रमुख स्वास्थ्य योजना, आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) को पूरे भारत में आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों तक बढ़ाया जाएगा.
इस योजना के तहत, भारत के लगभग 10 करोड़ सबसे गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये तक की द्वितीयक और तृतीयक देखभाल अस्पताल में भर्ती कवरेज (Hospitalization Coverage) की पेशकश की जाती है.
सरकारी अनुमान के मुताबिक, देश में लगभग 10 लाख आशा कार्यकर्ता हैं जो सामुदायिक स्तर पर स्वास्थ्य सेवा प्रदाता, सेवा प्रदाता के रूप में काम करती हैं और स्वास्थ्य मुद्दों पर जागरूकता फैलाती हैं.
प्रीस्कूलर और गर्भवती महिलाओं के बीच पोषण संबंधी मापदंडों को बढ़ाने के लिए केंद्र की एकीकृत बाल विकास सेवाओं के तहत स्वयंसेवकों के रूप में काम करने वाली आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की संख्या लगभग 13 लाख है. सरकारी अनुमान के अनुसार, राज्यों में लगभग 11.6 लाख आंगनवाड़ी सहायिकाएं हैं.
अंतरिम बजट में वित्त मंत्री द्वारा मौजूदा अस्पताल के बुनियादी ढांचे का उपयोग करके देश में और अधिक मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा भी की गई. उन्होंने कहा कि इसके लिए एक समिति गठित की जायेगी.
शुरू की गई अन्य पहलों के बीच, सीतारमण ने यू-विन पोर्टल के राष्ट्रव्यापी लॉन्च की घोषणा की – जो कि कोविड-19 वैक्सीन प्रबंधन प्रणाली को-विन के समान है – जिसका उद्देश्य पंजीकरण, फॉलो-अप और टीकाकरण सहित देश में सभी टीकाकरण और टीकाकरण सर्टिफिकेट कार्यक्रमों का दस्तावेजीकरण करना है. इस पहल से संबंधित एक पायलट प्रोजेक्ट पिछले साल जनवरी में शुरू किया गया था.
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. श्रीनाथ रेड्डी के अनुसार, “इस क्षेत्र के लिए कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई, संभवतः इसलिए क्योंकि यह एक कम महत्वपूर्ण बजट था.”
रेड्डी ने कहा, “भारत में एचपीवी टीकाकरण वास्तव में कब शुरू किया जाएगा, इसका न तो स्पष्ट रूप से कोई किया गया था और न ही साफ तौर पर कोई संकेत दिया गया था.”
उन्होंने कहा, “इसके अलावा, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को शामिल करने के लिए एबी-पीएमजेएवाई के अम्ब्रेला को थोड़ा बढ़ाया गया है, लेकिन मुझे लगता है कि उनमें से अधिकांश पहले से ही अपनी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि को देखते हुए इसके दायरे में आ जाएंगे.”
मेडिकल कॉलेजों से संबंधित घोषणा पर उन्होंने कहा कि यह तभी फायदेमंद होगा जब निजी क्षेत्र इस पहल में शामिल होने के बजाय जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेजों के रूप में अपग्रेड किया जाएगा.
इस बीच, डायग्नोस्टिक लैब की एक भारतीय बहुराष्ट्रीय चेन मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर की प्रमोटर और प्रबंध निदेशक अमीरा शाह ने पहल को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि उन्हें स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में गहरे निवेश और रिसोर्स एलोकेशन की उम्मीद है.
उन्होंने कहा, “भारत को बजट में उल्लेखनीय वृद्धि किए बिना सेवाओं को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी की खोज करते हुए स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता देनी चाहिए और अधिक निवेश करना चाहिए.”
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में प्रतिभाओं को आकर्षित करने और उन्हें निखारने के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए अधिक कौशल पाठ्यक्रमों के साथ-साथ नियमित और समावेशी स्क्रीनिंग की आवश्यकता है.
आगामी लोकसभा चुनाव के बाद चुनी गई सरकार वित्तीय वर्ष के लिए पूर्ण बजट पेश करेगी.
कुल मिलाकर, 2014 के बाद से, जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट आवंटन में साल-दर-साल ज्यादा बढ़ोत्तरी नहीं देखी गई है.
हालांकि, 2018 में, AB-PMJAY की घोषणा को इस क्षेत्र के लिए एक बड़ी पहल करार दिया गया था.
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स्वास्थ्य अभी भी ठंडे बस्ते में है
वित्तीय वर्ष 2023-24 में, स्वास्थ्य मंत्रालय को 89,155 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे – जो कि वित्त वर्ष 2023 के संशोधित बजट अनुमान की तुलना में 12.6 प्रतिशत की वृद्धि है. 2022 के बजट की तुलना में कुल वृद्धि 16 प्रतिशत थी. इसका मतलब यह था कि बढ़ोत्तरी मुद्रास्फीति के प्रभावों को कवर करने के लिए मुश्किल से पर्याप्त थी.
अपने बजट भाषण में, सीतारमण ने घोषणा की थी कि फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को सरकारी प्रोत्साहन मिलेगा, साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा की कि 157 नए नर्सिंग कॉलेज स्थापित किए जाएंगे.
इसके अलावा, घोषणाओं के अनुसार, कुछ भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) लैब्स निजी शोधकर्ताओं के लिए सुलभ होनी थीं, और 2047 तक सिकल सेल एनीमिया – आदिवासी लोगों में एक आम खून से जुड़ी बीमारी – को खत्म करने के लिए एक परियोजना शुरू की गई थी.
केंद्र-प्रायोजित योजनाओं में, जिन दो योजनाओं में काफी बढ़ोत्तरी हुई, वे हैं प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएमएबीएचआईएम) जिसका उद्देश्य जिला अस्पतालों में बुनियादी ढांचे की सहायता करना है, और राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन – जो कि देश की एकीकृत डिजिटल स्वास्थ्य अवसंरचना को सपोर्ट करने वाली एक परियोजना है.
लेकिन अधिकांश अन्य योजनाओं के लिए यथास्थिति बनाए रखी गई और इस क्षेत्र के लिए कोई बड़ी घोषणा या बड़ी बढ़ोत्तरी नहीं की गई.
FY23 का केंद्रीय बजट इस क्षेत्र के लिए और भी निराशाजनक रहा. इसने क्षेत्र के लिए 86,200 करोड़ रुपये का आवंटन रखा – 2021-22 के संशोधित अनुमान से सिर्फ 0.2 प्रतिशत अधिक, जबकि आवंटन 85,915 करोड़ रुपये था.
साथ ही, वित्त वर्ष में चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सरकार के प्रस्तावित खर्च में 2021-22 के संशोधित अनुमान से 45 प्रतिशत से अधिक की भारी गिरावट देखी गई थी.
2021-2022 में सरकार ने कोविड-19 टीकाकरण के लिए 35,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था. लेकिन अगले साल, महामारी के कारण देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में बड़ी खामियां सामने आने के बावजूद, इस क्षेत्र के लिए कोई उल्लेखनीय पहल नहीं की गई.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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