नई दिल्ली: भारत ने 10 जनवरी से एहतियातन कोविड वैक्सीन की तीसरी डोज लगाने का फैसला भले ही कर लिया है लेकिन जहां तक भारत बायोटेक निर्मित कोवैक्सीन की बात है, तो इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि तीसरी खुराक लेने वालों पर टीके का क्या प्रभाव पड़ेगा.
सरकार ने बुधवार को स्पष्ट किया था कि स्वास्थ्यकर्मियों, फंट्रलाइन वर्कर और कोमोर्बिडिटी वाले या 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को पहले दो शॉट वाले टीके की ही तीसरी खुराक दी जाएगी.
वैसे लैंसेट की कुछ स्टडी में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की तीसरी खुराक के बारे में जिक्र किया है. इसी टीके को भारत में कोविशील्ड के रूप में जाना जाता है और यहां 90 फीसदी से अधिक पात्र आबादी को यही वैक्सीन लगी है.
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) में महामारी विज्ञान और संक्रामक रोग मामलों के प्रमुख डॉ. समीरन पांडा ने कहा, ‘द लैंसेट में कोविशील्ड की तीसरी खुराक के संबंध में कुछ पेपर्स हैं. मुझे अभी तक कोवैक्सीन की तीसरी खुराक पर कोई सामग्री नहीं मिली है. लेकिन यह एक ऐसा फैसला (तीसरी खुराक में पहले वाली ही वैक्सीन देना) है जो एनटीएजीआई (प्रतिरक्षण तंत्र पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह) और स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से लिया गया है.’
एनटीएजीआई सर्वोच्च तकनीकी निकाय है जो राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान के तहत देश में दिए जाने वाले सभी टीकों पर निर्णय लेने के लिए वैज्ञानिक साक्ष्यों का विश्लेषण करता है.
दिप्रिंट ने इम्यूनोजेनेसिटी और कोवैक्सीन के तीसरे शॉट की सुरक्षा पर किसी वैज्ञानिक साक्ष्य के बारे में जानने के लिए फोन के जरिये भारत बायोटेक से संपर्क साधा. इस पर कंपनी प्रवक्ता ने कहा, ‘हम अभी इस पर ट्रायल कर रहे हैं. परिणाम जल्द ही सामने आएंगे.’
दिप्रिंट ने यह जानने के लिए कि एहतियाती खुराक के तौर पर पहली दो खुराकों वाले टीके की ही डोज देने का फैसला किस साक्ष्य के आधार पर लिया गया था, फोन कॉल और व्हाट्सएप मैसेज के जरिए एनटीएजीआई के कोविड वर्किंग ग्रुप के प्रमुख डॉ एन.के. अरोड़ा और नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) और कोविड-19 के खिलाफ टीकों पर राष्ट्रीय सलाहकार समूह (एनईजीवीएसी) के सह-अध्यक्ष डॉ. वी.के. पॉल से भी संपर्क साधा. उनकी तरफ से प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
इस मामले के जानकार एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘एस्ट्राजेनेका पर अध्ययन चल रहे हैं. इसके अलावा भारत बायोटेक के पास कुछ कोवैक्सीन डेटा है जिसे उसने बूस्टर शॉट्स पर डीसीजीआई के साथ साझा किया है. अहम बात यह है कि हम एक ही टीके का इस्तेमाल कर रहे हैं इसलिए खास चिंता की कोई बात नहीं है. एकमात्र सवाल इसके समय को लेकर है, लेकिन हम जानते हैं कि कोविशील्ड और कोवैक्सिन दोनों से ही मिलने वाली एंटीबॉडी समय के साथ घटेगी ही. आमतौर पर श्वसन संबंधी संक्रमण में वार्षिक आधार पर टीके की बूस्टर डोज की जरूरत पड़ती है. इसलिए यह फैसला लिया गया.’
भारत बायोटेक ने पिछले महीने ही बूस्टर डोज ट्रायल के लिए डीसीजीआई से अनुमति मांगी थी.
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एस्ट्राजेनेका पर लैंसेट के पेपर
पिछले साल सितंबर में द लैंसेट में प्रकाशित एक पेपर में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी—जहां पहली बार एस्ट्राजेनेका वैक्सीन विकसित की गई थी—के शोधकर्ताओं ने कोविशील्ड वैक्सीन की तीसरी खुराक पर एक सब-स्डटी के नतीजों के बारे में बताया था. उनका निष्कर्ष है, ‘सीएचएडीओएक्स1 एनकोव-19 (कोविशील्ड) की दूसरी खुराक से पहले एक लंबा अंतराल एंटीबॉडी टाइट्रेस को बढ़ा देता है. वहीं, सीएचएडीओएक्स1 एनकोव-19 की तीसरी खुराक एंटीबॉडी को उस स्तर तक पहुंचा देती है जो दूसरी खुराक के बाद उच्च प्रभावकारिता से संबद्ध होती है और टी-सेल रिस्पांस को भी बढ़ाती है.
ब्रिटेन में हुआ एक अन्य ट्रायल, जिसे ‘कोव-बूस्ट’ ट्रायल कहा जाता है, बताता है कि एस्ट्राजेनेका या फाइजर टीकों की दो खुराक के बाद टीकों की एक रेंज का नतीजा इम्यूनोजेनेसिटी (इम्यून रिस्पांस को सक्रिया करने की क्षमता) के तौर पर सामने आया है. लैंसेट में ही प्रकाशित इस अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि बूस्टर शॉट के तौर पर दिए गए अन्य टीकों की तरह एस्ट्राजेनेका की तीसरी खुराक भी इम्युनोजेनिक है.
एहतियाती खुराक देने का फैसला लेते समय केंद्र सरकार के पास जो वैज्ञानिक सबूत थे, उन पर पहले से ही सवाल उठाए जा रहे हैं.
दिल्ली स्थित सर गंगा राम अस्पताल में वस्कुलर सर्जन डॉ. अंबरीश सात्विक ने बुधवार को ट्वीट किया, ‘इस फैसले (पहले वाले टीके का शॉट ही देना है) के समर्थन का कोई आधार नहीं है. ओएक्स-एजेड (कोविशील्ड) एक्स3 पर कोव-बूस्ट ट्रायल का डाटा भरोसा बढ़ाने वाला नहीं है. देश में लोगों के लिए उपलब्ध विकल्पों में से कोवावैक्स बूस्टर के तौर पर सबसे बेहतर है. कोवावैक्स (सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा निर्मित) को 28 दिसंबर को भारत में ईयूए हासिल हो गया था.’
There is no data to back this decision. The COV-BOOST trial data on Ox-Az (Covishield) x 3 doesn’t inspire confidence. Of the options available to Indians, Covavax performs the best as a booster. Covavax (by the Serum Institute) received EUA in India on 28 Dec. https://t.co/MGDXSHb5So
— Ambarish Satwik (@AmbarishSatwik) January 5, 2022
‘6-13 महीने तक एंटीबॉडी सक्रिय रहने के मद्देनजर तीसरे शॉट के लिए 9 महीने का अंतराल रखा’
फिलहाल तो एहतियाती खुराक स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर और वरिष्ठ नागरिकों को दी जाएगी, जिन्हें दूसरा शॉट हासिल किए कम से कम 9 महीने पूरे हो गए हैं. यह प्रक्रिया 10 जनवरी से शुरू होगी. कोई भी व्यक्ति जिसने यह अपेक्षित अंतराल पूरा कर लिया है, उसे पंजीकृत मोबाइल नंबरों पर मैसेज भेजकर बताया जाएगा कि वे तीसरा शॉट ले सकते हैं.
यह पूछे जाने पर कि 9 महीने का यह अंतराल कैसे तय किया गया, आईसीएमआर के डॉ. पांडा ने कहा, ‘ऐसे कई अध्ययन हैं जो बताते हैं कि टीके या संक्रमण की वजह से हासिल एंटीबॉडी छह से 13 महीने के बीच ही रहती है. स्पष्ट तौर पर इम्यूनिटी के कई अन्य पहलू हैं जिन्हें मापा नहीं जा सकता है जैसे सेल-मीडिएटेड इम्यूनिटी और इम्यून मेमरी. एंटीबॉडी जीरो होने का मतलब यह कतई नहीं है कि कोई इम्यूनिटी नहीं है.’
स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल इसका कोई आंकलन नहीं हो पाया है कि कितने भारतीयों को वायरस के तीन इम्यून एक्सपोजर मिल चुके हैं—दो शॉट और एक संक्रमण. लेकिन उम्मीद है कि संख्या काफी ज्यादा है और इससे कोविड-19 के नए वैरिएंट ओमीक्रॉन के खिलाफ कुछ प्रतिरक्षा क्षमता हासिल होगी.
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