scorecardresearch
Wednesday, 24 April, 2024
होमहेल्थकोविड के कारण नर्सिंग कोर्स में उछाल, 2020-21 में BSC की 99% और डिप्लोमा की 91% सीटें भरीं

कोविड के कारण नर्सिंग कोर्स में उछाल, 2020-21 में BSC की 99% और डिप्लोमा की 91% सीटें भरीं

इंडियन नर्सिंग काउंसिल का डाटा दर्शाता है कि 2020-21 में पहली कोविड लहर के दौरान बीएससी नर्सिंग के लिए 99% और जनरल नर्सिंग और मिडवाइफरी डिप्लोमा के लिए 91% सीटें भर गई थीं.

Text Size:

नई दिल्ली: स्वास्थ्य सेवा में बेहद अहम अग्रणी भूमिका निभाने वाली नर्सें कोविड-19 महामारी के कारण सबसे ज्यादा बुरी तरह प्रभावित हुई हैं लेकिन ये तमाम मुश्किलें भी युवाओं को नर्सिंग कोर्स चुनने से नहीं रोक रही हैं.

इंडियन नर्सिंग काउंसिल (आईएनसी) का डाटा बताता है कि 2017-18 से 2020-21 के बीच बीएससी (नर्सिंग) सीटों की ऑक्यूपेंसी 70 फीसदी से बढ़कर 99 फीसदी हो गई, जबकि जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी (जीएनएम) डिप्लोमा के लिए भरने वाली सीटों का आंकड़ा 77 फीसदी प्रतिशत से बढ़कर 91 प्रतिशत हो गया.

1,936 कॉलेजों में 1,00,930 बीएससी (नर्सिंग) सीटें हैं. इसके लिए भरने वाली सीटों का आंकड़ा लगातार बढ़ते हुए 2018-19 में 83 फीसदी और 2019-20 में 92 प्रतिशत रहा और 2020-21 के उच्च स्तर पर पहुंच गई, जिस दौरान कोविड महामारी की पहली लहर चल रही थी.

वहीं 2,711 संस्थानों की 1,15,188 जीएनएम डिप्लोमा सीटों पर ऑक्यूपेंसी 2018-19 में 82 प्रतिशत और 2019-20 में 86 प्रतिशत तक रही.

हालांकि, भारत को नर्सों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि शीर्ष अस्पतालों में इनके नौकरी छोड़ने की दर 40 प्रतिशत तक है, क्योंकि अच्छा वेतन और काम करने की बेहतर स्थितियां नर्सों को विदेश जाने के प्रति बहुत ज्यादा आकृष्ट करती हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

हालांकि, इस बारे में तो कोई विश्वसनीय आंकड़ा नहीं है कि महामारी के दौरान कितनी नर्सों की मृत्यु हुई, लेकिन संसद के मौजूदा बजट सत्र के दौरान एक जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले 1,616 स्वास्थ्य कर्मियों के बीमा दावों का अब तक निपटारा किया जा चुका है.

‘सबसे बड़ा केंद्र, लेकिन संख्या के मामले में डब्ल्यूएचओ मानक से नीचे’

मणिपाल कॉलेज ऑफ नर्सिंग के डीन डॉ. जुडिथ एंजलिट्टा नोरोन्हा ने दिप्रिंट को बताया, ‘महामारी के बावजूद आवेदनों में कोई कमी नजर नहीं आई है. बल्कि संख्या बढ़ ही रही है क्योंकि विदेशों में भारतीय नर्सों की बहुत ज्यादा मांग है. हमारे पास 100 सीटों के लिए करीब 900 आवेदन आए हैं.’

नोरोन्हा ने कहा, ‘हमारे लगभग 95 प्रतिशत स्नातक विदेशों में काम करते हैं. उन्हें केवल देश में इसके लिए निर्धारित परीक्षाएं पास करने की जरूरत होती है. हालांकि, पीजी (स्नातकोत्तर) आवेदकों की संख्या थोड़ी कमी आई है क्योंकि तमाम लोग इसके लिए जरूरी कार्य अनुभव को पूरा नहीं कर पाए हैं. हमारे पास 25 सीटों के लिए करीब 40 आवेदन ही आए हैं.’

द ट्रेंड नर्सेस एसोसिएशन ऑफ इंडिया (टीएनएआई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रॉय के जॉर्ज का अनुमान है कि प्रतिष्ठित कॉलेजों को नर्सिंग सीटों के लिए मिलने वाले आवेदनों की संख्या आमतौर पर 10:1 के अनुपात में होती है. लेकिन निजी क्षेत्र में वेतन और काम करने की स्थितियां काफी खराब हैं, जबकि सरकारी क्षेत्र में नौकरियों की संख्या सीमित है.

जॉर्ज ने कहा, ‘भारत प्रशिक्षित नर्सों के सबसे बड़े केंद्र के तौर पर उभरा है, लेकिन प्रति 1,000 लोगों पर 1.7 नर्सों की हमारी उपलब्धता विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के चार मानकों में काफी निचले स्तर पर आती है.’

‘मरीजों की देखभाल का सबसे बड़ा सहारा’

एक प्रतिष्ठित प्राइवेट हॉस्पिटल चेन के एक वरिष्ठ नर्सिंग एक्जीक्यूटिव के मुताबिक, अस्पताल में नर्सों के नौकरी छोड़ने की वार्षिक औसत दर लगभग 40 प्रतिशत है.

एक्जीक्यूटिव के मुताबिक, कई युवा पुरुष और महिलाएं विदेश में काम करने की आकांक्षा के साथ नर्सिंग कॉलेजों में दाखिला लेते हैं और जरूरी कार्य अनुभव हासिल करने के लिए ही देश के अस्पतालों में अपनी सेवाएं देते हैं.

स्वास्थ्य सेवा उद्योग के अनुमानों के मुताबिक देश में नर्सों की जरूरत की तुलना में इनकी संख्या करीब 35 लाख कम हैं.

इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल की ग्रुप डायरेक्टर (नर्सिंग), कैप्टन (डॉ,) उषा बनर्जी कहती हैं, ‘नर्सिंग स्टाफ की कमी दुनियाभर के लिए एक संकट बनी हुई है. वैश्विक कमी उन तमाम कारणों में से है, जिनकी वजह से मांग और आपूर्ति का अनुपात प्रभावित हुआ है.’

बनर्जी ने कहा, ‘यह दुखद है कि हम भारत में बेड और बुनियादी ढांचे में आए बदलावों के लिहाज से आवश्यक संख्या में नर्सों को तैयार और ट्रेंड नहीं करते हैं. इसमें किसी तरह का कोई आनुपातिक साम्य नहीं है. नर्सों को अपने देश में ही काम करने को प्रेरित करने के लिए शायद पर्याप्त निवेश ही नहीं किया गया है. हमें यह समझने की जरूरत है कि मरीजों देखभाल के मामले में वे अस्पताल की बैकबोन होती हैं.’

आईएनसी के अध्यक्ष डॉ. टी दिलीप कुमार भी इस बात से सहमत हैं कि सरकारी और निजी अस्पतालों में वेतन समानता की कमी जैसे कई ऐसे मुद्दे हैं जिनका नर्सों को सामना करना पड़ता है.

सेवारत नर्सों का कोई विश्वसनीय रिकॉर्ड नहीं

इसके अलावा, भारत में मौजूदा समय में कार्यरत नर्सों की कुल संख्या का कोई विश्वसनीय रिकॉर्ड न होना भी एक समस्या है. नर्सें स्टेट नर्सिंग काउंसिल में पंजीकरण कराती हैं, लेकिन बाद में विदेश चले जाने पर उनके लिए इसकी सूचना देने की कोई बाध्यता नहीं है.

कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम जानते हैं कि 1947 के बाद से देश में पंजीकृत नर्सों का आंकड़ा 23 लाख है. लेकिन उनमें से कितनी अभी देश में सेवारत है, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. इनकी मृत्यु हो गई या इन्होंने देश छोड़ दिया है, इसका हमारे पास कोई रिकॉर्ड नहीं रहता.’

उन्होंने आगे कहा कि यही वजह है कि आईएनसी राष्ट्रव्यापी नर्सिंग पंजीकरण ट्रैकिंग सिस्टम (एनआरटीएस) पर जोर दे रही है.

उन्होंने कहा, ‘मौजूदा समय में हमारे पास करीब दस लाख नर्सों का अपडेटेड डेटा है, जो हमारे अनुमान के मुताबिक देश में इनकी कुल वर्कफोर्स का लगभग 65 प्रतिशत है. हमें अभी कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों से डेटा मिलना बाकी है. एक बार एनआरटीएस पूरा हो जाने के बाद ही हम यह बेहतर ढंग से यह समझ पाएंगे कि वास्तव में हमारी स्थिति क्या है.’


यह भी पढ़ें-पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच टकराव का विवाद पहुंचा अदालत, धनखड़ को हटाने के लिए याचिका


 

share & View comments