नई दिल्ली: गुजरात स्थित कंपनी जायडस कैडिला ने डीएनए आधारित कोविड वैक्सीन जायकोव-डी तैयार की है, मंजूरी मिलने के बाद ये दुनिया की पहली डीएनए आधारित वैक्सीन होगी. कंपनी ने भारत सरकार से कहा कि अगले 10-12 दिनों में वो इसके आपातकालीन मंजूरी लेने के लिए आवेदन कर सकती है.
डीएनए वैक्सीन शरीर में वायरस के उस हिस्से के जेनेटिक कोड को वहन करती है जो शरीर की इम्यून सिस्टम को ट्रिगर करता है. होस्ट सेल की अपनी मशीनरी के जरिए एंटिजन को पैदा किया जाता है और इम्यून सिस्टम को बढ़ाया जाता है, इस तरह से मैसेज डिकोड होता है. इस तरह से ये सुनिश्चित होता है कि जब संक्रमण होगा और शरीर में सार्स-कोव2 आएगा तो इम्यून सिस्टम पहले से ही इसका मुकाबला करने के लिए तैयार होगा.
जायकोव-डी प्लासमिड के जरिए ऐसा करता है- ये डीएनए का एक हिस्सा है जो सेल के न्यूकलियस के बाहर रह सकता है. जायकोव-डी और अमेरिकी वैक्सीन कंपनी फाइज़र और मोडर्ना इसी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं जिसे ‘न्यूकलिक एसिड वैक्सीन्स’ कहा जाता है. दोनों में फर्क इतना है कि दूसरे में मेसेंजर आरएनए का इस्तेमाल होता है ताकि शरीर में संदेश पहुंच सके.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, जो वैक्सीन निर्माताओं के साथ बातचीत में शामिल हैं, उन्होंने कहा, ‘जायडस कैडिला ने हमें बताया है कि वे अगले 10-12 दिनों के भीतर आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण के लिए आवेदन करेंगे, हम संभावित रूप से एक और स्वदेशी वैक्सीन की उम्मीद कर रहे हैं. हालांकि, अभी तक वैक्सीन की कीमत के बारे में कोई बातचीत नहीं हुई है क्योंकि कंपनी अभी भी इस पर काम कर रही है. यह एक नई तकनीक है इसलिए हमें इसे ध्यान में रखना होगा.’
हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि अगर जायडस को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) से अपेक्षित मंजूरी मिल जाती है, तो कंपनी की निर्माण क्षमता ऐसी नहीं है कि यह राष्ट्रीय कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम में बड़ा बदलाव ला देगी, कम से कम मात्रा के मामले में. सरकार का अनुमान है कि कंपनी अगस्त और दिसंबर 2021 के बीच लगभग 5 करोड़ खुराक पर बातचीत कर सकती है.
चूंकि जायकोव-डी यह एक स्वदेशी वैक्सीन है- स्पुतनिक के विपरीत जिसकी पहली कुछ मिलियन खुराक देश में आयात की गई हैं- इसे भारत सरकार द्वारा आवश्यक मंजूरी प्राप्त होने के तुरंत बाद खरीदा जा सकता है. अधिकारी ने बताया, ‘यह एक स्वदेशी वैक्सीन है, इसलिए जब भी यह उपलब्ध होगा, भारत सरकार 75 प्रतिशत स्टॉक की खरीद करेगी. हम स्पुतनिक के लिए भी ऐसा करने के लिए तैयार हैं लेकिन बात यह है कि वैक्सीन देश में बनी होनी चाहिए.’
दिप्रिंट ने जायडस को ई-मेल भेजा है. जब कंपनी की तरफ से प्रतिक्रिया आएगी तो इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
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वैक्सीन कंपनियों के लिए क्षतिपूर्ति पर बात अभी जारी
जायडस वैक्सीन का जहां बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है, वहीं नरेंद्र मोदी सरकार अभी भी वैक्सीन कंपनियों के लिए फाइजर और मॉडर्ना की मांग के अनुसार क्षतिपूर्ति के सवाल पर विचार कर रही है. हालांकि इस पर अभी अंतिम निर्णय का इंतजार है लेकिन शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि इस पर सहमति है.
अधिकारी ने बताया, ‘हम कई पहलुओं को देख रहे हैं, नुकसान की भरपाई, गंभीर रीएक्शन के मामले में लोगों के इलाज जैसे कई मुद्दे हैं. इन पर अभी बात चल रही है. लेकिन हमारी राय है कि अगर विदेशी कंपनियों को ऐसी सुविधा दी जानी चाहिए, तो ये भारतीय कंपनियों को भी मिलनी चाहिए.’
उन्होंने यह भी कहा कि कोवैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन बीएसएल III सुविधाओं की आवश्यकता और तथ्य यह है कि ये सिर्फ कुछ कंपनियों के पास ही है, जो वास्तव में एक बाधा है. उन्होंने कहा, ‘बायोटेक ने अंकलेश्वर में रेबीज़ वैक्सीन का उत्पादन रोक कर वहां भी कोवैक्सीन बनाना शुरू कर दिया है. हम चेंगलपट्टू में भी वैक्सीन उत्पादन के बारे में बात कर रहे हैं.’
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