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Thursday, 21 November, 2024
होमहेल्थकोरोना से बुरी तरह प्रभावित UP के इन दो जिलों में टेस्ट कराना सबसे बड़ी चुनौती

कोरोना से बुरी तरह प्रभावित UP के इन दो जिलों में टेस्ट कराना सबसे बड़ी चुनौती

उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार, यहां हर दिन 2.25 लाख से 2.35 लाख परीक्षण किए जा रहे हैं लेकिन राज्य में टेस्ट/मिलियन दर राष्ट्रीय औसत से नीचे है.

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वाराणसी/लखनऊ: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत वाराणसी स्थित एक लैब में टेक्नीशियन 28 वर्षीय सौरभ कुमार सिंह एकदम घबराए हुए हैं. वह अभी-अभी कोविड-19 से उबरे हैं और फिर से काम पर लौटना है. वह जिस दिन बीमार पड़े, 6 अप्रैल को, उन्होंने शहर से 50 घरों से सैंपल लिए थे. सौरभ सिंह बताते हैं कि यह वो समय था जब लोग टेस्ट कराने को तैयार नहीं हो रहे थे.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन अब मेरे सहयोगी मुझे हर दिन बताते हैं कि वे (लोग) बेसब्री से टेस्ट कराना चाहते हैं.’ साथ ही कहा कि राज्य भर के उनके कई सहयोगी कोविड-19 पॉजिटिव आ चुके हैं.

एक अन्य टेक्नीशियन, जो निजी लैब की चेन एसआरएल के साथ काम करता है, ने कहा कि वह एकदम थक चुका है. उसने बताया, ‘कुछ मरीजों की हालत गंभीर है. उनमें से कई तो अपने सैंपल टेस्ट के सौंपने के कुछ ही घंटों बाद इस स्थिति में आ गए. उनकी रिपोर्ट कई दिनों के इंतजार के बाद आती है.’

24 से 28 अप्रैल के बीच कोविड से 10 सर्वाधिक प्रभावित दस राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश में प्रतिदिन औसतन 33,896 नए मामले दर्ज किए गए. इस अवधि में इसका पॉजिटिविटी रेट 16.9 प्रतिशत बना हुआ था.

राज्य सरकार के अनुसार, यहां हर दिन 2.25 लाख से 2.35 लाख परीक्षण किए जा रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में टेस्ट/मिलियन दर राष्ट्रीय औसत से नीचे है.

इसके अलावा, सबसे ज्यादा सक्रिय मामलों के साथ इसके दो जिलों वाराणसी, जो प्रधानमंत्री मोदी का लोकसभा क्षेत्र है, और लखनऊ, जो राज्य की राजधानी है, में स्थिति एकदम अफरा-तफरी वाली हो गई है.

टेस्ट कराने के लिए लोगों की भीड़ है और राज्य का बुनियादी ढांचा स्थिति को संभालने के लिए कड़ा संघर्ष करता प्रतीत होता है. न केवल टेस्ट कराने में कुछ दिन लग सकते हैं बल्कि नतीजे के लिए भी कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता है.

वाराणसी में 27 अप्रैल को पॉजिटिविटी रेट 40 प्रतिशत था और राष्ट्रीय औसत 21 प्रतिशत की तुलना में पिछले एक हफ्ते में 30 प्रतिशत से अधिक रहा है.

इस बीच, लखनऊ में 12 अप्रैल के बाद से टेस्टिंग का कोई आंकड़ा जारी नहीं किया गया है और अधिकारी इसकी वजह मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) के कार्यालय में कोविड प्रकोप होने को बता रहे हैं.

वाराणसी और लखनऊ दोनों ही जगह कुछ निजी लैब ने आरोप लगाया है कि उन्हें टेस्ट की गति धीमी रखने को कहा गया है, साथ ही उन्होंने किट की कमी होने का दावा भी किया.

वाराणसी के सीएमओ डॉ. एस.एस. कन्नौजिया ने इन आरोपों से इनकार किया कि निजी लैब को टेस्ट घटाने के लिए कहा गया है लेकिन साथ ही स्वीकारा कि वे टेस्ट की मांग पूरी करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं.

दिप्रिंट ने लखनऊ के सीएमओ डॉ. संजय भटनागर से इस मामले में प्रतिक्रिया लेने के लिए संपर्क साधा लेकिन कॉल का कोई जवाब नहीं दिया गया. लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट अभिषेक प्रकाश के स्टाफ ने कहा कि वह एक बैठक में व्यस्त हैं और बात नहीं कर पाएंगे.

28 अप्रैल को यूपी के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने दिप्रिंट को बताया था कि राज्य में टेस्ट की गति बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं.

उन्होंने कहा था, ‘ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधन अपर्याप्त है लेकिन हम टेस्ट से संबंधित अपना बुनियादी ढांचा सुधार रहे हैं. हमने पहले ही 40 आरटी-पीसीआर मशीनों के ऑर्डर दे दिए हैं. ये 10 मई तक आ जाएंगी.


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वाराणसी में स्थिति

दिप्रिंट को पिछले हफ्ते दिए एक इंटरव्यू में यूपी के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने कहा था कि राज्य औसतन हर दिन 2,25,000 से 2,35,000 के बीच टेस्ट करता है जिनमें 45 प्रतिशत आरटी-पीसीआर के जरिये होते हैं.

दिप्रिंट की तरफ से हासिल किए गए स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, आरटी-पीसीआर टेस्ट— जिसे जल्द नतीजे देने वाले रैपिड एंटीजन टेस्ट (आरएटी) की तुलना में अधिक सटीक माना जाता है— के आंकड़ों में पिछले हफ्ते खासी कमी आई है.

जहां 20 अप्रैल को 3,241 आरटी-पीसीआर टेस्ट किए गए थे वहीं 21 अप्रैल को ऐसे 4,516 टेस्ट हुए थे. 22 अप्रैल को 3,782, 23 अप्रैल को 3,690, 24 अप्रैल को 3,860, 25 अप्रैल को 2,323, 26 अप्रैल को 3,067 और 27 को 2,817 टेस्ट किए गए. इस बीच, 21 अप्रैल को 2,202 आरएटी, 22 अप्रैल को 1,711, 23 अप्रैल को 2,162, 24 अप्रैल को 1,803, 25 अप्रैल को 1,493, 26 अप्रैल को 1,522 और 27 अप्रैल को 1,479 रैपिड एंटीजेन टेस्ट हुए.

इन तारीखों में सामने आए नए मामले इस प्रकार थे— 20 अप्रैल को 1,637, 21 अप्रैल को 2,562, 22 अप्रैल को 1,815, 23 अप्रैल को 1,485, 24 अप्रैल को 2,796, 25 अप्रैल को 2,057, 26 अप्रैल को 1,838 और 27 अप्रैल को 1,752 केस.

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, ईएसआईसी, एसएसपीजी स्थित स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और ग्रामीण ब्लॉकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी सरकारी लैब हैं. इसके अलावा, प्रशासन ने अन्य जगहों के अलावा रेलवे स्टेशनों और हवाई अड्डे पर भी टेस्टिंग बूथ स्थापित किए हैं.

जिले के निजी अस्पतालों में हेरिटेज, मेरिडियन अस्पताल, ओंकक्वेस्ट, एपेक्स, एसआरएल और लाल पैथ जैसी लैब हैं. इनमें से केवल लाल पैथ लैब्स को घर से सैंपल लेने की अनुमति दी गई है. अन्य प्रयोगशालाओं में से किसी ने भी 17 से 27 अप्रैल के बाद से कोविड का टेस्ट नहीं किया है, केवल एसआरएल और लाल पैथ लैब को छोड़कर. जिले के स्वास्थ्य आंकड़ों से दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है. एसआरएल ने 24 अप्रैल को 108 सैंपल लोगों के घरों से एकत्र किए थे.

डॉ. लाल के 30 केंद्रों में से केवल सात घरों से सैंपल एकत्र करने के लिए अधिकृत हैं.

लैब से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि ‘टेस्टिंग किट की कमी तो है ही और इसके अलावा, प्रशासन की तरफ से हमसे कम टेस्ट करने को कहा जा रहा है.’

अधिकारी ने कहा, ‘इसलिए, हम इस समय कोविड टेस्ट ज्यादा से ज्यादा नहीं कर सकते हैं.’

राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने भी टेस्टिंग किट में कमी की बात को स्वीकार किया. एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘अभी हमारे पास टेस्टिंग किट की कमी है और ज्यादातर लैब टेक्नीशियन कोविड पॉजिटिव हैं. हमारे पास पर्याप्त संसाधन भी नहीं हैं.’

हालांकि, वाराणसी के सीएमओ डॉ. एस.एस. कन्नौजिया ने इस आरोप को बेबुनियाद बताया कि प्रशासन निजी लैब को कम टेस्ट करने को कह रहा है. उन्होंने कहा, ‘हमारे पास टेस्ट संबंधी सुविधाओं की कमी है लेकिन हम अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं.’


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लखनऊ में भी संकट

लखनऊ में भी घरों से कोविड का सैंपल एकत्र किया जाना दुर्लभ ही है.

जिला प्रशासन ने लखनऊ में 24 निजी लैब की एक सूची जारी की थी जहां टेस्ट कराया जा सकता है. दिप्रिंट ने सभी लैब से संपर्क की कोशिश की. उनमें से 16 ने फोन नहीं उठाया. जिन 8 लैब की तरफ से फोन उठाया भी गया, उनका कहना था कि घर से सैंपल लेने के लिए किसी को नहीं भेज सकते.

एक निजी फैसिलिटी पार्क डायग्नोस्टिक सेंटर के प्रबंधक विनय मिश्रा ने कहा, ‘हम अपनी लैब में आरटी-पीसीआर टेस्ट कर रहे हैं लेकिन सैंपल लेने के लिए किसी के घर पर अपना कर्मचारी नहीं भेज रहे हैं. इसके पीछे कारण यह है कि हम नहीं चाहते कि हमारे कर्मचारी किसी भी तरह संक्रमित हों. हमारे पास 15 सदस्यों का स्टाफ है. उनके परिवार के कुछ सदस्य पहले से ही कोरोनावायरस से पीड़ित हैं, इसलिए हम जोखिम उठाकर उन्हें फील्ड में नहीं भेज सकते.’

न्यू लखनऊ डायग्नोस्टिक सेंटर के कार्यकारी प्रबंधक नूर आलम ने बताया कि पहले वह घर से सैंपल लेने के लिए स्टाफ भेजते थे लेकिन अब ‘हम ऐसा कम ही कर रहे हैं क्योंकि हमें अपने लैब में स्टाफ की जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘हमारे पास संसाधन सीमित हैं, इसलिए इसके मुताबिक ही काम करना पड़ता है.’

दोनों लैब ने बताया कि वह एक दिन में 80 से 150 टेस्ट करते हैं.

लखनऊ स्थित एक निजी लैब के एक एक्जीक्यूटिव ने कहा कि निजी लैब ने अप्रैल के दूसरे और तीसरे हफ्ते में प्रशासन के आदेश पर टेस्ट बंद कर दिया था.

उन्होंने कहा, ‘शायद वे मीडिया में इसे स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन यह सच है. अब, आम लोगों और सोशल मीडिया के दबाव के बाद उन्होंने निजी लैब को टेस्ट फिर से शुरू करने का आदेश दिया है लेकिन निजी लैब में इतनी क्षमता नहीं है कि वे बहुत ज्यादा टेस्ट कर सकें.’

सरकारी सहायता प्राप्त तीन पैथोलॉजी लैब— केजीएमयू, एसजीपीजीआईएमएस और आरएमएलआईएमएस में रिपोर्ट आने में तीन से पांच दिन का समय लगता है. स्वास्थ्य विभाग के एक सूत्र ने कहा, ‘तीन सरकारी सहायता प्राप्त लैब हर दिन 25,000 आरटी-पीसीआर टेस्ट कर सकती हैं लेकिन चूंकि रोजाना एकत्र किए जाने वाले सैंपल की संख्या 30,000 से अधिक है इसलिए एक बड़ा बैकलॉग बन जाता है और यही देरी की वजह बनता है.’

जमीन स्तर पर इसका असर यह होता है कि लोगों को टेस्ट कराने में संकट का सामना करना पड़ता है.

लखनऊ के पारा क्षेत्र की रहने वाली बबिता सिंह ने कहा कि बुखार और बदन दर्द के बाद उन्हें टेस्ट कराने के लिए काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा.

उन्होंने बताया, ‘मैंने कोविड टेस्ट के लिए घर से नमूने लेने वाली सेवा तलाशी लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. फिर मैं राम मनोहर लोहिया अस्पताल गई जहां टेस्ट चल रहे थे लेकिन इसके लिए एक लंबी कतार लगी थी, इसलिए मैं घर लौट आई.’

उन्होंने आगे बताया, ‘इन कतारों का दृश्य तो एकदम डरावना था. दो दिन बाद मैं किसी तरह एक निजी अस्पताल में टेस्ट कराने में सफल रही लेकिन आरटी-पीसीआर नतीजे आने में 48 घंटे लग गए.’

सरकारी नियम बताते हैं कि आरटी-पीसीआर नतीजे आदर्श रूप से 24 घंटे के भीतर आ जाने चाहिए और ज्यादा से ज्यादा 48 घंटे का समय लगना चाहिए.

अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ कोविड पॉजिटिव निकली सरोजिनी नगर निवासी आशा तिवारी कहती हैं, ‘सरकारी अस्पताल आरटी-पीसीआर टेस्ट के नतीजे देने में 48-72 घंटे ले रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हमारे सामने एक और जोखिम यह रहा कि लखनऊ के सरकारी अस्पताल, जहां हम गए थे, में लंबी कतारें लगी हुई थीं. लेकिन उस समय हमारे क्षेत्र में टेस्ट करने वाली कोई निजी लैब नहीं थी. इसलिए हमने एक सोर्स को तलाशा जिसने एक सरकारी अस्पताल में टेस्ट कराने में हमारी मदद की.’


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‘टेस्ट बढ़ने चाहिए’

कोविड-19 का संक्रमण रोकने में इसके टेस्ट की अहम भूमिका है क्योंकि इससे पीड़ित मरीजों की पहचान और उन्हें आइसोलेट करने में मदद मिलती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 अप्रैल को एक संबोधन में मुख्यमंत्रियों को ‘टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट’ का ही मंत्र दिया था.

सितंबर 2020 में अमेरिकी सरकार के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने लिखा था, ‘चूंकि ऐसा माना जाता है कि सभी सार्स-कोव-2 संक्रमणों में से लगभग आधे ऐसे लोगों द्वारा फैलाए गए होते हैं जिनमें कोई लक्षण नहीं दिखता है. ऐसे में अगर समय रहते टेस्ट के जरिये प्रिसिम्पटोमैटिक और एसिम्पटोमैटिक लोगों की पहचान हो जाए तो इसकी महामारी को रोकने में अहम भूमिका हो सकती है.’

यूपी सरकार में पूर्व सीएमओ रहे डॉ. ए.के. शुक्ला का कहना है कि निजी लैब में रोजाना 80-100 सैंपल की जांच की दर बहुत कम है, उन्होंने कहा, ‘टेस्टिंग न केवल आंकड़ों बल्कि वास्तविकता में भी बढ़नी चाहिए. ग्राउंड रिपोर्ट बहुत जरूरी है. निजी लैब को टेस्ट बढ़ाने चाहिए. 80 से 100 नमूने की जांच बहुत कम हैं.’

(मौसमी दासगुप्ता के इनपुट्स के साथ)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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