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Wednesday, 24 April, 2024
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शाहीनबाग की यह दुकान दिल्ली के बेहाल मरीजों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कर रही है

ऑक्सीजन की तलाश में मारे-मारे फिर रहे तमाम लोग दिल्ली के शाहीनबाग स्थित एसी मरम्मत की एक दुकान वसीम गैसेज पर पहुंच रहे हैं, क्योंकि अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं है.

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नई दिल्ली: दिन का कोई भी समय हो दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के शाहीनबाग में एयर कंडीशनर के मरम्मत की एक छोटी सी दुकान वसीम गैसेज के बाहर शहर के विभिन्न हिस्सों से आए लोगों की लंबी कतार लगी रहती है. ये सब यहां पर ऑक्सीजन मिलने की उम्मीद में जुटे हैं.

चूंकि इस महीने महामारी की दूसरी लहर में कोविड मामले तेजी से बढ़ जाने के कारण राष्ट्रीय राजधानी मेडिकल ऑक्सीजन की जबर्दस्त कमी से जूझ रही है, ऐसे में अपने प्रियजनों को बचाने की कोशिश में जुटे लोगों के लिए वसीम गैसेज आशा की किरण बनकर उभरी है.

दुकान के मालिक 30 वर्षीय वसीम मलिक ने मंगलवार को दिप्रिंट को बताया, ‘शाहीनबाग में हमारी एसी मरम्मत की तीन दुकानें हैं. गर्मियों के दौरान हम अपनी एक दुकान वसीम गैसेज में ऑक्सीजन और नाइट्रोजन स्टोर करते हैं, क्योंकि एसी मरम्मत और सर्विस करने के दौरान टेक्नीशियनों को इसकी जरूरत पड़ती है. हम सालों से बदरपुर स्थित मोहन सहकारी औद्योगिक क्षेत्र से गैसों की सप्लाई ले रहे हैं.’

वसीम ने पिछले साल देश में महामारी के प्रकोप के दौरान से ही आसपास के मरीजों को मेडिकल ऑक्सीजन मुहैया कराना शुरू कर दिया था. उन्होंने बताया, ‘लेकिन तब इसके लिए ज्यादा मांग नहीं थी. इस साल तो हर दिन हजारों लोग आ रहे हैं. ग्राहकों की संख्या खासकर तबसे और भी ज्यादा बढ़ गई जब पड़ोस के कुछ लड़कों ने पिछले हफ्ते ट्विटर पर हमारी दुकान की तस्वीर पोस्ट कर दी. लेकिन, दुर्भाग्यवश अब हमारे पास भी सबको आपूर्ति करने लायक ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हो पाती है.’

वसीम प्रत्येक रीफिल के लिए 100 से 130 रुपये लेते है, जो आमतौर पर अस्पतालों में वसूल की जाने वाली कीमत के मुकाबले बहुत कम है. वह उन लोगों को मुफ्त ऑक्सीजन भी उपलब्ध करा रहे हैं जो इसके लिए भुगतान करने में अक्षम हैं.

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ऑक्सीजन संयंत्रों पर दबाव बढ़ने के साथ वसीम के मिलने वाली ऑक्सीजन की आपूर्ति भी प्रभावित हुई है. वह और उसका भाई आपूर्ति के लिए बदरपुर स्थित संयंत्र के बाहर लंबा इंतजार भी करते हैं. लेकिन उन्हें जो ऑक्सीजन मिलती है, वह कुछ ही घंटों में खत्म हो जाती है. सबसे मुश्किल काम जो उन्हें करना पड़ता है, वो यह है दुकान पर आने वालों को खाली हाथ लौटाना.

वसीम की दुकान पिछले सप्ताह सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी जब यूजर्स ने इसके कांटैक्ट नंबर को ट्वीट करना शुरू कर दिया था, और इसे साझा करते हुए बताया था कि इस दुकान में ऑक्सीजन रीफिल की सुविधा मिल रही है जबकि अस्पताल में मेडिकल ऑक्सीजन की कमी हो गई है.

केंद्र ने मंगलवार को राजधानी में ऑक्सीजन को लेकर अफरा-तफरी की स्थिति के लिए केजरीवाल सरकार की खासी खिंचाई की थी और कहा था कि अगर सरकार स्थिति नहीं संभाल पाती है तो केंद्र सरकार गैस रीफिलिंग इकाइयों को अपने कब्जे में ले लेगी.

27 अप्रैल तक दिल्ली में 15,009 मौतों और 9,58,792 रिकवरी के साथ कुल 10,72,065 मामले दर्ज किए जा चुके हैं.


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‘लोग हमें बेसब्री से कॉल करते हैं’

पिछले साल जहां शाहीनबाग सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) विरोधी प्रदर्शन का पर्याय बन गया था, वहीं इस साल ये वसीम की दुकान है जिसने इस क्षेत्र पर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है, कम से कम दिल्ली में रहने वालों का तो किया ही है.

अपनी दुकान की तस्वीरें वायरल होने के बाद से वसीम और उसका भाई जुबैर कसार चौबीसों घंटे बारी-बारी से सिलेंडर भरने के काम में जुटे रहते हैं—अगर एक दिन में काम करता है, तो दूसरा रात में करता है.

वसीम ने बताया, ‘उस समय हम हर दिन एक हजार से अधिक सिलेंडर भरते थे. लेकिन अब हम रोजाना 300-400 सिलेंडर ही भर पाते हैं, क्योंकि बदरपुर स्थित प्लांट के बाहर भी लंबी कतारें लगी रहती हैं और हम केवल इतनी ही ऑक्सीजन का प्रबंध कर पा रहे हैं, वह भी आठ-दस घंटे कतार में लगने के बाद.’

शहर में ऑक्सीजन की मांग बढ़ने के साथ वसीम गैसेज को भी अब दिन में केवल एक बार सिलेंडर रीफिल करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. उन्होंने बताया, ‘लोग ऑक्सीजन की मांग करते हुए लगातार बेसब्री से हमें फोन करते रहते हैं लेकिन हम केवल सुबह ही इसे मुहैया करा सकते हैं, क्योंकि संयंत्र से आपूर्ति हासिल करना भी अब काफी मुश्किल हो गया है.’

पिछले दो दिन से वसीम के लिए बदरपुर औद्योगिक क्षेत्र में लगभग 140 लीटर क्षमता वाले अपने 25 जंबो सिलेंडर को फिर से भराना मुश्किल हो गया है.

उन्होंने बताया, ‘वहां लंबी कतारें लगी हैं. हम वर्षों से वहां से गैस की आपूर्ति हासिल कर रहे हैं इसलिए शुरू में तो हमारे लिए इसे हासिल करते रहना आसान था. जब ऑक्सीजन उपलब्ध होती थी तो प्लांट के लोग हमें फोन करके बता देते थे, और हम एक टेम्पो ट्रक लेकर इसे ले आते थे. लेकिन अब इस संयंत्र भी लंबी कतारें लग रही हैं. दिल्ली में सभी औद्योगिक एस्टेट में लोग ऑक्सीजन की तलाश में पहुंच रहे हैं, यहां तक कि अस्पताल भी लोगों को अपना सिलेंडर लेने को कह रहे हैं. ऐसे में हमें भी सीमित मात्रा में सप्लाई मिल पा रही है.’

वसीम की दुकान अब सुबह 9 बजे खुलती है और स्टॉक रहने तक सिलेंडर रीफिल करती है. पिछले तीन-चार दिनों से उनके पास दो घंटे से भी कम समय में ऑक्सीजन खत्म हो जाती है. वसीम और उनका भाई जहां प्लांट में जाकर फिर से रीफिल की उम्मीद में लंबी कतारों में खड़े रहते हैं, वहीं उनकी दुकान पर ऑक्सीजन की तलाश में मरीजों के परिजनों की भीड़ जुटी रहती है.

वसीम की दुकान के बाहर इंतजार कर रही लाजपतनगर निवासी लतिका शर्मा ने बताया, ‘मैं सुबह 7 बजे से रीफिल कराने की कोशिश में हूं. मेरे पास तो कोई सिलेंडर भी नहीं था, लेकिन मुझे गुरुग्राम निवासी एक दोस्त से यह मिल गया और अब मैं यहां इंतजार कर रही हूं क्योंकि मैंने सुना कि यह दुकान खुली है. लेकिन यहां भी ऑक्सीजन खत्म हो गई है.’

जब उनका स्टॉक खत्म हो जाता है तो दुकान चलाने वाले इंतजार कर रहे ग्राहकों को अन्य औद्योगिक संयंत्रों पर जाकर कोशिश करने को कहते हैं.

जामिया नगर निवासी शोएब ने बताया, ‘मैं सरिता विहार में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार के लिए सिलेंडर रीफिल करा पाने की उम्मीद के साथ यहां (वसीम की दुकान पर) आया था, लेकिन यहां पर भी ऑक्सीजन नहीं है, इसलिए वे मुझसे नोएडा या नारायणा जाकर कोशिश करने को कह रहे हैं.’

वसीम ऑक्सीजन पाने की कोशिश में लगे ग्राहकों से फोन करके पता करने को कहते हैं, साथ ही व्हाट्सएप डिस्प्ले इमेज पर नजर रखने को भी कहते हैं, जिसका उपयोग वह यह जानकारी देने के लिए करते हैं कि ऑक्सीजन की आपूर्ति उपलब्ध है या नहीं. पिछले कुछ दिनों में वसीम को जो काम सबसे मुश्किल लग रहा है, वो ये कि बेसब्री से मदद का इंतजार कर रहे लोगों को इनकार करना.

उन्होंने कहा, ‘लोग समझने को तैयार नहीं हैं. वे अक्सर ऑक्सीजन की मांग करते हैं और फोन पर रोना शुरू कर देते हैं (जब बताया जाता है कि यह उपलब्ध नहीं है). हम समझते हैं कि वे हताश हो चुके हैं लेकिन क्या करें हमारे हाथ भी बंधे हुए हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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