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Saturday, 4 May, 2024
होमदेशMP के अस्पताल ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे, CM का पिछले साल किया गया प्लांट का वादा धूल-पत्थर फांक रहा

MP के अस्पताल ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे, CM का पिछले साल किया गया प्लांट का वादा धूल-पत्थर फांक रहा

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अक्टूबर 2020 में यूपी की निजी कंपनी के 150 करोड़ रुपये के ऑक्सीजन प्लांट की आधारशिला रखी थी. उन्होंने वादा किया था कि यह प्लांट छह महीने में चालू हो जाएगा.

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होशंगाबाद: मध्य प्रदेश में अपना कोई ऑक्सीजन प्लांट नहीं है. कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान जब केस लोड हर दिन 13,000 से अधिक हो चुका है, यह राज्य गुजरात, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से ऑक्सीजन सिलेंडर आयात कर रहा है. हालांकि, कोविड मरीजों के लिए ऑक्सीजन की एक बड़ी जरूरत पूरी हो सकती थी यदि होशंगाबाद स्थित आईनॉक्स ऑक्सीजन प्लांट के निर्माण का काम सही ढंग से कर लिया गया होता.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अक्टूबर 2020 में यूपी की निजी कंपनी के 150 करोड़ रुपये के ऑक्सीजन प्लांट की आधारशिला रखी थी. उन्होंने वादा किया था कि यह प्लांट छह महीने में चालू हो जाएगा और राज्य को किसी भी तरह की कमी का सामना नहीं करना पड़ेगा.

राज्य में स्थापित की जाने वाली एकमात्र ऐसी फैसिलिटी में प्रतिदिन 150 मीट्रिक टन (एमटी) तरल ऑक्सीजन और 54 मीट्रिक टन तरल नाइट्रोजन का उत्पादन का प्रस्ताव है.

लेकिन आज का हाल यह है कि फैक्ट्री की जमीन लोह की बाड़ से घिरी है और इधर-उधर रेत-पत्थरों के ढेर के बीच लोहे के कुछ रॉड आदि बिखरे नजर आते हैं.

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मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन आयुक्त छवि भारद्वाज ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य को हर दिन लगभग 390 से 400 मीट्रिक टन तरल ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है. उन्होंने बताया, ‘यह आती है और तुरंत खत्म हो जाती है. यह हर रोज एक जंग लड़ने जैसा है. ऑक्सीजन की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई है. मध्य प्रदेश का अपना संयंत्र नहीं है.’

मंगलवार को राज्य में कोविड के कारण 98 लोगों की मौत हुई है.


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सोने से ज्यादा कीमती है ऑक्सीजन

इंदौर स्थित सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के मुख्य द्वार के पास ही पुराने इस्तेमाल किए जा चुके ऑक्सीजन सिलेंडर कतारबद्ध खड़े किए गए हैं, जहां डॉक्टर नई आपूर्ति का इंतजार कर रहे है.

लेकिन कुछ डॉक्टरों ने इसे अधिक उपयुक्त ढंग से इस्तेमाल करने का तरीका खोज निकाला है ताकि वे ज्यादा से ज्यादा मरीजों का इलाज कर सकें. इंदौर स्थित श्री अरबिंदो अस्पताल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. रवि दोसी ने बताया कि वे ऑक्सीजन का ऑडिट कैसे करते हैं.

दोसी ने कहा, ‘ऑक्सीजन जीवन रक्षक है. आप इसे उस व्यक्ति को देने से मना नहीं कर सकते जिसे इसकी आवश्यकता है. इसलिए हमारे पास ऑक्सीजन ऑडिट करने की सख्त नीति है. हम 10 लीटर से शुरू करते हैं, लेकिन अगर मरीज की स्थिति में सुधार दिखा तो हम इसे 5 लीटर और फिर 2 लीटर तक ले जाते हैं. हमने यह सुनिश्चित करने के लिए ऑब्जर्वर भी रखे हैं कि ऑक्सीजन अनावश्यक बर्बाद न हो.’

Outside Indore’s Super Speciality Hospital. | Photo: Revathi Krishnan/ThePrint
इंदौर के एक सुपर स्पैशिलिटी अस्पताल के बाहर का दृश्य/फोटो: रेवथी कृष्णन/दिप्रिंट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई एक समीक्षा बैठक में बताया गया था कि भारत में तरल मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन अगस्त 2020 में 5,700 मीट्रिक टन प्रतिदिन से बढ़कर 25 अप्रैल को 8,922 मीट्रिक टन हो गया है. यह जानकारी ऐसे समय सामने आई है जबकि देशभर के अस्पताल ऑक्सीजन की कमी का हवाला देते हुए मरीजों को भर्ती करने से इनकार कर रहे हैं.

‘मार्च में शुरू हुआ काम’

होशंगाबाद के मोहासा-बाबई औद्योगिक क्षेत्र स्थित प्लांट आईनॉक्स होर्डिंग में तैनात एक सुरक्षा गार्ड ने बताया कि प्लांट का निर्माण कार्य दरअसल इस साल मार्च में ही शुरू हुआ था.

हालांकि, प्लांट के निर्माण प्रबंधक सौम्य बिस्वाल ने कहा कि यहां पर काम दिसंबर 2020 में शुरू हो गया था.

आईनॉक्स के साइनबोर्ड को काले कपड़े से ढंका गया है/रेवथी कृष्णन/दिप्रिंट

प्लांट के लिए नोडल विभाग मध्य प्रदेश इंडस्ट्रियल कॉर्पोरेशन (एमपीआईसी) में एक मैनेजर राकेश तिवारी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि आईनॉक्स प्लांट बड़े उद्योगों में आता है और अनुबंधों के अनुसार, उन्हें उत्पादन शुरू करने के लिए कम से कम 3-4 साल दिए जाते हैं.

चौहान के छह महीने के वादे के बारे में पूछे जाने पर, तिवारी ने सवाल से किनारा कर लिया और इस ओर ध्यान आकृष्ट किया कि यह कई एकड़ जमीन पर बन रहा है.

उन्होंने कहा, ‘इस प्लांट का निर्माण 11 एकड़ भूमि पर किया जा रहा है, जिसमें 150 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है. उत्पादन शुरू होने में अभी कुछ समय लगेगा. अभी बाउंड्री वाल ही पूरी की जानी बाकी है, फिर मुख्य इमारत बनाई जाएगी, और फिर विदेशी मशीनों को लाया जाएगा. इसलिए उत्पादन में कुछ समय लगेगा.

बिस्वाल ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें उम्मीद है कि निर्माण डेढ़ साल में पूरा हो जाएगा.

बड़े शहरों की स्थिति

प्लांट में अभी उत्पादन शुरू होने के दूर-दूर तक कोई आसार नहीं हैं, और राज्य के बड़े शहर ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे हैं.

भोपाल और पड़ोसी जिलों में ऑक्सीजन आपूर्ति के प्रभारी ज्वाइंट कलेक्टर राजेश गुप्ता ने कहा कि मार्च में शहर की ऑक्सीजन जरूरत एक दिन में 25-30 मीट्रिक टन थी, जो अब दोगुनी होकर 80 मीट्रिक टन तक पहुंच गई है.

गुप्ता ने कहा, ‘शहर में दो एटमॉस्फिरिक सैचुरेशन यूनिट हैं जो 1,600 सिलेंडरों के करीब भरते हैं. हालांकि, भोपाल रायसेन, विदिशा, सीहोर और राजगढ़ जैसे आसपास के क्षेत्रों में भी ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है. और अब, हम देवास, गुना और होशंगाबाद जैसी जगहों पर भी ऑक्सीजन पहुंचा रहे हैं.’

इंदौर में ऑक्सीजन की मांग पूरी करने के लिए प्रभारी एमपीआईसी के निदेशक रोहन सक्सेना ने स्पष्ट किया कि यद्यपि शहर प्रतिदिन 125 मीट्रिक टन की मांग को पूरा करने में सक्षम हो जा रहा है, लेकिन यह हर दिन किसी जंग से कम नहीं है. भोपाल की तरह इंदौर भी धार, उज्जैन, खंडवा और मंसौर जैसे आसपास के क्षेत्रों को ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है.

मंगलवार को जारी हेल्थ बुलेटिन के मुताबिक, राज्य में कोविड के कारण कुल मौतों में 34 फीसदी हिस्सा इंदौर और भोपाल का रहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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