scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमहेल्थCovaxin पर ICMR के शीर्ष विज्ञानी बोले-महामारी के समय Vaccine की मंजूरी प्रक्रिया बदलनी होगी

Covaxin पर ICMR के शीर्ष विज्ञानी बोले-महामारी के समय Vaccine की मंजूरी प्रक्रिया बदलनी होगी

महामारी विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. समीरन पांडा ने दिप्रिंट को बताया कि ICMR अपने सभी शोध निष्कर्षों को प्रकाशित करता है, जिसमें Covaxin डाटा शामिल है.

Text Size:

नई दिल्ली: भारत बायोटेक की कोवैक्सीन, भारत के स्वदेशी टीके, को मंजूरी दिए जाने के मामले में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक शीर्ष वैज्ञानिक डॉ. समीरन पांडा का कहना है कि कोविड-19 महामारी जैसे ‘अभूतपूर्व समय’ में फैसले लेने के लिए अलग तरह की विचार प्रक्रिया अपनानी पड़ती है.

ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने प्रभावकारिता डाटा के बिना और तीसरे चरण का परीक्षण अधूरा होने के बावजूद भारत बायोटेक और आईसीएमआर द्वारा विकसित कोवैक्सिन को 3 जनवरी को ‘सशर्त मंजूरी’ दे दी थी.

आईसीएमआर में महामारी विज्ञान और संचारी रोग प्रभाग के प्रमुख डॉ.पांडा ने दिप्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘महामारी में समय में एक वैक्सीन को त्वरित मंजूरी देने के लिए अलग-अलग हिस्सों में मौजूद साक्ष्यों को सामने रख उन पर विचार और कोई निष्कर्ष निकालने के लिए एक अलग ही स्तर की क्षमता की जरूरत होती है.’

उन्होंने कहा, ‘किसी असाधारण समय या असामान्य कार्य के दौरान मौजूद साक्ष्यों के आधार पर निर्णय लेने की प्रक्रिया भिन्न ही होती है.’

पांडा ने कहा, ‘19 मार्च 2019 को दवाओं और क्लीनिकल ट्रायल के संबंध में प्रकाशित नए नियमों में ऐसे इनोवेशन के प्रावधान किए गए हैं.’


यह भी पढ़ें: मई में आधिकारिक आंकड़ों से 3 गुना हो सकती है वुहान की वास्तविक Covid संख्या- चीनी स्टडी में दावा


‘क्लीनिकल ट्रायल मोड’ क्या है?

कोवैक्सिन को ‘सशर्त मंजूरी’ देते हुए डीसीजीआई के डॉ. वी.जी. सोमानी ने कहा था, ‘विषय विशेषज्ञ समिति (एसईसी) ने वैक्सीन की सुरक्षा और प्रतिरक्षा पर डाटा की समीक्षा की है और क्लीनिकल ट्रायल मोड में अत्यधिक सावधानी के साथ, खासकर म्यूटेंट स्ट्रेन के कारण संक्रमण के मामले में वैक्सीनेशन के और विकल्पों के मद्देनजर, जनहित को ध्यान में रखते हुए आपात स्थिति में सीमित इस्तेमाल की सिफारिश की है.’

हालांकि, कई सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने ‘क्लिनिकल ट्रायल मोड’ शब्द का इस्तेमाल किए जाने को लेकर सवाल उठाए हैं.

डॉ. पांडा, जो भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के सॉलिडैरिटी ट्रायल को अंजाम देने वाले आईसीएमआर के राष्ट्रीय एड्स अनुसंधान संस्थान (एनएआरआई) के निदेशक भी हैं, के मुताबिक आपातकालीन स्थितियों में सीमित उपयोग पर कड़ाई से नजर रखी जाएगी जो क्लीनिकल ट्रायल के समान है.

उन्होंने कहा, ‘इसमें टीका लगवाने वाले को उसके बारे में विस्तार से पूरी जानकारी देना, टीका लगाने से पहले उसकी सहमति लेना, एक लंबे समय तक उस पर किसी प्रतिकूल असर की निगरानी करना और साथ की कोई दुष्प्रभाव नजर आने पर संबंधित व्यक्ति को आवश्यक उपचार मिलना सुनिश्चित करना अनिवार्य होगा.’

उन्होंने आगे कहा कि यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि ‘इसी टीके का तीसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल साथ में ही चलता रहेगा और अंतरिम विश्लेषण के साथ-साथ इस चरण के अंत में सामने आया नतीजा सीमित इस्तेमाल संबंधी फैसले पर अगले कदम को निर्धारित करेगा.’

‘सार्वजनिक डाटा भरोसा बढ़ाता है’

पांडा ने इस बात को दोहराया कि कोवैक्सिन के शुरुआती चरण के परीक्षणों के नतीजे पब्लिक डोमेन में मौजूद हैं और कोई भी इन्हें देख सकता है.

यह पूछे जाने पर कि क्या आईसीएमआर ने अनुमोदन के लिए इस्तेमाल डाटा को प्रकाशित करने की योजना बनाई है, पांडा ने कहा, ‘सार्वजनिक और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने के सिद्धांतों के अनुरूप, आईसीएमआर अपने शोध निष्कर्षों को प्री-प्रिंट के तौर पर रखता है और ऐसा करना जारी रखेगा.’

उन्होंने इस पर सहमति जताई कि पब्लिक डोमेन में डाटा प्रकाशित करने से समाज में भरोसा बढ़ता है और यह लोगों को टीके की खुराक लेने के लिए प्रोत्साहित भी करता है.

आईसीएमआर के वैज्ञानिक ने दिप्रिंट को बताया, ‘आम लोगों के सामने विज्ञान की व्याख्या करना और वैज्ञानिक मुद्दों और निष्कर्षों को आसान भाषा में उन्हें समझाना बेहद अहम हैं क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य तो आम लोगों से ही जुड़ा हुआ है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए जरूरी है कि लोगों को इसके केंद्र में रखा जाए और सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य चर्चाओं में उन्हें शामिल किया जाए. विज्ञान को पारदर्शी तरीके से अपनाया जाए, जोर-शोर से चर्चा की जाए और व्यापक रूप से इसे प्रचारित किया जाए.’


य़ह भी पढ़ें: इंतजार हुआ खत्म, 16 जनवरी से 3 करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स के साथ कोरोना वैक्सीनेशन की होगी शुरुआत


‘भारत में कोविड वैक्सीन के जोरदार स्वागत वाली स्थिति’

भारत ने दो वैक्सीन कैंडीडेट कोवैक्सिन और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड को पहले ही मंजूरी दे दी है. इस बीच, देश में कई अन्य वैक्सीन विकल्प उपलब्ध हैं जो मंजूरी और ट्रायल पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं, इसमें जायडस कैडिला निर्मित जायडस-डी, डॉ. रेड्डी लैब द्वारा तैयार की जा रही रूस की स्पुतनिक वी, एसआईआई की एनवीएक्स-कोव2373, बायोलॉजिकल ई कंपनी की तरफ से रीकॉम्बीनेशन प्रोटीन एंटीजेन आधारित प्रोडक्ट और जेनोवा बायोफार्मासिटिकल की एमआरएनए-आधारित वैक्सीन शामिल है.

डॉ. पांडा के अनुसार, कई कोविड वैक्सीन विकल्पों की मौजूदगी ‘किसी भी देश के लिए स्वागत योग्य स्थिति’ को दर्शाती है.

उन्होंने कहा, ‘एक जीवाणु के खिलाफ हमारे भंडार में जितने ज्यादा हथियार हों उतना ही अच्छा है, खासकर ऐसे बेहद सूक्ष्म जीव के खिलाफ जो मानव जाति के लिए एक नए खतरे के रूप में सामने आया है और और एकदम कम समय में बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित कर सकता है.’

हालांकि, पांडा ने कहा कि जरूरी यह है कि इन तमाम टीकों का विश्लेषण करके यह पता लगाया जाए कि भारत के लिए उपयोगी क्या है.

उन्होंने कहा, ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य के नजरिये से किसी के लिए स्टोरेज, डिस्ट्रीब्यूशन और आवश्यक संख्या में खुराक उपलब्ध कराने से ज्यादा इस पर विचार करना ज्यादा जरूरी है कि किसी देश विशेष के लिहाज से कौन-सी वैक्सीन अधिक उपयोगी होगी.

उन्होंने कहा कि इस महामारी के दौर में अब तक भारत की भूमिका ‘एक सक्षम नेतृत्व के तहत साक्ष्य-आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को लागू करने वाली, और प्रतिबद्ध और प्रशिक्षित वैज्ञानिकों के साथ एक चुनौतीपूर्ण समय में इनोवेशन की क्षमता रखने वाली साबित हुई है.’

(इस खबर को अग्रेंजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


य़ह भी पढ़ें: COVID प्रेडिक्शन मॉडल ने बताया कि 90 करोड़ भारतीय पहले ही VIRUS का सामना कर चुके हैं-CSIR प्रमुख शेखर मांडे


 

share & View comments