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Thursday, 25 April, 2024
होमदेशCOVID प्रेडिक्शन मॉडल ने बताया कि 90 करोड़ भारतीय पहले ही VIRUS का सामना कर चुके हैं-CSIR प्रमुख शेखर मांडे

COVID प्रेडिक्शन मॉडल ने बताया कि 90 करोड़ भारतीय पहले ही VIRUS का सामना कर चुके हैं-CSIR प्रमुख शेखर मांडे

दिप्रिंट के ‘ऑफ द कफ़’ में शेखर मांडे कोविड-19 के लिए भारत के गणितीय सुपरमॉडल, कम आय और अधिक आय वाले देशों पर महामारी के असर, और ‘फेलूदा’ के बारे में बात करते हैं.

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भारत में कोविड-19 महामारी के डाइनामिक्स की भविष्यवाणी करने वाला सुपर कंप्यूटर सही पूर्वानुमान लगाता आ रहा है, ऐसा कहना है वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक शेखर मांडे का. मॉडल ने पूर्वानुमान लगाया है, कि भारत के लगभग 90 करोड़ लोग, पहले ही सार्स-सीओवी-2 वायरस का सामना कर चुके हैं.

एक वर्चुअल ऑफ द कफ मुलाक़ात में, दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता से बात करते हुए, मांडे ने मॉडल तैयार करने में लगी टीम के प्रयासों की सराहना की.

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा गठित एक कमेटी को, इस साल के शुरू में ‘कोविड-19 इंडिया नेशनल सुपरमॉडल’ तैयार करने का ज़िम्मा दिया गया था. कमेटी के सदस्य थे- आईआईटी हैदराबाद के एम विद्यासागर, सीएमसी वेल्लौर की गगनदीप कांग, भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरू के बिमन बागची, भारतीय सांख्यिकीय संस्थान कोलकाता के अरूप बोस और शंकर पॉल, और रक्षा मंत्रालय से ले. जन. माधुरी कानिटकर.

मांडे ने कहा, ‘मेरा मानना है कि जो कुछ भी पूर्वानुमान वो कर रहे हैं, वो सही हो सकते हैं. उसका मतलब है कि वायरस हमारी पूरी आबादी से होकर गुज़र रहा है’.

उन्होंने आगे कहा कि हाल ही में, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) के वैज्ञानिकों द्वारा की गई एक स्टडी के, सीरो-सर्वे नतीजों से भी इस बात की पुष्टि हुई, कि एशिया के सबसे बड़े स्लम- धारावी में रहने वाले वाले, 50 प्रतिशत से अधिक लोगों में कोविड-19 एंटीबॉडीज़ मौजूद थे. लेकिन उस इलाक़े की मृत्यु दर, अपेक्षा से कहीं कम रही थी.

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मांडे ने ये भी कहा कि बहुत से लोगों ने मान लिया था, कि धारावी में ये प्रकोप एक ‘तबाही’ लेकर आएगा. ‘लेकिन कुछ शक्तियों की बदौलत ऐसा नहीं हुआ. हमें राहत महसूस करनी चाहिए, कि धारावी में जैसा अपेक्षित था वैसा कुछ नहीं हुआ’.


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‘स्वच्छता की परिकल्पना’

कोविड-19 के कारण भारत और कम आय वाले अन्य देशों में, मृत्यु दर नीची क्यों दर्ज हो रही है, इस पर टिप्पणी करते हुए मांडे ने कहा, कि इसके पीछे की वजह ‘स्वच्छता की परिकल्पना’ हो सकती है. उन्होंने समझाया कि स्वच्छता की परिकल्पना ये है, कि अस्वच्छ परिस्थितियों में रहने वाले लोगों का, भारी संख्या में पैथोजंस से सामना होता है, जो उनके इम्यून सिस्टम को नए इनफेक्शंस से लड़ने के लिए तैयार कर देते हैं.

मांडे ने आगे कहा, ‘ऊंची आय वाले देशों में, जैसे जैसे सफाई की स्थिति में सुधार होता है, वैसे वैसे पैथोजंस से फैलने वाली ऐसी संक्रामक बीमारियों का बोझ कम हो जाता है. उसकी बजाय, डायबिटीज़, एस्थमा, और सोराइसिस जैसी ऑटो-इम्यून बीमारियों का बोझ बढ़ जाता है’.

मांडे और उनकी टीम द्वारा तैयार की गई एक स्टडी, जो करेंट साइंस पत्रिका में छपने जा रही है, में भी छानबीन की गई है, कि कैसे इस एक कारक से समझा जा सकता है, कि कम जीडीपी वाले देशों में, कोविड-19 मृत्यु दरें नीची रह सकती हैं.

लेकिन, उन्होंने चेताया, ‘हम किसी भी तरह लोगों से ये नहीं कह रहे, कि आप और अधिक अस्वच्छता में चले जाईए. हम जो कह रहे हैं वो ये है, कि शरीर का इम्यून सिस्टम अंदर दाख़िल होने वाली, किसी भी बीमारी को देखने को तैयार नहीं है. हमें अपनी इम्यूनिटी को उसके लिए लगातार प्रशिक्षित करना होगा’.

मांडे ने ये भी कहा कि किस तरह इंसान की आंतें- जहां भारी संख्या में माइक्रोब्स वास करते हैं- हमारे इम्यून सिस्टम को प्रशिक्षित करने में अहम साबित हो सकती हैं.

मांडे ने कहा, ‘हर रोज़, कुछ रोमांचक खोज सामने आ रही है, जो दिखाती है कि हर चीज़- इंसानी व्यवहार समेत- बेक्टीरिया की उस आबादी से नियंत्रित होती है, जो हमारी आंतों में बसती है’.

लेकिन अपनी स्टडी में उन्हें, टीबी को रोकने के लिए लगाए जाने वाले बीसीजी वैक्सिनेशन, और नीची मृत्यु दर में कोई सीधा संबंध नहीं दिखा. उन्होंने कहा कि महामारी के शुरू होने के बाद, कई स्टडीज़ में सुझाया गया है, कि जिन देशों में यूनिवर्सल बीसीजी वैक्सिनेशन प्रोग्राम अपनाया गया, वहां कोविड-19 संक्रमण और मृत्यु की दरें नीची रही हैं.

मांडे ने कहा कि जिन देशों में यूनिवर्सल बीसीजी वैक्सिनेशन प्रोग्राम नहीं चलाए गए थे, उनमें ऑटो-इम्यून बीमारियों की घटनाएं ज़्यादा रही हैं- लेकिन इन दोनों फैक्टर्स का, एक दूसरे से कोई सीधा संबंध नहीं था.

मांडे ने कहा, ‘इसलिए, हो सकता है कि (बीसीजी वैक्सिनेशन और नीची मृत्यु दर के बीच) वो सह-संबंध अब सामने आ रहा हो, क्योंकि ऊंची आय वाले देशों में ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर्स ज़्यादा देखने में आ रहे हैं.


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‘फेलूदा’- CSIR की कामयाबी की दास्तान

मांडे ने कहा कि देश भर में सीएसआईआर की 37 लैब्स ने, कोविड-19 का प्रभाव कम करने के लिए एक रणनीति तैयार की है, जो पांच वर्टिकल्स पर आधारित है- निगरानी, निदान, इलाज, उपकरण और सप्लाई चेल मॉड्यूल्स.

कोविड-19 महामारी के दौरान, सीएसआईआर की सबसे चर्चित कामयाबी रही है, फेलूदा– एक सस्ता और पेपर पर आधारित कोविड-19 टेस्ट, जो 45 मिनटों के भीतर नतीजे दे सकता है.

फेलूदा सीआरआईएसपीआर- कैस टेक्नोलॉजी पर आधारित है, जिसकी सहायता से शोधकर्ता जिनेटिक कोड्स को एडिट कर पाते हैं. मांडे ने कहा कि सीआईएसआर टीम पहले से ही सिकल सेल एनीमिया के लिए, सीआरआईएसपीआर-आधारित टेस्ट पर काम कर रही थी. मांडे ने आगे कहा कि जब महामारी शुरू हुई, तो उनकी समझ में आया, कि घर पर ही कोविड-19 जांच करने के लिए, इस टेस्ट के उद्देश्य को बदला जा सकता है.

टाटा समूह अब इस टेस्ट का व्यवसायीकरण कर रहा है, और ये गवर्नमेंट्स ई-मार्केटप्लेस (जीईएम) पर उपलब्ध है. टाटा समूह ने भारत से बाहर भी इस टेस्ट के लिए, नियामक स्वीकृतियां लेने के लिए आवेदन किया है.

मांडे ने ये भी कहा कि सीआईएसआर, फिलहाल वित्तीय रूप से काफी सक्षम है, और अब नए रिसर्च कार्यक्रम हाथ में लेना चाहती है, जो वैश्विक समस्याएं सुलझा सकते हों.

भारत में पीएचडी स्कॉलर्स को दी जाने वाली, फेलोशिप्स के भुगतान में देरी पर बात करते हुए, मांडे ने कहा कि सीआईएसआर इस समस्या को, सुलझाने की दिशा में काम कर रही है. ‘सभी रिसर्च स्कॉलर्स के साथ मेरी पूरी हमदर्दी है. मैं ख़ुद भी एक रिसर्च स्कॉलर रहा हूं. मुझे दुख होता है कि उन्हें फेलोशिप नहीं मिलती’.

उन्होंने आगे कहा ‘हम प्रक्रिया को डिजिटाइज़ करने की कोशिश कर रहे हैं, जहां हर छात्र को एक लॉग-इन दिया जाएगा. इसकी मदद से स्कॉलर्स सभी रिकॉर्ड्स तक पहुंच सकेंगे, और देख पाएंगे कि उनकी फाइल कहां अटकी है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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