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Sunday, 5 May, 2024
होमहेल्थडोनाल्ड ट्रंप की ‘गेम चेंजर’ HCQ कोविड को नहीं रोकती, एक और अमेरिकी स्टडी का दावा

डोनाल्ड ट्रंप की ‘गेम चेंजर’ HCQ कोविड को नहीं रोकती, एक और अमेरिकी स्टडी का दावा

स्टडी में कहा गया है कि ‘प्री-एक्सपोज़र प्रॉफिलेक्सिस’ के तौर पर एचसीक्यू का ‘कोई क्लीनिकल फायदा नहीं है’. भारत में रोगनिरोधी दवा के तौर पर, हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स के बीच, अभी भी इसका इस्तेमाल हो रहा है.

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नई दिल्ली: शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का, कोविड-19 टेस्टिंग में पॉज़िटिव निकलने का ऐलान उन लोगों के लिए एक और झटका है, जो इस बीमारी की रोकथाम के लिए, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) की भूमिका पर भरोसा करते हैं.

इस मामले में वैज्ञानिक सबूत भी लगातार सामने आ रहे हैं.

दो दिन पहले ही, एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में छपी एक और स्टडी में भी कोविड संक्रमण की रोकथाम में, इस दवा के बेअसर होने का पता चला.

मई में, भारत से अपनी ज़रूरत की एचसीक्यू की आवश्यक मात्रा लेने के बाद, ट्रंप ने ऐलान किया कि उन्होंने प्रॉफिलेक्सिस (रोकथाम) के तौर पर, इस दवा को लेना शुरू कर दिया था. उन्होंने इस दवा को एक ‘गेम चेंजर’ तक क़रार दे दिया था.

इस बीच भारत में इसे रोकथाम और इलाज, दोनों के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.

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30 सितंबर को जामा इंटरनल मेडिसिन में छपी एक स्टडी में, पेंसिलवानिया यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने बताया, ‘इस बेतरतीब क्लीनिकल ट्रायल में, हालांकि ये जल्दी ख़त्म कर दिया गया, अस्पतालों में कोविड मरीज़ों के संपर्क में रह रहे हेल्थकेयर वर्कर्स को, बीमारी से पहले रोकथाम के तौर पर 8 हफ्ते तक रोज़ाना दी गई हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का कोई क्लीनिकल फायदा देखने को नहीं मिला’.

एचसीक्यू आमतौर पर मलेरिया और रूमेटाइड आर्थराइटिस (गठिया) के लिए दी जाती है.

ये निष्कर्ष इससे पहले अगस्त में, द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपी एक और स्टडी से मेल खाते हैं, जिसमें कहा गया था कि बीमारी के संपर्क में आने के बाद, रोकथाम के लिए दी जाने वाली एचसीक्यू कोविड को नहीं रोकती.

भारत में कोविड की रोकथाम और इलाज में लगे जिन तमाम तरह के लोगों को एचसीक्यू दी जाती है, वो हैं- ग़ैर-लक्षण वाले सभी हेल्थकेयर वर्कर्स, ग़ैर-कोविड अस्पतालों/कोविड अस्पतालों/ब्लॉक्स की ग़ैर-कोविड जगहों में काम कर रहे बिना लक्षण वाले हेल्थकेयर वर्कर्स, बिना लक्षण वाले फ्रंटलाइन वर्कर्स जैसे कंटेनमेंट ज़ोन्स में तैनात निगरानी कर्मी, कोविड संबंधी गतिविधियों में शामिल अर्धसैनिक/पुलिसकर्मी, और लैबोरेटरी द्वारा पुष्ट मामलों में, बिना लक्षण वाले घरेलू संपर्क.


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ह्रदय पर कोई प्रतिकूल असर नहीं

लेकिन इस स्टडी में एचसीक्यू ग्रुप के अंदर, प्लेसीबो ग्रुप के मुकाबले ह्रदय पर कोई प्रतिकूल असर नहीं देखा गया.

ये उस स्टडी के विपरीत है, जिसे लांसेट ने जून में वापस ले लिया था, जब उसमें इस्तेमाल किए गए डेटा की गुणवत्ता पर सवाल उठे थे.

जामा की स्टडी में कहा गया, ‘वायरल की रोकथाम या कोविड-19 के इलाज के तौर पर, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दूसरी स्टडीज़ की तरह, हमें पता चला कि इस दवा को, आमतौर से अच्छी तरह सहन किया गया. सिर्फ एक अपवाद ये था कि वो मरीज़, जिन्हें 8 हफ्ते तक 600 एमजी हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दी गई, उन्हें प्लेसिबो के इलाज वाले मरीज़ों की अपेक्षा अधिक दस्त आए.

स्टडी में आगे कहा गया, ‘इसके अलावा, हमें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और प्लेसिबो ग्रुप के मरीज़ों के बीच, ह्रदय पर कोई विपरीत असर देखने को नहीं मिला. मायोकार्डियल सूजन, जिसका संबंध सार्स-सीओवी-2 संक्रमण से है, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के संभावित हृदय प्रभावों की संवेदनशीलता को बढ़ा सकती है’.

हालांकि संक्रमित होने वाले सभी प्रतिभागियों की बीमारी हल्की थी, और वो पूरी तरह ठीक हो गए, लेकिन फिर भी रिसर्चर्स ने कोविड रोकने के लिए, वर्कर्स के बीच हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के नियमित इस्तेमाल की सिफारिश नहीं की.

लेकिन, उन्होंने ये ज़रूर माना, कि स्टडी का सैम्पल साइज़ छोटा होने की वजह से, मुमकिन है कि ‘मामूली रोगनिरोधी प्रभाव’ उनसे चूक गया हो.

भारत में 1,323 हेल्थकेयर वर्कर्स के अवलोकन से मिले डेटा से, हल्के विपरीत प्रभाव नज़र आते हैं जैसे जी मिचलाना (8.9 प्रतिशत), पेट दर्द (7.3 प्रतिशत), उल्टी (1.5 प्रतिशत), हाइपोग्लाइसीमिया (1.7 प्रतिशत), और कार्डियो-वैस्कुलर प्रभाव (1.9 प्रतिशत).

सरकार के फार्मा कोविजिलेंस प्रेग्राम ऑफ इंडिया के डेटा से पता चलता है कि रोकथाम के तौर पर एचसीक्यू के इस्तेमाल से जुड़े, दवा के विपरीत असर के, 214 मामले सामने आए हैं. इनमें से सात गंभीर व्यक्तिगत केस सेफ्टी रिपोर्ट थीं.

हितों के टकराव के खुलासे

स्टडी में हितों के टकराव के खुलासे के मामले में, यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विभाग के डॉ. इयान फ्रैंक ने जीलिएड से आमदनी का खुलासा किया.

जीलिएड रेमडेसिविर दवा बनाती है, जो कोविड ड्रग की एक सबसे बड़ी दावेदार है, और फिलहाल इसके लिए क्लीनिकल ट्रायल्स कर रही है. जीलिएड से ज़रूरी लाइसेंस लेने के बाद, भारतीय कंपनियां भी ये दवा बना रही हैं.

यूनिवर्सिटी के पैथोलॉजी विभाग के डॉ. माइकल मिलॉन ने, नोवार्तिस के लाइसेंस शुदा पेटेंट्स से, रॉयल्टी आय का खुलासा किया, जिसका हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन से कोई संबंध नहीं है.

खुलासों के सेक्शन में लिखा है, ‘डॉ. (रवि) अमरावाड़ी साइंटिफिक फाउंडर हैं, और पिनप्वाइंट थिरेप्यूटिक्स इंक में उनकी हिस्सेदारी है. वो कैंसर के लिए ऑटोफेजी इनहिबिटर्स के सह-आविष्कारक हैं, और स्प्रिंट बायोसाइंसेज़, डेसीफेरा, और इम्यूनासेल में कैंसर से जुड़े प्रोग्राम्स के कंसल्टेंट हैं. डॉ (बेंजामिन) अबेला ने बेक्टन डिकिंसन से ग्रांट और मानदेय हासिल किया है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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