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Friday, 22 November, 2024
होमदेशCovid का असर, महामारी के बाद ज्यादातर भारतीयों में बढ़ा फ्लू और HPV वैक्सीन लेने का चलन

Covid का असर, महामारी के बाद ज्यादातर भारतीयों में बढ़ा फ्लू और HPV वैक्सीन लेने का चलन

अभी तक भारत में करवाया जाने वाला स्वैच्छिक टीकाकरण काफी हद तक समाज के संपन्न वर्गों तक ही सीमित रहा है, लेकिन डॉक्टरों के अनुसार इस बात को महसूस करने के बाद कि कोविड के टीके लगवाने से क्या फर्क पड़ सकता है, लोगों का नजरिया बदल रहा है.

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नई दिल्ली: सरकार द्वारा बच्चों के लिए चलाए जा रहे यूनिवर्सल इम्म्यूनाइजेशन प्रोग्राम-यूआईपी की अत्यधिक सफलता के बावजूद भारत में वयस्क या किशोर टीकाकरण के प्रति लोगों की रुचि कभी भी अधिक नहीं रही है. हालांकि, डॉक्टरों का कहना है कि कोविड महामारी के बाद से इस बारे में नज़रिया बदल रहा है और इन्फ्लूएंजा, निमोनिया एवं एचपीवी के टीकों के उपयोग में वृद्धि हुई है.

यूआईपी – एक सरकारी कार्यक्रम जिसके तहत गर्भवती माताओं और नवजात शिशुओं को मुफ्त में टीका लगाया जाता है – के अलावा साल 2021 की शुरुआत में कोविड टीकाकरण कार्यक्रम शुरू होने तक भारत में वयस्क या किशोर टीकाकरण के बारे में कोई अन्य सरकारी पहल नहीं की गई थी.

डॉक्टरों के अनुसार, भारत में स्वैच्छिक टीकाकरण अब तक समाज के संपन्न तबके के लोगों तक ही सीमित था, लेकिन महामारी के अनुभवों और टीकाकरण से पहले और बाद में हुए कोविड के दौरान दिखाई देने वाले बदलाव ने यह धारणा बदल दी है.

दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. एस. चटर्जी ने कहा, ‘मैं कहूंगा कि लोगों की धारणाएं निश्चित रूप से बदल गई हैं. अब लोग अधिक संख्या में निमोनिया और इन्फ्लूएंजा के टीकों के बारे में पूछताछ कर रहे हैं और डॉक्टर भी उनकी जोरदार सिफारिश कर रहे हैं. पहले, डॉक्टर केवल बुजुर्गों या इम्युनोकॉम्प्रोमाइज्ड (कमजोर प्रतिरक्षा शक्ति) वाले लोगों के लिए इस तरह के टीकों पर जोर देते थे. लेकिन महामारी ने वह सब बदल दिया है.’

इस डॉक्टर ने आगे कहा, ‘लोगों ने पहली बार देखा कि टीके किस तरह का फर्क पैदा कर सकते हैं. टीके के उपयोग में आया वास्तविक अंतर अभी भी छोटा है – मैं इस महामारी पूर्व के स्तर से लगभग 15-20 प्रतिशत अधिक ही कहूंगा- लेकिन निश्चित रूप से इस तरह के विचार की प्रति स्वीकार्यता काफी अधिक है. लोग अधिक जागरूक हैं, डॉक्टर अधिक जागरूक हैं और यहां तक कि मीडिया भी अधिक जागरूक है.’ ‘

कुछ हद तक तो इस महामारी ने ही इन्फ्लूएंजा के टीके – जिसे आमतौर पर फ्लू के टीके के रूप में जाना जाता है – के उपयोग को बढ़ावा दिया था, विशेष रूप से भारत में कोविड के टीके उपलब्ध होने से पहले के शुरुआती दिनों के दौरान.

चिकित्सा संबंधी पत्रिकाओं में प्रकाशित कई सारे शोधपत्रों ने यह दावा किया था कि फ्लू का टीका कोविड के खिलाफ कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान कर सकता है, और इसी वजह से कई लोगों ने इसे आपातकालीन सुरक्षा उपाय के रूप में चुना था.

एचपीवी वैक्सीन में बढ़ती रुचि

एक और टीका जिसके प्रति लोगों की रूचि में वृद्धि देखी जा रही है, वह है ह्यूमन पेपिलोमावायरस वायरस (एचपीवी), जो सर्विकल कैंसर के सबसे सामान्य कारणों में से एक है, के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने वाली वैक्सीन.

इसे किशोरवय के लड़कों और लड़कियों को लगाए जाने की सिफारिश की जाती है, विशेष रूप से उनके पहले यौन संसर्ग (सेक्सुअल कॉन्टैक्ट) से पूर्व. हालांकि, भारत में आम तौर पर यह लड़कियों को ही लगाया जाता है.

फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया की उपाध्यक्ष डॉ अल्का पांडे ने कहा, ‘लोग हमारे पास आ रहे हैं और एचपीवी टीकों के बारे में पूछ रहे हैं, क्योंकि अब टीकों के बारे में अधिक जागरूकता है. हालांकि, इसके प्रचार-प्रसार के लिए अभी काफी काम करने की जरूरत है, खासकर डॉक्टरों द्वारा. हम एचपीवी वैक्सीन के लिए भी एक स्कूल-स्तरीय अभियान की योजना बना रहे हैं.’

इस महासंघ (फेडरेशन) के अध्यक्ष डॉ हृषिकेश पई का कहना है कि उनके महासंघ ने भारत सरकार से सिफारिश की है कि इस टीके को यूआईपी में शामिल किया जाए.

डॉ पांडे ने कहा कि ‘कोविड के बाद, हम गर्भवती महिलाओं को कहीं अधिक संख्या में फ्लू के टीकाकरण और डीपीटी के टीकों के लिए भी आगे आते हुए देख रहे हैं. यह सब कुछ इस बारे में है कि जानकारी फैलाये जाने के लिए कितना काम किया जाता है.’ बता दें कि डीपीटी का टीका डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस की रोकथाम करता है.

दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की सलाहकार बाल रोग विशेषज्ञ डॉ तपीशा कुमार ने कहा, ‘यह एक मिथक है कि भारत में वैक्सीन को लेकर कोई झिझक नहीं है.’

डॉ कुमार ने कहा, ‘यह काफी हद तक मौजूद है लेकिन शायद शहरों में इतना नहीं है. बहुत से लोग सोचते हैं कि यह डॉक्टरों द्वारा पैसे कमाने की एक चाल है. लेकिन महामारी के बाद, मैं देखती हूं कि बहुत से माता-पिता सक्रिय रूप से अपने बच्चों के लिए टीकाकरण की मांग कर रहे हैं, खासकर फ्लू के लिए. लोग अब अच्छी तरह से समझते हैं कि टीके क्या करते हैं और अनियंत्रित बीमारी क्या कुछ कर सकती है. मैं कहूंगी कि मेरे अपने चिकित्स्कीय अभ्यास में मैंने इन टीकों के उपयोग में 20-30 प्रतिशत की वृद्धि देखी है.’

फ्लू के टीके की सिफारिश छह महीने और उससे अधिक उम्र के बच्चों के लिए की जाती है. यूएस सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) किसी भी बच्चे के आठ साल का होने तक इसे सालाना दो बार लगाए जाने की सिफारिश करता है. वहीँ विश्व स्वास्थ्य संगठन 6 महीने से 5 साल के बीच के बच्चों के लिए इसके उपयोग की सिफारिश करता है.

(अनुवाद: राम लाल खन्ना | संपादनः आशा शाह )

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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