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Monday, 13 May, 2024
होमहेल्थकोवैक्सीन एक ‘बुफ़े’ वैक्सीन है जो म्यूटेशंस से निपट सकती है, जबकि दूसरी वैक्सीन्स अलग हैं- वायरस विज्ञानी

कोवैक्सीन एक ‘बुफ़े’ वैक्सीन है जो म्यूटेशंस से निपट सकती है, जबकि दूसरी वैक्सीन्स अलग हैं- वायरस विज्ञानी

भारत की टीकाकरण रणनीति चतुराई से डिजाइन की हुई है, और दूसरी लहर से निपटने में, ये स्वास्थ्य देखभाल में लगे कर्मियों को मज़बूत करेगी, ये कहना है डॉ वी रवि का, जो निमहंस में बेसिक साइंसेज़ के पूर्व डीन हैं.

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नई दिल्ली: एक शीर्ष भारतीय वायरस विज्ञानी का कहना है, कि दूसरी वैक्सीन्स की अपेक्षा, जिनमें बदलाव की ज़रूरत पड़ेगी, भारत बायोटेक की कोवैक्सीन, एक व्यापक रंगावली की ‘बुफ़े’ वैक्सीन है, जो कोविड-19 के सभी म्यूटेशंस के ख़िलाफ काम करेगी.

टेलीफोन पर हुए एक इंटरव्यू में, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज़ (निमहंस) में बेसिक साइंसेज़ के पूर्व डीन, डॉ वी रवि ने कहा कि कोवैक्सीन प्लेटफॉर्म, सभी म्यूटेशंस के खिलाफ कारगर रहेगा, चूंकि ये एक ‘व्यापक इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करेगा, जिसमें पैदा हुआ एक न एक एंटीबॉडी, आख़िरकार वायरस को पकड़ लेगा’.

रवि ने, जो कर्नाटक में सार्स-सीओवी-2 की जिनेटिक पुष्टि के नोडल ऑफिसर हैं, कहा, ‘वैक्सीन एक पूरी तरह निष्क्रिय किया गया वायरस है-यानी मरा हुआ एक पूरा वायरस, जबकि दूसरी वैक्सीन्स में वायरस के किसी अंश का इस्तेमाल किया जाता है. अनुभव बताता है कि मारे या निष्क्रिय किए गए वायरस के प्लेटफॉर्म में, इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करने की संभावना ज़्यादा रहती है, उस समय भी जब वायरस में बदलाव हो रहा हो’.

उनके अनुसार, ‘बाक़ी सभी प्लेटफॉर्म्स, जो (वायरस की) कोई सब-यूनिट या वायरल वेक्टर्स इस्तेमाल करते हैं, लेकिन पूरा वायरस नहीं करते, जैसे कि फ़ाइज़र, मॉडर्ना, स्पुतनिक, एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, बदले हुए वायरस पर काम नहीं करेंगे, और उनमें बदलाव करना पड़ सकता है’.

उन्होंने कहा कि सरल शब्दों में कहें, तो कोवैक्सीन प्लेटफॉर्म ‘एक बुफ़े की तरह है जो इंसानी शरीर में, कई तरह के एंटीबॉडीज़ पैदा करते हैं, जबकि सब-यूनिट वैक्सीन्स अलग अलग होते हैं, जिनमें शरीर सिर्फ एक या दो प्रोटीन्स के लिए, एंटीबॉडी रेस्पॉन्स पैदा करता है’.

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उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन, सब-यूनिट वैक्सीन्स का फायदा ये होता है, कि इन्हें ज़्यादा तेज़ी से बनाया जा सकता है. इसके अलावा, निर्माता की ये भी दलील होती है, कि अगर वायरस का कोई नया वेरिएंट सामने आता है, तो काफी कम समय में वैक्सीन के स्पाइक प्रोटीन को ठीक किया जा सकता है’.

पब्लिक हेल्थ वायरॉलजी एक्सपर्ट रवि को, बेंगलुरु स्थित निमहंस में न्यूरोवायरॉलजी विभाग स्थापित करने का श्रेय जाता है, जिसे राष्ट्रीय महत्व का चिकित्सा संस्थान माना जाता है. वो रूस की स्पुतनिक वैक्सीन के अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड में, भारत का प्रतिनिधित्व भी करते हैं.


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भारत की टीकाकरण योजना ‘चतुराई से तैयार’ की गई

16 जनवरी को शुरू की गई, भारत की कोविड-19 टीकाकरण रणनीति, जिसके पहले दौर में 3 करोड़ अग्रिम वर्कर्स को टीके लगाए जाने हैं, के बारे में बात करते हुए रवि ने कहा कि ये ‘सबसे अच्छी रणनीति’ है, और इसे ‘चतुराई से डिज़ाइन’ किया गया है.

उन्होंने कहा, ‘मैं सरकार की आलोचना करने में झिझकता नहीं हूं, लेकिन यहां मैं कहूंगा कि कोविड प्रकोप से निपटने के लिए, भारत ने सबसे अच्छी रणनीति अपनाई है. सबसे पहले प्राथमिकता समूहों को टीका लगाने की हमारी रणनीति, बहुत चतुराई से तैयार की गई है, और बहुत सोची समझी है’.

उन्होंने आगे कहा कि वैक्सीन के शुरूआती दौर में, न्याय संगत वितरण की ज़रूरत को देखते हुए, निजी क्षेत्र के लिए इसकी अनुमति न देना, एक समझदारी भरा फैसला था.

उन्होंने कहा, ‘हमें समझना होगा कि वैक्सीन के व्यवस्थित और न्यायसंगत वितरण की ज़रूरत है. जैसे ही बाज़ार निजी हाथों में जाएगा, उसे नियमित करना एक भारी चुनौती बन जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘सरकार को गड़बड़ियां रोकने पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जैसे नक़ली वस्तुओं की अपलब्धता, सीस्टम में लीकेजेज़, काला बाज़ारी, एमआरपी को बढ़ाना, और सप्लाई से जुड़ी दूसरी चुनौतियां. ये सबसे अच्छा है कि प्राथमिक समूहों को, सरकारी ख़रीद के ज़रिए ही टीके दिए जा रहे हैं’.

सावधानी से तैयार की गई टीकाकरण रणनीति, देश को दूसरी लहर के खिलाफ भी तैयार करेगी. उन्होंने कहा, ‘सुपर-स्पैडर घटनाओं या म्यूटेट किए हुए वायरस के प्रकोप से, अगर भारत में दूसरी लहर आती है, तो स्वास्थ्य कर्मियों का हमारा श्रमबल, उस चुनौती का मुक़ाबला करने के लिए तैयार होगा. ये एक बहुत स्मार्ट क़दम है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘जैसे ही वैक्सीन्स निजी क्षेत्र के हाथों में आएगी, तो योग्य लोगों को वैक्सीन नहीं मिलेगी, और सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मुद्दे उठने शुरू हो जाएंगे’.

‘दूसरी लहर की अपेक्षा करनी चाहिए’

वायरस विज्ञानी ने कहा कि भारत को, कोविड मामलों की एक और लहर की अपेक्षा करनी चाहिए.

रवि ने कहा, ‘इसके लिए सिर्फ दो-एक सुपर-स्प्रैडर घटनाओं की ज़रूरत है. इतिहास हमें बताता है कि महामारियों में, हमेशा एक दूसरी लहर आती है, जिसके बाद छोटी-छोटी लहरें आती हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए बेहतर है कि ये मान लिया जाए, कि हमारा सामना एक दूसरी लहर से हो सकता है, बजाय इसके कि ये सोच लिया जाए, कि सबसे ख़राब बीत चुका है. वास्तव में, हमने दिल्ली जैसे राज्यों में, दूसरी विशाल लहरें देखी हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर हम ये उम्मीद भी कर लें, कि हमारा देश हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने के क़रीब है- जो तब आती है जब लगभग 60-70 प्रतिशत आबादी संक्रमित हो चुकी होती है- तो भी क़रीब 35-40 प्रतिशत आबादी, इसकी चपेट में आ सकती है’.

इसलिए, वो सब लोग जिन्होंने अभी तक संक्रमण नहीं देखा है, या तो इस बीमारी की चपेट में आएंगे, या टीका लगने से उन्हें इम्यूनिटी मिल जाएगी.

रवि ने कहा, ‘राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश में दूसरी छोटी लहर देखी गई. बल्कि, कई पश्चिमी मुल्कों में एक ज़बर्दस्त दूसरी लहर देखी गई है’.

हर्ड इम्यूनिटी कितनी दूर है, ये समझने के लिए उन्होंने राज्यों को, सीरोलॉजिकल सर्वे कराने की सलाह दी है. उन्होंने कहा, ‘जैसे दिल्ली ने सीरो-सर्वे कराया है, जिससे पता चला है कि वो हर्ड इम्यूनिटी के क़रीब पहुंच रही है, उसी तरह अब सभी राज्यों को यही कराना चाहिए. कर्नाटक में, हमने यही प्रक्रिया शुरू की है’.


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यूके स्ट्रेन की क्लीनिकल गंभीरता के डेटा का विश्लेषण

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 23 जनवरी को युनाइटेड किंग्डम से म्यूटेट किए हुए एक स्ट्रेन की बदौलत, कोविड संक्रमण के 150 मामले सामने आए थे.

निमहंस उन संस्थानों में से एक है, जो केंद्र सरकार के साथ मिलकर, यूके से आने वाले लोगों के नमूनों की सीक्वेंसिंग कर रहे हैं. इसके वेरिएंट स्ट्रेन पर यूके से मिली पहली रिपोर्ट्स में पता चला, कि म्यूटेट किया हुआ वायरस, मूल वायरस से ज़्यादा संक्रामक है, लेकिन इसका क्लीनिकल विस्तार और गंभीरता लगभग उतनी ही है.

लेकिन, रवि ने कहा, ‘पिछले हफ्ते, यूके से मिले शुरूआती आंकड़ों से पता चला, कि किसी विशेष आयु वर्ग में, ये वेरिएंट गंभीर बीमारी पैदा कर सकता है’.

उन्होंने कहा, ‘स्ट्रेन की गंभीरता को समझने के लिए, हमें और डेटा का विश्लेषण करने की ज़रूरत है’. लेकिन उन्होंने आगे कहा कि ‘घबराने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि भारत ने पहले ही कार्रवाई शुरू कर दी है, और वेरिएंट को भी दाख़िल होने से रोक दिया है’.

कोविड अभी ‘कम से कम 5-10 साल तक’ मौजूद रहेगा

वायरस विज्ञानी के अनुसार, अभी कम से कम अगले 5-10 साल तक, कोविड-19 कहीं जाने वाला नहीं है. उन्होंने कहा, ‘ये मौजूद रहेगा लेकिन किसी ऊंचे अनुपात में नहीं रहेगा’.

उन्होंने सचेत किया कि ‘स्थिति गतिशील बनी रहेगी, और अगर इसे फैलने की जगह मिल गई, तो ये और बड़े रूप में सामने आएगा’.

उन्होंने आगे कहा, ‘एक बार हम अधिकांश आबादी को टीकाकरण से कवर कर लें, तो फिर कोविड स्थानिक रहेगा. वो कभी बेसलाइन को नहीं छुएगा, लेकिन उसके आसपास ही कहीं मंडराता रहेगा’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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