scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमहेल्थCovid vaccine की संभावना के बीच मोदी सरकार ने राज्यों और UTs को साइड इफेक्ट का पता लगाने के तरीके खोजने को कहा

Covid vaccine की संभावना के बीच मोदी सरकार ने राज्यों और UTs को साइड इफेक्ट का पता लगाने के तरीके खोजने को कहा

भारत ने मां और बच्चों के टीकाकरण के बाद टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभावों की निगरानी 1988 में शुरू की थी लेकिन कोविड ने नई चुनौतियां पेश कर दी हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: टीकाकरण अभियान जल्द ही शुरू होने के अनुमानों के बीच नरेंद्र मोदी सरकार ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से कहा है कि वे कोविड टीके के दुष्प्रभावों का पता लगाने वाले वाले तंत्र को मजबूत करें.

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. मनोहर अगनानी ने 18 नवंबर को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को भेजे पत्र में लिखा है, ‘आप इस बात से अवगत होंगे कि कुछ प्राथमिकता वाले समूहों के साथ राज्यों और जिलों में कोविड-19 टीकाकरण की तैयारी चल रही है.’

अगनानी ने कहा, ‘इस संदर्भ में कोविड-19 टीकाकरण के बाद टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभावों (एईएफआई) की निगरानी व्यवस्था मजबूत करने की जरूरत हैं ताकि टीका सुरक्षित होने की भावना मजबूत बनी रहे.’

उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ ऐसे कदमों की पहचान की है जो मौजूदा एईएफआई निगरानी प्रणाली को और मजबूत बनाने के लिए जरूरी हैं ताकि ‘कोविड-19 टीकाकरण के बाद एईएफआई के बारे में समय पर और पूरी जानकारी मिलना संभव हो सके.’

भारत में 1988 से एईएफआई निगरानी चल रही है. एईएफआई संबंधी राष्ट्रीय दिशानिर्देशों को 2005, 2010 और 2015 में संशोधित किया गया था. अभी इसके तहत बच्चों और गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण कार्यक्रमों की निगरानी की जाती है लेकिन अब कोविड-19 टीका के साथ नई जरूरतें सामने आ रही हैं.

केंद्र सरकार ने आग्रह किया है कि 14 कदमों को ‘जल्द से जल्द लागू किया जाए ताकि कोविड-19 वैक्सीन को जिला या राज्य में पेश किए जाने से पहले आवश्यक बदलाव किए जा सकें.’

साथ ही राज्यों और जिलों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया गया है कि एनाफिलेक्सिस किट में उपयोग के लिए एड्रेनालाइन इंजेक्शन का पर्याप्त स्टॉक हो, यह आपातकालीन किट ऐसे समय के लिए होता है जब लोगों को किसी दवा या भोजन से गंभीर एलर्जी होती है. एलर्जी की प्रतिक्रिया जानलेवा न बन जाए इसके लिए एड्रेनालाइन को हाथ में इंजेक्ट किया जाता है.

अगनानी ने पत्र में लिखा है, ‘यह ध्यान में रखने वाली सबसे अहम बात है कि एड्रेनालाइन की एक्सपायरी डेट बहुत ही छोटी अवधि वाली होती है. यह भी महत्वपूर्ण है कि सभी वैक्सीनेटर (कोविड 19 टीकाकरण और नियमित टीकाकरण के लिए अस्थायी रूप से लगाए गए) को एनाफिलेक्सिस किट के उपयोग में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.


यह भी पढ़ें: संसदीय पैनल ने कहा- धीमी टेस्टिंग और ख़राब कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग से कोविड मामलों में आया उछाल


विशेषज्ञ, प्रशिक्षित कर्मचारी, योजना के प्रसार की रणनीति खोजें

मोदी सरकार के दिशानिर्देश के अनुसार, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को राज्य और जिला एईएफआई समितियों में बाल रोग विशेषज्ञों के अलावा चिकित्सा विशेषज्ञों को भी शामिल करना होगा.

पत्र में लिखा है, ‘कोविड-19 टीका वयस्कों को दिया जाएगा, जिनमें से कई में कोमोर्बिडिटी हो सकती है. पत्र में कहा गया है कि कोविड-19 टीकाकरण के बाद पूर्व की कोमोर्बिडिटी (जैसे स्ट्रोक, दिल के दौरे आदि) के कारण होने वाली घटनाओं को एईएफआई के रूप में दर्ज किया जा सकता है.

इसने आगे सिफारिश की कि राज्य एईएफआई समितियों के स्वरूप में बदलाव कर सदस्य के तौर पर न्यूरोलॉजिस्ट, कार्डियोलॉजिस्ट और श्वसन चिकित्सा विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए जो ऐसी स्थिति में होने वाली घटनाओं के बारे में पहचान कर सके हैं कि ये टीके या टीकाकरण से संबंधित हैं या नहीं.

पत्र में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक राज्य को राज्य के एईएफआई तकनीकी सहयोग केंद्र के रूप में काम करने के लिए कोई एक मेडिकल कॉलेज चुनना होगा. इसकी सलाह है, ‘मेडिकल कॉलेज के क्लिनिकल विशेषज्ञ और सामुदायिक चिकित्सा विभाग के विशेषज्ञ राज्य एईएफआई समिति को किसी मौत के कारणों के तत्काल आकलन, जिलों में मामलों की जांच, कुछ मामलों में एईएफआई का कारण पता लगाने के लिए लैब टेस्ट की जरूरत आदि में सहायता करेंगे. इन विशेषज्ञों को एईएफआई समिति की बैठकों में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है.’

पत्र में राज्य और जिला एईएफआई समितियों की ज्यादा नियमित बैठकों का सुझाव देने के अलावा राज्य एईएफआई समितियों के विशेषज्ञों के लिए प्रशिक्षण अभियान की सिफारिश भी की गई है.

इसमें कहा गया है, ‘वैसे तो राज्य और जिला एईएफआई समितियों को तीन महीने में एक बार बैठक करने की जरूरत होती है, लेकिन जांच से जुड़े मौजूदा मामलों और कैजुअल्टी असेसमेंट का बैकलॉग खत्म करने की आवश्यकता को देखते हुए… यह सिफारिश की जाती है कि ये समितियां महीने में कम से कम एक बार जरूर मिलें. जरूरत पड़ने पर राज्य एईएफआई समितियों को यह निगरानी करते रहना चाहिए कि जिला एईएफआई समिति की बैठकें हर तिमाही या उससे ज्यादा बार हो रही हैं या नहीं.’

मंत्रालय ने राज्य एईएफआई कंसल्टेंट को काम पर रखने की भी सिफारिश की है. इसमें कहा गया है, ‘कोविड-19 टीकाकरण जैसे ही बढ़ाया जाएगा, संवेदनशीलता बढ़ने के कारण एईएफआई में वृद्धि सामने आएगी. इन सभी मामलों में जल्द से जल्द जांच, जिलों द्वारा डॉक्यूमेंट तैयार करने के लिए इसका फॉलोअप और राज्य स्तर पर कैजुअल्टी का आकलन करना जरूरी होगा ताकि सुरक्षा उपायों के बारे में समय पर उपयुक्त कदम उठाए जा सकें.’

केंद्र ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को मिथकों और अफवाहें फैलने से रोकने को लेकर पुख्ता संचार योजनाएं तैयार करने के लिए कहा है.


यह भी पढ़ें: ‘अगर पॉज़िटिव निकला तो क्या होगा?’- नोएडा के रैंडम टेस्ट शुरू करते ही सीमाओं पर यात्रियों में फैला डर


प्रतिकूल दवा प्रतिक्रिया निगरानी केंद्र

मंत्रालय के अनुसार, देशभर में लगभग 300 मेडिकल कॉलेजों और टर्टीयरी केयर हॉस्पिटल में टीके और अन्य दवाओं के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी दर्ज करने के लिए प्रतिकूल दवा प्रतिक्रिया निगरानी केंद्र हैं. जिला टीकाकरण अधिकारियों को ऐसे केंद्रों से संपर्क करना चाहिए और उनसे गंभीर और घातक एईएफआई के बारे में सीधे रिपोर्ट करने का अनुरोध करना चाहिए.

पत्र में ड्रग इंस्पेक्टरों को जांच में शामिल करने की भी सलाह दी गई.

इसमें कहा गया है, ‘जिले के ड्रग इंस्पेक्टर को एईएफआई समिति का सदस्य होना चाहिए और जब भी आवश्यकता हो वह एईएफआई जांच में शामिल हो सकते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments