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Saturday, 2 November, 2024
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कोविड वैक्सीन के लिए आधार का इस्तेमाल किया? मोदी सरकार ने बिना पूछे बना दी आपकी डिजिटल हेल्थ आईडी

प्रधानमंत्री मोदी ने इस सप्ताह आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के शुरुआत की घोषणा की, लेकिन आधार के साथ कोविन एप पर पंजीकरण करने के साथ ही कई भारतीयों के डिजिटल हेल्थ आईडी बन गए हैं, जो बिना पूछे बनाये गए प्रतीत होते हैं.

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नई दिल्ली: यदि आपने कोविड-19 की वैक्सीन लगवाने के लिए अपने पहचान पत्र के रूप में आधार कार्ड का इस्तेमाल किया है, तो इस बात की पूरी संभावना है कि पहले से ही आपकी एक डिजिटल हेल्थ आईडी बन चुकी हो.

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सप्ताह की शुरुआत में ही आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम) को राष्ट्रव्यापी पैमाने पर लागू किये जाने की घोषणा की है, लेकिन दिप्रिंट को पता चला है कि एबीडीएम के तहत पहले से ही उन लोगों की डिजिटल हेल्थ आईडी बनाई जा चुकी हैं जिन्होंने कोविन वेबसाइट में पंजीकरण के लिए अपने आधार कार्ड का उपयोग किया था.

हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस तरह की यूनिक आईडी बनाये जाने हेतु पहले से लोगों की सहमति मांगी गई थी या नहीं. यह ‘यूनिक हेल्थ आईडी’ आपको दिए गए टीकाकरण प्रमाणपत्र पर छपे विवरण का एक हिस्सा है.

इस बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब भी कोई व्यक्ति कोविन वेबसाइट पर अपने आप को रजिस्टर करने के लिए अपने आधार नंबर का उपयोग करता है, तो स्वतः उत्पन्न हो जाती है. टीकाकरण प्रमाण पत्र में भी वह संख्या लिखी होगी. इसके लिए सहमति टीकाकरण केंद्र पर मांगी गई होगी.

परन्तु यदि किसी व्यक्ति ने कोविन पर अपने पंजीकरण के लिए किसी अन्य दस्तावेज जैसे ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड, पासपोर्ट आदि का उपयोग किया है, तो उसकी हेल्थ आईडी नहीं बनी है. विदित हो की कोविन प्लेटफॉर्म लोगों को पंजीकृत करने के लिए आधार के अलावा अन्य छह प्रकार की आईडी (पहचान पत्र) भी स्वीकार करता है.

इस यूनिक हेल्थ आईडी की योजना 14 अंकों की एक पहचान संख्या के रूप में बनाई गई है जो किसी भी व्यक्ति के संपूर्ण चिकित्सा इतिहास से जुड़ी होती है, जिसे केवल एक क्लिक द्वारा ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाता है.

हालांकि, 2020 में जब से इस योजना की पहले-पहल घोषणा की गई थी, तभी से इसकी गोपनीयता और इस प्रणाली के द्वारा भारी मात्रा में उत्पन्न किये गए डेटा, जो एक सिस्टम से जुड़ा होगा, की सुरक्षा के बारे में चिंताएं उठाई जा रहीं है. इस क्षेत्र में काम करने वाले वकीलों का कहना है कि यह तथ्य कि इस तरह की कोई आईडी बिना उपयोगकर्ता की सहमति के तैयार की जा रही है, भी संभावित रूप से समस्या का कारण बन सकता है

दिप्रिंट ने इस बारे में टिप्पणी प्राप्त करने के लिए, विशेष रूप से इस तरह से बनाए गए डिजिटल आईडी की संख्या और इसके लिए सहमति कैसे मांगी गई के बारे में जानकारी हेतु, फोन और ईमेल पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) और स्वास्थ्य मंत्रालय से संपर्क किया. लेकिन बुधवार और गुरुवार को कई बार याद दिलाने के बावजूद इस रिपोर्ट के प्रकाशित किये जाने तक उनकी कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हो सकी.

अधिकारियों ने बताया कि इस बारे में प्रतिक्रिया के लिए ‘उच्चतम स्तर से मंजूरी’ अभी लंबित है.

दिप्रिंट ने एनएचए के सीईओ, आर.एस. शर्मा से भी फोन और व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से संपर्क किया लेकिन उनसे भी अभी तक कोई सूचना नहीं मिली है.


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छह केंद्र शासित प्रदेशों में चला पायलट कार्यक्रम

एबीडीएम वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इस पोर्टल के माध्यम से अभी तक कुल 19,02,000 स्वास्थ्य आईडी तैयार की गई हैं. दूसरी तरफ कोविन पोर्टल पर वर्तमान में वैक्सीन पंजीकरण की संख्या 71,13,05,999 है. अधिकारियों ने कहा कि इसमें से अधिकांश आधार कार्ड का उपयोग करके किये गए थे.

27 सितंबर को राष्ट्रव्यापी स्तर पर शुरू किये जाने से पहले इस योजना को छह केंद्र शासित प्रदेशों – पुडुचेरी, चंडीगढ़, लद्दाख, लक्षद्वीप और दमन और दीव तथा दादरा- नगर हवेली – में एबीडीएम के पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चलाया जा रहा था. इनके लिए पंजीकरण पिछले साल शुरू हुआ था.

इस बीच आधिकारिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि अब तक बनाये गए अधिकांश स्वास्थ्य आईडी कोविन के माध्यम से तैयार किये गए हैं.

डिजिटल मिशन पॉलिसी के अनुसार, इस यूनिक हेल्थ आईडी को प्राप्त करना पूरी तरह से स्वैच्छिक है.

हेल्थ डेटा पॉलिसी से जुड़ा दस्तावेज़ कहता है, ‘…. एनडीएचई (नेशनल डिजिटल हेल्थ इको सिस्टम – राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र) में किसी भी व्यक्ति की भागीदारी स्वैच्छिक आधार पर होगी और यदि कोई व्यक्ति इसमें भाग लेना चाहता है, तो उसे एनडीएचएम (नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन – राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य अभियान) द्वारा एक स्वास्थ्य आईडी (इस नीति में परिभाषित) जारी किया जाएगा. यदि कोई व्यक्ति किसी भी तरह की स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाना चाहता है, तो व्यक्ति की स्वास्थ्य आईडी को आधार या पहचान के किसी अन्य तरीके, जैसा कि एनडीएचएम द्वारा निर्दिष्ट किया गया हो, से सत्यापित किया जा सकता है.’

इस बारे में जानकारी रखने वाले अधिकारियों के अनुसार, कोविन के माध्यम से तैयार किये गए स्वास्थ्य आईडी में सहमति की कमी के मुद्दे पर आंतरिक रूप से चर्चा की गई थी, और जब ऐसी आईडी से उत्पन्न डेटा की बात आती है तो एक समस्या खड़ी होती ही है.

एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘अभी के लिए तो यह सिर्फ टीकाकरण प्रमाण पत्र है, लेकिन बहुत से लोगों को यह भी नहीं पता है कि उनका हेल्थ आई डी के लिए एनरोलमेंट हो चुका है. यहां गोपनीयता की समस्या है. यही कारण है कि एबीडीएम वेबसाइट अब देशभर में हुए कुल नामांकन की संख्या न बताकर सिर्फ उस पोर्टल के माध्यम से किए गए नामांकन की संख्या ही बताती है.’


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‘कानून कहां है?’

इस बारे में कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि बिना सहमति के यूनिक हेल्थ आईडी बनाये जाने से निजता की चिंता तो बढ़ ही जाती है, लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह है कि इस पूरे डिजिटल हेल्थ मिशन के पीछे का कानूनी ढांचा अथवा आधार क्या है?

सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रसन्ना एस, जो गोपनीयता से सम्बंधित मामले देखते हैं., ने कहा ‘स्वास्थ्य आईडी का कोई कानूनी ढांचा नहीं है. किसी भी तरह कानूनी ढांचा तैयार किये बिना आपके पास स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई पहचानकर्ता नहीं हो सकता है. वैसे तो हर बात में वे (केंद्र सरकार) कहते रहते हैं कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है. फिर केंद्र सरकार हेल्थ आईडी कैसे बना रही है?’

प्रसन्ना आगे कहते हैं, ‘यह बिना किसी विचार के और बुरी तरह तैयार की गई एक योजना है. निश्चित रूप से इसमें गोपनीयता संबंधी चिंताएं हैं. अतः राज्य को इसे न्यायोचित ठहराना होगा और उसका पहला चरण कानून है. यदि यह इस बारे में कोई कानून पारित करता है, तो हम जान जायेंगे कि यह केंद्र की विधायी क्षमता से परे है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आपके पास एक कानून होना चाहिए, फिर यह अभी तक बिना कानून के क्यों है? क्या उन्होंने इस बारे में कोई कानूनी राय ली भी है? उन्होंने किस क़ानूनी मामलों से सम्बंधित अधिकारी से परामर्श किया और उन्होंने क्या कहा?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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