scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमहेल्थविशेषज्ञों ने कहा- भारत में 70% कैंसर रोगियों को लॉकडाउन के दौरान उचित देखभाल नहीं मिल पाई

विशेषज्ञों ने कहा- भारत में 70% कैंसर रोगियों को लॉकडाउन के दौरान उचित देखभाल नहीं मिल पाई

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि मार्च के अंत से मई के अंत तक 50,000 से अधिक जीवन-रक्षक सर्जरी रद्द कर दी गईं और कैंसर फंडिंग में भी 5 से 100% तक गिरावट आई.

Text Size:

नई दिल्ली: कोविड-19 के कारण भारत में लगभग 70 फीसदी कैंसर रोगियों को जीवन रक्षक इलाज नहीं मिल सका. यह बात वैज्ञानिकों, जिसमें चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) भी शामिल है, के एक आकलन में सामने आई है.

माना जा रहा है कि अप्रैल और मई में कैंसर संबंधी सेवाओं में 50 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि मार्च के अंत से मई के अंत तक कम से कम 51,100 जीवन रक्षक कैंसर सर्जरी रद्द कर दी गईं.

इंडिया कैंसर रिसर्च कंसोर्टियम (आईसीएमआर द्वारा स्थापित) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. रवि मेहरोत्रा व अन्य वैज्ञानिकों ने एएससीओ पोस्ट में लिखे एक लेख में बताया है, ‘…लगभग 70% रोगियों को जीवनरक्षक सर्जरी और उपचार नहीं मिल सका. कीमोथेरेपी और उसके बाद होने वाला इलाज टालना पड़ा था. यहां तक कि प्रमुख भारतीय शहरों में निजी क्लीनिकों में कैंसर और मधुमेह का इलाज कराने के लिए आने वालों की संख्या में पहले की तुलना में लगभग 50% की कमी दर्ज की गई. अप्रैल और मई में पिछले साल इसी अवधि की तुलना में कैंसर सेवाओं में 50% की गिरावट आई है (भारत के प्रमुख निजी कैंसर अस्पतालों के आंकड़ों के मुताबिक).’

एएससीओ पोस्ट एक साइंस न्यूजपेपर है जिसे 2010 में अमेरिकन सोसायटी ऑफ क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी (एएससीओ) के साथ साझेदारी में स्थापित किया गया था.

लेख के मुताबिक, ‘सर्जरी की बात की जाए तो 2019 में इसी अवधि की तुलना में इनकी संख्या 20 फीसदी ही रही. और मार्च के अंत से मई के अंत तक भारत में कम से कम 51,100 जीवन रक्षक कैंसर सर्जरी रद्द कर दी गईं.’

इसमें आगे कहा गया, ‘कैंसर के इलाज के बाद नियमित रूप से होने वाली देखभाल न मिलने, पहले से तय आपात सर्जरी न करा पाने, और कीमोथेरेपी के बाद घर तक पहुंचने में सक्षम नहीं होने जैसी कुछ समस्याएं आम थीं जिसकी वजह से कुछ मामलों में मरीज की मौत भी हो गई.’

मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. राकेश चोपड़ा और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय स्थित सेंटर फॉर सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ में सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ता डॉ. कविता यादव इस पेपर के सह-लेखकों में शामिल हैं. डॉ. मेहरोत्रा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च के पूर्व निदेशक हैं.

सबक सीखने की जरूरत

डॉ. मेहरोत्रा ने दिप्रिंट से कहा कि नकारात्मक पहलू देखने के बजाये इस महामारी से दीर्घकालिक सबक सीखना ज्यादा जरूरी है.

उन्होंने कहा, ‘हमने पेपर में पिछले करीब आठ माह की स्थिति की समीक्षा की है, लेकिन मुझे लगता है कि यह महामारी भविष्य के लिए हमारी स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने का एक शानदार अवसर है. स्वास्थ्य पर जीडीपी का महज एक फीसदी खर्च करने के बजाये हमें आदर्श रूप से यह राशि बढ़ाकर तीन से पांच गुना तक करनी चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘भविष्य के लिए सबक लेना महत्वपूर्ण है और जो कुछ किया गया है, उस पर भी आगे और काम करने की जरूरत है. महामारी के दौरान सरकार ने धूम्रपान रहित तंबाकू की बिक्री बंद कर दी, थूकना प्रतिबंधित कर दिया. क्यों न बेहतरी के लिए इसे धुआंरहित तंबाकू बिक्री को रोकने का एक अवसर बना लिया जाए? कोविड, अब एक गंभीर संक्रमण है, यह समस्या जल्द दूर होने वाली नहीं है.’


यह भी पढ़ें : संसदीय पैनल ने कहा- धीमी टेस्टिंग और ख़राब कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग से कोविड मामलों में आया उछाल


शोधकर्ताओं ने लिखा, ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने मार्च 2019 की तुलना में मार्च 2020 में बच्चों में खसरा, मम्प्स, और रूबेला के टीकाकरण में 69% की कमी, स्वास्थ्य केंद्रों में प्रसव 21% घटने, हृदयाघात की स्थिति में अस्पताल आने वालों की संख्या 50% घटने और अस्पताल आने वाले फेफड़ों के रोगियों की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से 32% की कमी दर्ज की है.’

संभावित फंड कटौती को लेकर चिंता

तीनों शोधकर्ताओं ने इस बात पर चिंता जताई कि अनलॉक के बाद मुंबई के टाटा मेमोरियल जैसे अस्पतालों में सर्जरी शुरू हो जाने के बावजूद ऐसे कैंसर रोगियों का ‘भारी बैकलॉग’ है जिन्हें उपचार की जरूरत है.

उन्होंने लिखा, ‘एक तरफ अस्पताल कोविड-19 मरीजों की बढ़ती संख्या के बोझ से जूझ रहे हैं, और दूसरी तरफ बैकलॉग मामलों का प्रबंधन उनके लिए एक दुष्कर कार्य बन गया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अस्पतालों को न केवल एहतियाती उपाय (पीपीई किट पहनने) अपनाने की आवश्यकता है, बल्कि कुछ नियमों (जैसे, प्रत्येक रोगी के साथ अटेंडेंट की संख्या सीमित रखना, मरीज को देखने आने लोगों की संख्या घटाना और किसी मामले में फॉलोअप के लिए ऑनलाइन या दूरसंचार जैसे माध्यमों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना) का कड़ाई से पालन करना भी बेहद जरूरी है.’

इसके अलावा, उन्होंने भारत में कैंसर फंडिंग में 5 से 100 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान भी जताया है. निजी/चैरिटी सेक्टर सबसे बुरी तरह प्रभावित है जिससे इसकी फंडिंग में 60 फीसदी से अधिक की कमी अनुमानित है.

उन्होंने कहा, ‘इन निष्कर्षों के विपरीत इस वर्ष के शुरू में की गई कुछ ज्यादा ही महत्वाकांक्षी घोषणाओं (उदाहरण के तौर पर 15 अगस्त तक कोरोनवायरस वैक्सीन लॉन्च करना) ने आने वाले की तस्वीर को और धुंधला कर दिया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments