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Saturday, 16 November, 2024
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सरकार ने चेताया- टीकाकरण में तेजी न आई तो तीसरी लहर और बदतर होगी, हर दिन 6 लाख मामले आएंगे

गृह मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान का कहना है कि बच्चों के लिए टीकाकरण, खासकर कोमोर्बिडिटी वालों के लिए तत्काल प्राथमिकता होनी चाहिए.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका की तुलना में भारत में टीकाकरण की गति बहुत धीमी है. विभिन्न संस्थानों की तरफ से किए गए अध्ययनों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि यदि यही दर रही तो तीसरी लहर के दौरान कोविड केस की संख्या हर दिन छह लाख के पार पहुंच सकती है. रिपोर्ट को इसी माह के शुरू में एनआईडीएम की वेबसाइट पर साझा किया गया था.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जहां अमेरिका और अन्य देशों के आंकड़ों का हवाला देते हुए दावा किया है कि भारत की कोविड टीकाकरण दर सबसे अधिक है, वहीं एनआईडीएम, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) के तहत काम करता है, की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में कोरोनावायरस टीकाकरण अभियान के गति पकड़ने की जरूरत है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘तीसरी लहर के प्रभाव को टीकाकरण में तेजी लाकर ही काफी हद तक चुनौती दी जा सकती है, लेकिन अभी केवल 7.6 प्रतिशत (10.4 करोड़) लोगों का ही पूर्ण टीकाकरण हुआ है…पंडित दीनदयाल एनर्जी यूनिवर्सिटी (पीडीईयू) के प्रोफेसरों और पूर्व छात्रों की तरफ से निरमा यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर किए गए एक हालिया अध्ययन के मुताबिक भारत की टीकाकरण दर मौजूदा समय में 3.2 फीसदी है, जिसमें यदि सुधार नहीं हुआ तो भारत में अगली (तीसरी) लहर में प्रतिदिन 6 लाख मामले तक आ सकते हैं.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘अगर सरकार का यह दर पांच गुना (प्रतिदिन 1 करोड़ खुराक) बढ़ाने का प्रस्ताव वाकई अमल में आ पाता है तो देश में तीसरी लहर के चरम के दौरान (दूसरी लहर में सामने आए मामलों की तुलना में) केवल 25 प्रतिशत मामले ही आएंगे.’

रिपोर्ट बनाने के दौरान जिन विशेषज्ञों से परामर्श किया गया उनमें ए.के. सेंगर, महानिरीक्षक, नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) और डॉ. अमित मुरारी, कमांडेंट, एनडीआरएफ, डॉ अनुराग अग्रवाल, निदेशक, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद— जीनोमिक्स और एकीकृत जीवविज्ञान संस्थान (सीएसआईआर-आईजीआईबी), डॉ एम.सी. मिश्रा, पूर्व निदेशक, एम्स, डॉ गगनदीप कांग, प्रोफेसर, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर, डॉ ज्योति बिंदल, कुलपति, श्री अरबिंदो यूनिवर्सिटी इंदौर और डॉ देबाशीष दास, चीफ साइंटिस्ट, सीएसआईआर-आईजीआईबी आदि शामिल थे.

रिपोर्ट में कहा गया है कि चिकित्सा संबंधी बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर ‘तत्काल ध्यान देना बहुत जरूरी है खासकर जब देश में कभी भी तीसरी लहर की आशंका बनी हुई है.’

इसमें कहा गया है, ‘सार्वजनिक चिकित्सा ढांचा कमजोर है, खासकर बच्चों के लिए योग्य चिकित्सा कर्मचारियों की भारी कमी है और फिर ग्रामीण और शहरी भारत के बीच बहुत बड़ा अंतर बना हुआ है. वैक्सीनेशन (जिसे महामारी से बचने का एकमात्र तरीका माना जा रहा है) भी अन्य देशों की तुलना में धीमा रहा है (भारत में 7.6 फीसदी टीकाकरण दर की तुलना में अमेरिका में यह आंकड़ा 50 प्रतिशत है). इस महामारी के दौरान तो अपने नागरिकों की रक्षा और सुरक्षा पर ध्यान देना सरकार के लिए एक अहम जिम्मेदारी है.’

रिपोर्ट देश में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के कम टीकाकरण कवरेज को लेकर भी चिंता जताती है और राज्यों से लैंगिंक आधार पर अंतर को खत्म करने का आग्रह करती है.

इसके मुताबिक, ‘…वैक्सीन कवरेज का अनुपात… प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाओं के लिए 856 खुराक, भारत में 924 महिला प्रति 1,000 पुरुष के मौजूदा लिंगानुपात से मेल नहीं खाता. भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में महिलाओं का टीकाकरण कवरेज 42 फीसदी है, पश्चिम बंगाल में 44 प्रतिशत महिलाओं का कवरेज है, दादरा और नगर हवेली (मुख्य रूप से ग्रामीण केंद्रशासित प्रदेश) में यह आंकड़ा 30 फीसदी है. केवल कुछ राज्यों— केरल और आंध्र प्रदेश में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का वैक्सीन कवरेज अधिक है. ग्रामीण महिलाओं के मामले में तो टीकाकरण कवरेज और भी कम है.’


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तीसरी लहर और बच्चे

रिपोर्ट काफी हद तक इस तरह की आशंकाओं पर आधारित है कि तीसरी कोविड लहर- जब कभी भी यह आएगी- में सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतने वाले बच्चे होंगे. लेकिन साथ ही इसने इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स और लैंसेट कोविड-19 कमीशन इंडिया टास्क फोर्स— जो लैंसेट कोविड-19 कमीशन (स्वास्थ्य विज्ञान, व्यवसाय, वित्त एवं सार्वजनिक नीति में एक इंटरडिसिप्लिनरी पहल) के काम का समर्थन करने वाली 12 टास्क फोर्स में एक है— के निष्कर्षों का हवाला देते हुए कहा कि यह परिकल्पना सही होने का कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है.

यह आकलन करने के लिए जून और जुलाई में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की तरफ से किए गए चौथे देशव्यापी सीरो सर्वे के आंकड़ों को भी आधार बनाया गया है. सीरो सर्वे के मुताबिक, 2-17 वर्ष आयु वर्ग के 55.7 प्रतिशत लोगों में एंटीबॉडी के लिए परीक्षण से पाया गया है कि वे पहले ही सार्स-कोव-2 वायरस के संपर्क में आ चुके हैं.

हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक घबराने की जरूरत तो नहीं है लेकिन चिंता करने का कारण तो है ही, क्योंकि भारत में 18 साल से कम उम्र के बच्चों का टीकाकरण नहीं होता है.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘इसके अलावा, बच्चों के इलाज की मौजूदा सुविधाएं बड़े पैमाने पर बच्चों का इलाज करने के लिहाज से पर्याप्त मजबूत नहीं हैं. महामारी का किसी भी देश के भविष्य पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है, हालांकि, लैंसेट कोविड-19 कमीशन इंडिया टास्क फोर्स की रिपोर्ट यह भी बताती है कि बच्चों में वयस्कों की तुलना में बीमारी का असर मामूली होता है और मृत्यु दर भी कम रहती है लेकिन कोमोर्बिडिटी वालों के लिए ज्यादा जोखिम हो सकता है.’


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‘बच्चों का टीकाकरण प्राथमिकता’

एनआईडीएम ने सिफारिश की है कि बच्चों, खासकर कोमोर्बिडिटी वालों के टीकाकरण को तत्काल प्राथमिकता दी जानी चाहिए और शिक्षकों और स्कूल कर्मचारियों को आवश्यक स्टाफ मानकर टीका लगाया जाना चाहिए. रिपोर्ट में प्राथमिकता के आधार पर गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण की सिफारिश भी की गई है.

इसने कोविड के अनुरूप व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए सामुदायिक भागीदारी और हेल्थ कम्युनिकेशन पर भी जोर दिया है.

इसमें कहा गया है, ‘कोविड के अनुरूप व्यवहार (सीएबी) अपनाने के संबंध में पब्लिक हेल्थ मैसेजिंग व कम्युनिकेशन और टीकाकरण सामुदायिक भागीदारी पर आधारित होना चाहिए और खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में समुदाय के सदस्यों की विशिष्ट चिंताओं को दूर करना चाहिए. जोखिम संबंधी कम्युनिकेशन का उद्देश्य, क्या करें और क्या न करें के पीछे के कारणों को यथोचित ढंग से समझाकर जागरूकता पैदा करना होना चाहिए ताकि लोग निर्देशों-दिशानिर्देशों का आंख मूंदकर मान लेने के बजाये तार्किक आधार पर उनका पालन कर सकें.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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