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Friday, 3 May, 2024
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सर्वोच्च न्यायलय ने कहा आधार वैधानिक पर निजी संस्थाओं को आधार मांगने का अधिकार नहीं

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सर्वोच्च न्यायालय ने आधार के उस अनुच्छेद को खारिज कर दिया है जिसमें मोबाइल कंपनी, बैंक और स्कूल आधार की मांग कर रहे थे.

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र की प्रमुख परियोजना आधार योजना को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया है.
इस फैसले ने आधार पर उत्पन्न उस विवाद को फिलहाल शांत कर दिया है जिसमें कहा गया था कि आधार की अनिवार्यता निजता के अधिकार का हनन है.

सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि आधार का मतलब अद्वितीय है और सबसे अच्छा होने से अद्वितीय होना बेहतर है.
आधार मामलों पर पहले तीन आदेश न्यायमूर्ति सीकरी ने सुनाएं. उन्होंने अपने साथ साथ मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर के आदेश भी सुनाए.

बेंच ने आधार कानून के अनुच्छेद 57 को निरस्त कर दिया है जिसमें न केवल सरकार बल्कि किसी भी कंपनी अधिकारी या निजी कंपनी को आधार मांगने का अधिकार था. सेक्शन 57 ने मोबाइल कंपनियों, स्कूल और निजी सेवा देने वाली कंपनियों को जांच के लिए आधार मांगने का अधिकार दिया हुआ था.

खंडपीठ ने ये भी आदेश दिया कि बैंक खातों को आधार से जोड़ना अनिवार्य नहीं.

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अदालत ने केंद्र से डाटा सुरक्षा पर जल्द से जल्द कानून लाने की मांग की.

इस बड़े फैसले में खंडपीठ ने कहा कि आधार ने समाज के हाशिये पर रह रहे वर्ग को एक विशिष्ट पहचान दी है. पर साथ ही अदालत ने कहा कि आधार एक्ट में बदलाव लाया जाए ताकि सह सचिव के लेवल से नीचे का अधिकारी आधार डाटा को शेयर न कर सके.

जस्टिस सीकरी ने बहुमत से दिए गए आदेश में कहा कि आधार संरचना में व्यापक सेफगार्ड है और केंद्र ने इसकी वैधता और ज़रूरत पर प्रभावी ढ़ंग से अपना पक्ष पेश किया है.

दोनो पक्षों ने क्या कहा

बहस के दौरान सरकार ने कई लाभ और कल्याणकारी सेवाओं के लिए आधार को अनिवार्य बनाने के अपने कदम का बचाव किया. बैंक खाते, पैन कार्ड, मोबाइल फोन सेवाएं, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस के लिए भी आधार अनिवार्य था.

साथ ही, सरकार ने भरोसा दिलाया कि आधार उचित लाभार्थियों को सहायता की लक्षित डिलीवरी सुनिश्चित करेगा जिससे लाखों लोगों का भला होगा और यह प्रक्रिया और भी मज़बूत होगी.

 


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हालांकि याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि आधार निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन था. उन्होंने तर्क दिया कि फिंगरप्रिंट और आईरिस स्कैन के विशाल डाटाबेस की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती.

मामला क्या है

आधार की संवैधानिक वैधता और इसे लागू करने वाले वर्ष 2016 के कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर साढ़े चार महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। यह वर्ष 1973 में केशवनंद भारती के ऐतिहासिक मुकदमे के बाद इसे सुनवाई के हिसाब से दूसरा लंबा मुकदमा माना गया है।

अब तक देश में 1.21 अरब लोग आधार बनवा चुके हैं और बैंक खातों में सीधे सब्सिडी से लेकर तमाम अन्य तरह की लाभ योजनाओं को लागू करने में इसे बेहद अहमियत दी गई है.

इस मामले में पूर्व हाईकोर्ट जज केएस पुत्तास्वामी समेत करीब 31 याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई की थी. इन सभी का कहना था कि आधार योजना शीर्ष अदालत की 9 सदस्यीय सांविधानिक पीठ की तरफ से निजता के अधिकार पर दिए गए फैसले का उल्लंघन है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 38 दिनों तक चली मैराथन सुनवाई के बाद गत 10 मई को इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

 


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अदालत की चिंता

अदालत की मुख्य चिंता निजता के अधिकार के हनन को लेकर थी. अगस्त 2017 में अदालत ने निजता को मूलभूत अधिकार बताया था. और आधार मामलों की सुनवाई में ये सवाल बार बार उठ रहा था.

अदालत का ध्यान कथित रूप से अमरीकी चुनाव में फेसबुक के डाटा लीक होने से उत्पन्न हुए विवाद पर भी था. और अदालत ने डाटा सुरक्षा पर चिंता जताई थी.

“सबसे बड़ा खतरा है कि जो डाटा मौजूद है वो चुनाव परिणाम पर प्रभाव डाल सकता है ..सवाल ये है कि क्या लोकतंत्र बचेगा अगर आधार डाटा को चुनाव को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है,” जस्टिस चंद्रचूड़ ने चिंता व्यक्त की.

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