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Friday, 19 April, 2024
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शहीद भगत सिंह, एक हर-दिल-अज़ीज़ क्रांतिकारी

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भगत सिंह की 111वीं जन्मतिथि के अवसर पर दिप्रिंट ने उनके क्रांतिकारी बनने के पीछे का कारण जानने की कोशिश की. साथ ही हम यह भी देखेंगे कि वे आज भी इतने सम्मानित क्यों हैं.

नई दिल्ली: शहीद भगत सिंह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के उन दुर्लभ सेनानियों में से हैं जिनका सम्मान हमारे राजनैतिक जगत का हर पक्ष करता है.

जहां वामपंथी उनकी समाजवादी विचारधारा के पक्षधर हैं वहीँ दक्षिणपंथी उनकी देशभक्ति और राष्ट्रवाद के प्रशंसक हैं. जहां तक कांग्रेस की बात है तो वह इन क्रांतिकारियों के तरीके से सहमत हुए बिना स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को स्वीकारती है.


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उनका जन्मदिन (28 सितंबर, 1907) और शहादत (23 मार्च 1931 ) देश भर में, विशेष रूप से उत्तरी भारत में हर साल मनाया जाता है.

एक क्रांतिकारी का जन्म

भगत सिंह का जन्म पंजाब के लायलपुर ज़िले (जो अब पाकिस्तान में फैज़लाबाद के नाम से जाना जाता है) के बंगा गांव के एक संपन्न संधू जाट परिवार में हुआ था. भगत सिंह का परिवार मूल रूप से नवांशहर के खटकर कलां गांव का रहनेवाला था. उनके परिवार पर स्वामी दयानन्द सरस्वती के आर्य समाज का काफी असर था. आर्य समाज एक हिन्दू सुधारवादी आंदोलन है जो मूर्तिपूजा का विरोध करता है और जाति आधारित भेदभाव में यकीन नहीं रखता.

उनके दादा अर्जुन सिंह उन लोगों में थे जिन्हें स्वामी दयानन्द ने स्वयं पवित्र धागा दिया था. इसके फलस्वरूप भगत सिंह अन्य सिख बच्चों की तरह खालसा स्कूल न जाकर लाहौर के दयानंद एंग्लो वेदिक (डीएवी) हाईस्कूल गए. उसके बाद उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाई की.

16 साल की उम्र में भगत सिंह ने पंजाब हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित एक निबंध प्रतियोगिता जीती. उनके निबंध ‘”दि प्रॉब्लम ऑफ़ पंजाब्ज लैंग्वेज ऐंड स्क्रिप्ट” को पुरस्कृत किया गया. बाद में उन्होंने जेल में (1930) अपना प्रसिद्ध निबंध “मैं नास्तिक क्यों हूँ” लिखा.

भगत सिंह और उनके पिता में उनके क्रांतिकारी विचारों को लेकर मतभेद थे और जब उनके पिता ने उनपर शादी के लिए दबाव डाला तो सत्रह वर्षीय भगत कानपुर (अब उत्तर प्रदेश में) भाग गये.

समाजवाद

इतालवी क्रांतिकारियों ज्यूसेप मैज़िनी और ज्यूसेप गैरीबाल्डी के विचारों पर अमल करते हुए 1926 नौजवान भारत सभा की स्थापना की गयी और भगत सिंह इसके महासचिव बने.

भगत सिंह और उनके साथियों का विश्वास था क्रांतिकारी पार्टी का एजेंडा समाजवादी होना चाहिए और 1928 में वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में बदलने में कामयाब रहे.

हालांकि वे गांधी को महान मानते थे लेकिन भगत सिंह का भी अन्य क्रांतिकारियों की तरह उनकी अहिंसक विचारधारा से मोहभंग हो चुका था. 1922 में चौरी-चौरा की घटना के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन रोक दिया जिसके फलस्वरूप भगत सिंह ने गांधी के अहिंसक आंदोलन से अलग होने का निर्णय लिया.

सॉण्डर्स की हत्या और सेंट्रल असेम्ब्ली में बम

1928 में एक प्रदर्शन में लाहौर के पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया जिससे लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और बाद में उनका निधन भी हो गया.

उनकी मृत्यु का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने जय गोपाल, राजगुरु और चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर स्कॉट की हत्या करने की योजना बनाई लेकिन गलती से उसके सहायक जॉन सॉण्डर्स को गोली मार दी. अगले दिन क्रांतिकारियों ने इस घटना की ज़िम्मेदारी लेते हुए इश्तिहार भी लगाए.

इस सब के बावजूद भगत सिंह भूमिगत रहने और क्रांतिकारी आंदोलन में योगदान करने में कामयाब रहे. फिर, 8 अप्रैल 1929 को उन्होंने और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेन्ट्रल असेम्ब्ली में बम फेंका जिसका उद्देश्य किसी की जान लेना नहीं था. इस घटना के जुर्म में वे हिरासत में ले लिए गए.

उनकी क्रांतिकारी प्रवृत्तियां केंद्रीय जेल में भी देखने को मिली जब उन्होंने एक भूख हड़ताल का नेतृत्व किया जिसने प्रशासन को हिलाकर रख दिया. इसके फलस्वरूप सरकार ने सॉण्डर्स हत्याकांड (जिसे बाद में लाहौर षड्यंत्र का नाम दिया गया) के मुकदमे की सुनवाई तय तारीख से पहले करके उन्हें लाहौर की केंद्रीय जेल में स्थानांतरित कर दिया, और बम विस्फोट के मामले में उनका कारावास थोड़े समय के लिए स्थगित कर दिया.

सुनवाइयों की एक लंबी श्रृंखला के बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 अक्टूबर 1930 के दिन सॉण्डर्स की हत्या के जुर्म में मौत की सज़ा सुनाई गई.

23 मार्च 1931 को निर्धारित समय से 11 घंटे पहले ही तीनों को लाहौर की सेन्ट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया.

शहीद के रूप में पहचान

हालांकि जनता उन्हें अनुसार ‘शहीद’ भगत सिंह के रूप में जानती है आधिकारिक दस्तावेज़ों के अनुसार वे शहीद नहीं हैं.

2013 में एक आरटीआई के जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा कि भगत सिंह की ‘शहादत ‘ दिखाने के लिए उनके पास कोई दस्तावेज़ नहीं थे. इसके जवाब में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि आधिकारिक रिकॉर्ड न होने के बावजूद, “भगत सिंह स्वतंत्रता संग्राम के उच्चतम लक्ष्य की प्राप्ति में शहीद हुए थे.”

शहीदों की आधिकारिक सूची प्रकाशित करने की मांग के जवाब में, पंजाब सरकार ने मई 2018 में कहा कि वह भगत सिंह और उनके साथियों को यह उपाधि प्रदान नहीं कर सकती क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 18 में राज्य को किसी को कोई भी उपाधि देने की मनाही की गयी है.

जनवरी 2018 में राज्यसभा के तत्कालीन उप सभापति पीजे कुरियन ने सरकार से भगत सिंह के “क्रांतिकारी आतंकवादी” होने के सभी उल्लेखों को हटाने का अनुरोध किया था. दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास पाठ्यक्रम में लगी किताब जिसे दिवंगत इतिहासकार बिपन चंद्रा ने तीन अन्य लेखकों के साथ मिलकर लिखा है, भगत सिंह को इस नाम से सम्बोधित करती है.


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इस वर्ष भगत सिंह की मौत की सालगिरह के अवसर पर उनको समर्पित एक संग्रहालय का उद्घाटन उनके पुश्तैनी गांव खटकर कलां में किया गया जो पंजाब के शहीद भगत सिंह ज़िले में पड़ता है.

पंजाब सरकार ने नव निर्मित चंडीगढ़ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम भगत सिंह के ऊपर रखने का अनुरोध केंद्र सरकार से किया है लेकिन हवाईअड्डे में 24.5 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली हरियाणा सरकार ने आरएसएस नेता मंगल सेन का नाम सुझाया है. इस मामले में अंतिम फैसला लिया जाना अभी बाकी है.

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