कानूनविद सोली सोराबजी ने कहा, सीबीआई निदेशक को हटाने में हड़बड़ी संदेह पैदा करती है, सरकार को सुप्रीम कोर्ट में अकाट्य प्रमाण देना चाहिए.
नई दिल्ली: जाने माने कानूनविद सोली सोराबजी ने कहा है कि मोदी सरकार ने जिस तरीके से सेंट्रल ब्यूरो आॅफ इनवेस्टीगेशन यानी सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को हटाया है, उससे लोगों के दिमाग में शक पैदा हुआ है.
सोली सोराबजी ने गुरुवार को दिप्रिंट को बताया कि हालांकि, सुप्रीम कोर्ट वर्मा को हटाए जाने के विवादित कदम की कानूनी वैधता को देख रहा है, लेकिन प्रथमदृष्टया ऐसा लगता है कि सरकार पदासीन सीबीआई निदेशक को हटाने में तय प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं कर सकती, न ही ऐसी हड़बड़ी दिखा सकती है.
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उन्होंने सरकार के कदम को गैरकानूनी तो नहीं कहा लेकिन उनका कहना था कि ‘सरकार को सुप्रीम कोर्ट के सामने विश्वसनीय और अकाट्य प्रमाण देना चाहिए क्योंकि किसी का कार्यकाल पूरा होने से पहले उसकी छुट्टी कर देना असाधारण है.
पूर्व अटॉर्नी जनरल ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट जानना चाहेगा कि यह हड़बड़ी क्यों दिखाई गई.’ उन्होंने कहा, ‘सरकार को इस मामले में जवाब देना है और वह यह नहीं कह सकती कि हमने ऐसा इसलिए किया क्योंकि हम सरकार हैं.’
वर्मा की याचिका पर सुनवाई
वर्मा को छुट्टी पर भेजने के इस अनपेक्षित कदम के कुछ ही घंटों बाद वर्मा ने इसे अवैध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने वर्मा और अस्थाना के खिलाफ जांच को पूरा करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया है.
सोराबजी ने कहा, ‘सरकार द्वारा ऐसी कार्रवाई टालने योग्य थी और सरकार को यह कदम उठाने से बचना चाहिए था.’
उन्होंने सवाल किया, ‘यह आधी रात का नाटक क्यों खेला गया? ऐसी क्या आपात स्थिति थी? मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि ऐसी कोई आपात स्थिति थी कि आधी रात को ऐसा निर्णय लिया जाता.’
हालांकि उन्होंने कहा, संदेह और साक्ष्य दोनों एक जैसे नहीं होते. अगर सरकार यह साबित करने में सक्षम है कि वर्मा को तुरंत हटाने की अनिवार्यता थी तो तय प्रक्रिया को दरकिनार किया जा सकता है.’
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में विनीत नारायण बनाम भारत सरकार मामले में अपने निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा था कि ‘किसी भी असाधारण परिस्थिति में, किसी विशेष कार्यभार संभालने के लिए भी, सीबीआई के पदासीन निदेशक को हटाने के लिए चयन समिति की अनुमति जरूरी है.’
इस चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामांकित कोई अन्य सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश होते हैं. यह समिति ही सीबीआई निदेशक का चयन करती है.
सोली सोराबजी कहते हैं कि अगर सरकार यह स्थापित कर सकती है कि ऐसी असाधारण परिस्थिति बन गई थी कि सीबीआई को निदेशक को हटाना पड़ा तो संभव है कि वह अदालत में भी अपनी कार्यवाही को उचित ठहरा सके.
सीबीआई विवाद और उसकी छवि
सोराबजी ने कहा कि सीबीआई के सर्वोच्च अधिकारियों का इस तरह का सार्वजनिक झगड़ा और फिर उसके बाद सरकार की कार्रवाई ने इस जांच एजेंसी की छवि को खराब किया है.
उन्होंने कहा, ‘मैं इसे कोई संकट नहीं कहूंगा, लेकिन इसने एजेंसी की छवि को खराब किया है जो कि अपने आप में अच्छा नहीं है. अगर जनता जांच एजेंसी की निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता पर संदेह करने लगेगी तो यह बुरा होगा, यह नहीं होना चाहिए.’
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इस विवाद के चलते जनता का विश्वास डगमगाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि चिंता का कोई कारण न हो, लेकिन सरकार को आत्मविश्लेषण करना चाहिए कि क्या इस परिस्थिति से बचा जा सकता था? क्योंकि अगर एक बार जनता का विश्वास हिल जाता है तो यह अच्छी बात नहीं है.’
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