पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘जब आप किसी जांच एजेंसी को निजी सेना की तरह निकृष्ट तरीके से काम करने को मजबूर करते हैं तो यही स्थिति पैदा होती है.’
नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने आरोप लगाया है कि सीबीआई निदेशक के रूप में एक ‘निष्पक्ष अधिकारी’ आलोक वर्मा का पद इसलिए छीन लिया गया क्योंकि उन्होंने दबाव में काम करने से इनकार कर दिया था. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशासनिक क्षमता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि वे प्रशासन पर से अपनी पकड़ खो चुके हैं. उन्होंने कहा, जब आप किसी जांच एजेंसी को निजी सेना की तरह निकृष्ट तरीके से काम करने को मजबूर करते हैं तो यही स्थिति पैदा होती है.
उन्होंने कहा, ‘आलोक वर्मा को हटाने का मकसद एकदम साफ है.’
देश की प्रमुख जांच एजेंसी के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच चली आ रही अभूतपूर्व अंतर्कलह के बाद दोनों सर्वोच्च अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया है. दोनों ने एक-दूसरे पर रिश्वतखोरी और कदाचार का आरोप लगाया है जिससे सीबीआई गंभीर विवाद में फंस गई है.
एम नागेश्वर राव ने अंतरिम सीबीआई निदेशक का पद संभाला है. राकेश अस्थाना ने सीबीआई की ओर से अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को हाईकोर्ट में चुनौती चुनौती दी है.
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दो दिन पहले मीट कारोबारी मोइन कुरैशी से जुड़े मामले को दबाने के लिए रिश्वत लेने के मामले में अस्थाना को मुख्य आरोपी बनाया गया था. इस बीच, खुद को निदेशक के पद से हटाए जाने के खिलाफ आलोक वर्मा सुप्रीम कोर्ट चले गए हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए पूर्व भाजपा नेता अरुण शौरी ने कहा, अगर वर्मा के खिलाफ लगे आरोप टिकते नहीं तो सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि उन्हें उनके पद वापस नियुक्त करे.
उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट को यह देखना चाहिए कि क्यों वर्मा को उनके पद से हटाकर छुट्टी पर भेजा गया. आप एक ऐसे भ्रष्ट अधिकारी को संरक्षण नहीं दे सकते जिसने जांच एजेंसी के निदेशक से झगड़ा शुरू किया और अब कह रहे हैं कि दोनों को जाना चाहिए.’
दिल्ली के पुलिस कमिश्नर रहे वर्मा ने पिछले साल फरवरी में सीबीआई निदेशक का पद संभाला था.
शौरी ने सवाल किया, ‘आपने निदेशक को क्यों हटाया जबकि उनका कार्यकाल दो साल का होता है? अगर सुप्रीम कोर्ट को पर्याप्त आधार नहीं मिलता है तो उन्हें उनके पद पर वापस लाना ही चाहिए, वे सेवानिवृत्ति तक अपना कार्यकाल पूरा करें.’
वर्मा को हटाने का स्पष्टीकरण देते हुए बुधवार को सरकार ने कहा कि उन्हें केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की सिफारिश पर हटाया गया है जो सीबीआई की निगरानी करती है. सरकार ने यह भी कहा कि वर्मा उनके खिलाफ लगे आरोप की जांच करने में सहयोग नहीं कर रहे थे.
लेकिन अरुण शौरी ने सरकार के तर्क को खारिज करते हुए सीवीसी की भूमिका पर ही सवाल खड़े किए.
उन्होंने कहा, ‘सीवीसी ही इस सबके लिए जिम्मेदार है. सीवीसी के मुख्य सतर्कता आयुक्त के रूप में केवी चौधरी की नियुक्ति में ही कई संदेह हैं. जो कुछ हो रहा है इसके लिए वे ही जिम्मेदार हैं.’
‘कुछ अधिकारी आपके, कुछ हमारे’
मोदी सरकार के कट्टर आलोचक शौरी ने कहा, सरकार की ओर से अपने ‘पसंदीदा’ अधिकारी (राकेश अस्थाना) को उपकृत करने और सरकार के लिए असुविधा पैदा करने वाले वर्मा के कदम को रोकने की कोशिशों के चलते यह स्थिति पैदा हुई है.
उन्होंने कहा, ‘वर्मा की छवि एक निष्पक्ष अधिकारी की है जो दबाव में काम नहीं करते. जाहिर है कि यह सरकार के लिए सुविधाजनक नहीं है.’
शौरी ने प्रधानमंत्री से नजदीकी के लिए जाने जाने वाले गुजरात कैडर के अधिकारी अस्थाना का जिक्र करते हुए कहा, ‘यह जानते हुए कि एक अधिकारी पर प्रधानमंत्री का हाथ है, वर्मा उनके खिलाफ जांच करके सही काम कर रहे थे.’
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प्रधानमंत्री पर सीबीआई में गुजरात कैडर के अपने ‘पसंदीदा’ अधिकारियों को भर देने का आरोप लगाते हुए शौरी ने कहा, ‘जब आप किसी जांच एजेंसी या पुलिस बल को निजी सेना की तरह निकृष्ट तरीके से काम करने को मजबूर करते हैं तो यही स्थिति पैदा होती है क्योंकि कुछ अधिकारी आपके होंगे, कुछ हमारे होंगे.’
शौरी ने कहा कि जैसा विवाद अस्थाना और वर्मा के बीच चल रहा है, वैसा ही दूसरी जांच एंजेसियों, मसलन- राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) में भी ऐसा ही चल रहा है. सीबीआई में यह ज्यादा वीभत्स हो गया क्योंकि वर्मा ने झुकने से इनकार कर दिया.
‘क्या सीबीआई खुदा है?’
हालांकि, शौरी ने इस विवाद के चलते सीबीआई की छवि धूमिल होने की बात स्वीकार करते हुए कहा कि यह जरूरी है कि एजेंसी के बारे में जो ‘आम धारणा’ है, उसे सुधारा जाए.
उन्होंने कहा, ‘सीबीआई के बारे में जो आम धारणा है, वह बिल्कुल गलत है. मैं इसके खिलाफ कई वर्षों से बोल रहा हूं. कुछ भी होता है तो लोग कहते हैं कि सीबीआई जांच होनी चाहिए. क्या सीबीआई खुदा है?’
शौरी ने कहा, ‘सीबीआई अधिकारी भी पुलिस अधिकारी ही हैं जो केंद्रीय एजेंसियों और राज्यों से तबादले पर आते हैं. आप उनसे अचानक अलग तरह के व्यवहार की उम्मीद क्यों रखते हैं? क्या इसलिए कि वे एक ऐसी एजेंसी में बैठे हैं जिसे सीबीआई मुख्यालय कहते हैं?’
उन्होंने कहा, ‘मुझे यह कहने के लिए माफ करें लेकिन यह प्रधानमंत्री की छवि का भी मसला है. उनकी एक गलत छवि बनी हुई है. हम सोचते थे कि उनके पास प्रशासकीय क्षमता है लेकिन उन्होंने साबित किया है कि उनके पास प्रशासकीय क्षमता नहीं है.’
शौरी ने प्रधानमंत्री शासन करने की क्षमता पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘देश को भूल जाइए, उन्होंने प्रशासन पर से अपनी पकड़ खो दी है. आखिर यह प्रधानमंत्री कार्यालय ही है जो इन सब को अपने नियंत्रण में रखता है. उनके नियंत्रण का यही परिणाम है?’
उनका कहना है कि प्रधानमंत्री देश को उसी तरह चला रहे जैसे गुजरात को चला रहे थे, जबकि उनको ऐसा नहीं करने की सलाह भी दी गई.
शौरी ने कहा, ‘जब वे यहां आए तभी उन्हें सलाह दी गई थी कि दिल्ली अहमदाबाद से अलग है और आपको खुद को अलग तरह से संचालित करना होगा. हमने खुद उनसे यह बात कही थी.’
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